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वर्तमान विश्व के अन्य लोकतंत्र के समान भारत भी एक प्रतिनिधि आत्मक लोकतंत्र है इसका तात्पर्य शासन की ऐसी प्रणाली से है जिसमें राजनीतिक निर्णय जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों के द्वारा किया जाता है.
प्रतिनिधियों को चुनने की समान प्रक्रिया चुनाव अथवा मतदान कहलाती है जो कि लोकतंत्र का मूल आधार है अतः चुनाव को सार्थक एवं प्रतिनिधि आत्मक बनाने के लिए मताधिकार की व्यवस्था की गई है.
लोकतांत्रिक देशों में मताधिकार वयस्क नागरिकों को संपत्ति शिक्षा प्रजाति धर्म लिंग और अन्य किसी भेदभाव के बिना प्राप्त है जिसे सार्वभौम व्यस्क मताधिकार कहते हैं.
लोकतांत्रिक देशों में चुनाव का एक अन्य महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि चुनाव नियमित अवधि पर करवाए जाते हैं दूसरे शब्दों में चुनाव द्वारा प्रतिनिधियों को निश्चित अवधि के लिए निर्वाचित किया जाता है तथा अवधि समाप्ति के पश्चात दोबारा नया जनादेश प्राप्त करना आवश्यक.
चुनाव करवाने के लिए प्रत्येक देश द्वारा निर्धारित विभिन्न अंग नियम तथा उप नियम होते हैं इन्हीं तरीकों तथा नियमों के समूह को निर्वाचन प्रणाली कहा जाता है.
निर्वाचन प्रणाली मुक्ता वह तरीका है जो निर्वाचक और द्वारा डाले गए मतों को निर्वाचित निकालो में स्थानों के रूप में परिणत करता है अर्थात मोटे तौर पर यह 3 तरीके से किया जा सकता है.
( 1) बहुलवादी प्रणाली
( 2) बहुमत प्रणाली
( 3) आनुपातिक प्रणाली
“भारत में विभिन्न पदों और निकायों के चुनाव के लिए यह तीन पद्धति अपनाई जाती है”
बहुलवादी प्रणाली - लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं के चुनाव में
बहुमत प्रणाली: राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन में
भारत में वयस्क मताधिकार:
भारत में संसदीय लोकतंत्र है जैसे निरंतरता प्रदान करने में नागरिकों का मताधिकार अत्यंत आवश्यक है भारत में नागरिकों को यह अधिकार संविधान के अनुच्छेद 326 में दिया गया है जिससे यह प्रावधान किया गया है कि लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं के सदस्यों का चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर होगा अर्थात 18 वर्ष का 1989 से पहले यह आयु सीमा 21 वर्ष निर्धारित थी भारतीय नागरिक मताधिकार का प्रयोग करेगा.
भारत में मतदान के अधिकार को केवल संसदीय लोकतंत्र के कार्य संचालन हेतु आवश्यक नहीं माना गया है अपितु जन सहभागिता के माध्यम से सामाजिक आर्थिक न्याय प्राप्त करने में उत्तर दो भाई वाह जवाबदेही सरकार तथा लोगों की सहभागिता बढ़ाने के यंत्र के रूप में भी आवश्यक है राजनीतिक प्रक्रिया में इसे आपरी हाय रूप में देखा जाता है.
लोकसभा व विधानसभा के चुनाव के अतिरिक्त स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं आदि के भी चुनाव होते हैं जो लोगों को विभिन्न स्तर पर अपना नियंत्रण रखने तथा चुनाव करने का अवसर प्रदान करते हैं.
चुनावी सहभागिता एवं व्यवहार के निर्धारक तत्व:
भारतीय मतदान का आचरण किसी एक कारण से निर्धारित नहीं होता है उन्होंने सामाजिक राजनीतिक व आर्थिक कारण सम्मिलित होते हैं देखना यह है कि यह विभिन्न कारक किस प्रकार मतदाता की सहभागिता व आचरण को निर्धारित करते हैं.
मतदाताओं को प्रभावित करने वाले कारकों को दो भागों में विभाजित किया गया है.
( 1) अल्पकालीन कारक:
चुनाव के समय आर्थिक व्यवस्था एक महत्वपूर्ण अल्पकालिक कारक है इसमें बेरोजगारी की स्थिति मुद्रास्फीति आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धि अथवा अनुपलब्धि आदि सम्मिलित है.
जीवन की स्थानीय स्थिति जैसे जलवा विद्युत आपूर्ति की स्थिति सड़कों की अवस्था एवं कानून व्यवस्था की स्थिति भी सामान्य अथवा विशेष निर्वाचन क्षेत्र में मतदान व्यवहार को प्रभावित करती है.
मतदान में एक अन्य अल्पकालिक प्रभाव दलीय नेताओं की छवि और लोकप्रियता है.
चुनाव से पहले ही कुछ विशिष्ट और महत्वपूर्ण घटनाएं भी चुनाव परिणाम को प्रभावित करती हैं.
एक अन्य अल्पकालिक प्रभाव जो गत वर्षों में महत्वपूर्ण है वह मीडिया का प्रभाव एवं संचार साधनों की बढ़ती भूमिका.
उपरोक्त कारण भी चुनाव आचरण को अल्पकालिक तौर पर ही प्रभावित करते हैं परंतु चुनाव आचरण में थोड़ा सा परिवर्तन भी मतदान परिणामों को महत्वपूर्ण ढंग से बदल देते है.
दीर्घकालिक कारक:
मतदाताओं के आचरण पर प्रमुख प्रभावों सामाजिक आर्थिक तथा वैचारिक कारकों का होता है और यह प्रभाव दीर्घकालिक होते हैं जो निम्न वत है:
मतदान आचरण को प्रभावित करने वाले सामाजिक कार्य को में आयु लिंग शिक्षा निवास ग्रामीण अथवा शहरी जाति समुदाय धर्म आदि को सम्मिलित किया जाता है.
आर्थिक कारकों के परिप्रेक्ष्य में यह भिन्नता उच्च मध्यम तथा निम्न आने वाले समूह के मतदाताओं में देखने को मिलती है उदाहरण के लिए उच्च तथा मध्य आय समूह की दिलचस्पी समाज की समस्याओं में होती है राजनीतिक दृष्टि से अधिक जागरूक होते हैं तथा अपने दीर्घकालिक हितों के लिए सरकारी नीतियों के प्रभाव के प्रति सचेत रहते हैं दूसरी ओर गरीब परिवार की चिंता उनकी व्यक्तिगत आर्थिक समस्याएं होती हैं उनकी प्रमुख चिंता नौकरी खोजना उसे बनाए रखना अथवा दो समय के भोजन की होती है अतः वे अपनी तत्कालिक और जीवन संबंधी समस्याओं के दबाव में आकर मतदान करते हैं.
मतदाताओं के आचरण को प्रभावित करने में दीर्घकालिक कारक के रूप में राजनीति कारकों की महत्वपूर्ण भूमिका है जैसे विचारधारा परिवारवाद दल संबंधित अर्थात प्रत्येक समाज में काफी संख्या में लोग किसी न किसी विचारधारा या फिर मुगलों से जुड़े रहते हैं जैसे पूंजीवाद समाजवाद रूढ़िवाद उदारवाद पंथनिरपेक्ष या कट्टरवाद आदि उदाहरण स्वरूप मजदूर वर्ग के लोगों का झुकाव समाजवादी और साम्यवादी विचारधारा के प्रति होता है इसी प्रकार उद्योगपति तथा व्यापारी वर्ग का झुकाव पूंजीवादी मूल्यों के प्रति अधिक होता है.
मत आचरण का एक अन्य महत्वपूर्ण कारक दलों के प्रति मनोवैज्ञानिक लगाव है जो लोगों की दलीय पहचान को प्रतिबिंबित करता है उदाहरण के रूप में कुछ ऐसे लोग होते हैं जो दलों के औपचारिक सदस्य होते हैं अथवा दल विशेष संबंध होते हैं ऐसे लोग करके दीर्घकालिक समर्थक होते हैं तथा अपने दल के पक्ष में मतदान करते हैं मत आचरण का उपरोक्त विवेचना से स्पष्ट है कि मतदाताओं का निर्णय किसी एक कारण पर निर्भर नहीं करता अपितु मतदाताओं के निर्णय अपने सामाजिक समूह दीर्घकालिक संबंधों चुनाव के मुद्दों की समाज अर्थव्यवस्था की अवस्था तत्कालिक सामाजिक परिस्थितियां दल का नेतृत्व करने वाले नेताओं की छवि चुनाव अभियान इत्यादि से प्रभावित होते हैं.
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