इजराइल ने बीते दिन ईरान पर 200 इजरायली फाइटर जेट्स से ईरान के 4 न्यूक्लियर और 2 मिलिट्री ठिकानों पर हमला किये। जिनमें करीब 100 से ज्यादा की मारे जाने की खबरे आ रही है। जिनमें ईरान के 6 परमाणु वैज्ञानिक और टॉप 4 मिलिट्री कमांडर समेत 20 सैन्य अफसर हैं। इजराइल और ईरान के बीच दशकों से चले आ रहे तनाव ने सैन्य टकराव का रूप ले लिया है - जैसे कि इजरायल ने सीधे ईरान पर हमला कर दिया है तो इसके परिणाम न केवल पश्चिम एशिया बल्कि पूरी दुनिया पर व्यापक असर डाल सकते हैं। यह हमला क्षेत्रीय संघर्ष को अंतरराष्ट्रीय संकट में बदल सकता है। इस post में हम जानेगे कि इस तरह के हमले से वैश्विक राजनीति, अर्थव्यवस्था, कूटनीति, सुरक्षा और अंतराष्ट्रीय संगठनों पर क्या प्रभाव पडेगा और दुनिया का झुकाव किस ओर हो सकता है। [1. ]अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर प्रभाव: सैन्य गुटों का पुनर्गठन : इजराइल द्वारा ईरान पर हमले के कारण वैश्विक स्तर पर गुटबंदी तेज हो गयी है। अमेरिका, यूरोपीय देश और कुछ अरब राष्ट्र जैसे सऊदी अरब इजर...
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना (1885 ईसवी)
Allan octavian Hume नामक एक अवकाश प्राप्त british officer ने भारतीय नेताओं के सहयोग से 28 दिसंबर 1885 में मुंबई में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की.
- बम्बई में आयोजित कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन की अध्यक्षता व्योमेश चंद्र बनर्जी ने की है इस अधिवेशन में मात्र 72 प्रतिनिधियों ने भाग लिया.
- प्रारंभ में ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस को अपना सुरक्षा कवच समझ कर सहयोग दिया किंतु बाद में जब कांग्रेस ने वैधानिक सुधारों की मांग रखी तो अंग्रेजों का कांग्रेस से मोहभंग हो गया.
- १८८५ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के साथ ही एक अखिल भारतीय राजनीतिक मंच का जन्म हुआ इसी के साथ विदेशी शासन से भारत की स्वतंत्रता का संघर्ष एक संगठित रूप से प्रारंभ हुआ.
- Congress के जन्म के साथ ही भारतीय इतिहास में एक नया युग आरंभ हुआ छोटे-छोटे विद्रोही दलों तथा स्थानीय दलों आदि सभी ने अपने को कांग्रेस में विलीन कर लिया.
- कांग्रेस ने आरंभ से ही एक पार्टी नहीं वरन एक आंदोलन का काम किया यह आंदोलन भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के नाम से जाना गया.
बंगाल विभाजन एवं स्वदेशी आंदोलन (1905 - 06 ईसवी)
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के साथ ही संपूर्ण भारत के लोग ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एक राष्ट्रीय मुख्यधारा में शामिल होते जा रहे थे बंगाल तब भारतीय राष्ट्रवाद का प्रधान केंद्र था.
तत्कालीन बंगाल में आधुनिक बिहार, उड़ीसा ,पश्चिम बंगाल तथा बांग्लादेश आते थे। लॉर्ड कर्जन ने प्रशासनिक सुविधा का बहाना बनाकर बंगाल को दो भागों में बांट दिया था.
- बंगाल विभाजन की सर्वप्रथम घोषणा 3 दिसंबर 1903 को की गई थी. यह 16 अक्टूबर 1905 को लागू हुआ। राष्ट्रीय नेताओं ने विभाजन को भारतीय राष्ट्रवाद के लिए एक चुनौती समझा.
- बंगाल के नेताओं ने इसे क्षेत्रीय और धार्मिक आधार पर बांटने का प्रयास माना। अतः इस विभाजन का व्यापक विरोध हुआ तथा 16 अक्टूबर को पूरे देश में शोक दिवस के रूप में मनाया गया.
- हिंदू मुसलमानों ने अपनी एकता प्रदर्शित करते हुए एक बहुत ही तीव्र आंदोलन 7 अगस्त १९०५ से चलाया.
- स्वदेशी तथा बहिष्कार आंदोलन की उत्पत्ति बंगाल विभाजन विरोधी आंदोलन के रूप में हुई.
- इसके अंतर्गत अनेक स्थानों पर विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई और विदेशी कपड़े बेचने वाली दुकानों पर धरने दिए गए.
- इस प्रकार बंगाल के नेताओं ने बंगाल विभाजन विरोधी आंदोलन को स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन के रूप में परिवर्तित कर इसे राष्ट्रीय स्तर पर व्यापकता प्रदान की.
उग्र और क्रांतिकारी आंदोलन (1905 - 14)
- बंग बंग विरोधी तिलक बिपिन चंद्र पाल और अरविंद घोष जैसे नेताओं के हाथों में आना ही राष्ट्र वादियों के उत्कर्ष का प्रतीक था.
- सरकारी दमन और जनता को कुशल नेतृत्व देने में नेताओं की असफलता के कारण उपजी कुंठा में क्रांतिकारी आंदोलन को जन्म दिया.
- क्रांतिकारी युवकों ने अनेक गुप्त संगठन जैसे अनुशीलन समिति ,अभिनव भारत, मित्र मेला ,आर्य बंधुओं समाज आदि बनाएं.
- बंगाल मद्रास महाराष्ट्र में ही नहीं वरन कनाडा अमेरिका जर्मनी सिंगापुर आदि देशों में भी अनेक क्रांतिकारी दल स्थापित हो गए थे.
- गदर पार्टी भी एक ऐसा ही दल था. जिसकी स्थापना सन फ्रांसिस्को में लाला हरदयाल और भाई परमानंद आदि क्रांतिकारियों ने 1913 में की थी.
- यद्यपि गदर पार्टी का यह अभियान असफल रहा फिर भी उसने अमेरिका में भारतीय स्वाधीनता के लिए प्रचार कार्य जारी रखा.
होमरूल लीग आंदोलन (1915 - 16)
- 1914 में प्रथम विश्व युद्ध के आरंभ होने पर भारतीय राष्ट्रवादी नेताओं ने सरकार के युद्ध प्रयासों में सहयोग का निश्चय किया.
- इसके लिए एक वास्तविक राजनीतिक जन आंदोलन की आवश्यकता थी लेकिन ऐसा कोई जन आंदोलन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व में संभव नहीं था क्योंकि यह नरम पंथी के नेतृत्व में एक निष्क्रिय और जड़ संगठन बन चुकी थी इसलिए 1915 - 16 में दो होम रूल लीग की स्थापना हुई.
- भारतीय होमरूल लीग का गठन आयरलैंड के होम रूल लीग के नमूने पर किया गया जो तत्कालीन परिस्थितियों में तेजी से उभरती हुई प्रतिक्रिया त्मक राजनीति के नए स्वरूप का प्रतिनिधित्व करता था एनी बेसेंट और बाल गंगाधर तिलक इस स्वरूप के नेतृत्व करते थे.
- होमरूल लीग आंदोलन के दौरान तिलक ने अपना प्रसिद्ध नारा होमरूल या स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा दिया था.
- 1917 का वर्ष होम रूल लीग के इतिहास में एक मोड़ बिंदु था जून में एनी बेसेंट तथा उनके सहयोगियों को गिरफ्तार कर लेने लेने के पश्चात आंदोलन अपने चरम पर था.
- सितंबर 1917 मे भारत सचिव martangu की घोषणा जिस में होमरूल का समर्थन किया गया था ने इस आंदोलन में एक और निर्णायक मोड़ ला दिया.
- लीग ने अपने उद्देश्यों की सफलता के लिए एक कोष बनाया तथा धन एकत्रित किया सामाजिक कार्यों का आयोजन किया तथा स्थानीय प्रशासन के कार्यों में भागीदारी भी की.
लखनऊ समझौता (1916)
- वर्ष 1914 में तिलक जो मांडले जेल से लौटने के बाद समझौता वादी हो गए थे तथा एनी बेसेंट से मिलकर कांग्रेस के दोनों गुटों को नजदीक लाने का प्रयास किया.
- देश में बढ़ रहे राष्ट्रवादी भावना और राष्ट्रीय एकता की आकांक्षा के कारण 1916 में कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में ऐतिहासिक महत्व की दो घटनाएं में पहली यह कि कांग्रेस के दोनों धड़े फिर से एक हो गए.
- इस अधिवेशन की दूसरी महत्वपूर्ण उपलब्धि यह थी कि अपने पुराने मतभेद भुलाकर कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने सरकार के समक्ष एकता प्रदर्शित करते हुए इकट्ठे राजनीतिक मांगे रखी.
रॉलेक्ट एक्ट और जलियांवाला बाग हत्याकांड (1917 - 19)
- प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति पर जब भारतीय जनता संवैधानिक सुधारों की उम्मीद कर रही थी तो ब्रिटिश सरकार ने दमनकारी रोलेट एक्ट को जनता के सम्मुख प्रस्तुत किया.
- रॉलेक्ट एक्ट के द्वारा सरकार को यह अधिकार प्राप्त हुआ कि वह किसी भी भारतीय पर अदालत में बिना मुकदमा चलाए और दंड दिए बिना ही जेल में बंद कर सकती है.
- 1919 में रॉलेक्ट एक्ट के विरोध में गांधी जी ने पहली बार एक अखिल भारतीय सत्याग्रह आंदोलन प्रारंभ किया.
- सरकार ने इस जन आंदोलन को कुचल देने पर उतारू थी उसने निहत्थे प्रदर्शनकारियों को ऐसे कुचलने का प्रयास किया जिसने दमन के इतिहास में नया अध्याय जोड़े धनात्मक नीतियों तथा डॉक्टर सैफुद्दीन किचलू और डॉक्टर सत्यपाल जैसे लोकप्रिय नेताओं की गिरफ्तारी के विरोध में अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक सभा का आयोजन किया गया.
- जनरल डायर ने इस सभा पर आयोजन को सरकारी आदेश की अवहेलना माना तथा सभा स्थल को सशस्त्र सैनिकों के साथ घेर लिया और बिना किसी पूर्व चेतावनी के शांतिपूर्ण ढंग से चल रही सभा पर गोलियां चलाने का आदेश दे दिया.
- इस घटना में 1000 से अधिक लोग मारे गए। जिनमें युवा महिलाएं बूढ़े बच्चे सभी शामिल थे। यह घटना आधुनिक भारतीय इतिहास में जलियांवाला बाग हत्याकांड के नाम से प्रसिद्ध है.
- इस घटना के विरोध में रविंद्र नाथ टैगोर ने ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रदान की गई नाइटहुड की उपाधि वापस कर दी तथा सर शंकर नायर ने गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद से त्यागपत्र दे दिया.
खिलाफत आंदोलन (1919)
- प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति पर भारतीय मुसलमान तुर्की के प्रति होने वाले व्यवहार से क्षुब्ध थे। युद्ध के दौरान ब्रिटिश प्रधानमंत्री लायन चार्ज ने 2 आश्वासन दिए थे- युद्ध के बाद तुर्की के प्रति कोई भी दण्डात्मक कार्यवाही नहीं होगी तथा वहाँ के खलीफा की स्थिति के बारे में ब्रिटेन में कोई हस्तक्षेप नहीं करेगा युद्ध के पश्चात ब्रिटिश सरकार इन वायदों से मुकर गई.
- ऐसी स्थिति में भारतीय मुसलमानों का असंतोष अपने चरम पर था महात्मा गांधी के आवाहन पर हिंदुओं ने भी मुसलमानों का साथ दिया 1919 में डॉक्टर अंसारी के नेतृत्व में एक शिष्टमंडल वायसराय से मिलने भेजा गया परंतु उसका कोई परिणाम नहीं निकला.
- मई 1920 में अखिल भारतीय खिलाफत समिति की स्थापना की गई इस समिति ने अपने कार्यक्रम में सरकार के विरुद्ध असहयोग की नीति अपनाई.
- दिसंबर 1920 में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में विजय राघवाचारी की अध्यक्षता में स्वराज के साथ खिलाफत का प्रश्न भी जोड़ दिया गया.
असहयोग आंदोलन (1920)
- 5 फरवरी 1922 को चौरी -चौरा नामक गांव में 3000 किसानों के एक कांग्रेसी जुलूस पर पुलिस ने गोली चलाई। किसानों की क्रुद्ध भीड़ ने थाने पर हमला करके थाने में आग लगा दी। जिसमें 22 पुलिसकर्मी मारे गए.
- प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात आत्म निर्णय की भावना को बल मिला। इसके साथ ही रॉलेक्ट एक्ट, जलियांवाला बाग हत्याकांड, पंजाब में मार्शल ला तथा खिलाफत के विवाद आदि घटनाओं से अंग्रेजों के प्रति भारतीय दृष्टिकोण में व्यापक परिवर्तन आया.
- जनता इन घटनाओं के लिए सरकार से खेद प्रकट करने की अपेक्षा कर रही थी। इसके विपरीत परिस्थितियों में आंदोलन के एक और चक्र के प्रारंभ के लिए वह तैयार थी.
- 1920 में नागपुर में आयोजित कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन जिसकी अध्यक्षता विजयराघवाचारीअर कर रहे थे। असहयोग आंदोलन का अनुमोदन कर दिया गया.
- सरकार ने इस आंदोलन को कुचलने के लिए धनात्मक नीति का सहारा लिया आंदोलन के स्वरूप में स्थान परिवर्तन के साथ-साथ भिन्नता आई
- गांधीजी हिंसा में विश्वास नहीं करते थे इसलिए उन्होंने 12 फरवरी 1922 को बारदोली में हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में असहयोग आंदोलन को वापस लेने का निर्णय लिया.
साइमन आयोग
- 19१९ के अधिनियम में इस बात की व्यवस्था की गई थी कि 10 वर्षों के पश्चात मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधारों की समीक्षा तथा उसमें परिवर्तन की संभावनाओं की जांच के लिए एक आयोग का गठन किया जाएगा इस प्रावधान के तहत 1929 में एक आयोग की नियुक्ति की जानी थी.
- तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन ने निर्धारित समय से 2 वर्ष पूर्व 8 नवंबर 1927 को इंडियन इंस्टिट्यूट री आयोग की नियुक्ति कर दी .7 सदस्य आयोग के अध्यक्ष सर जॉन साइमन थे. जिसके नाम पर यह साइमन आयोग के नाम से विख्यात हुआ.
- कांग्रेस के मद्रास अधिवेशन में इस आयोग के बहिष्कार का निर्णय सर्वसम्मति से ले लिया गया.
- 3 फरवरी 1928 को साइमन आयोग भारत आया साइमन आयोग के भारत आने पर देश के सभी प्रमुख नगरों में हड़ताल एवं जुलूस ओं का आयोजन किया गया.
- जनता के विरोध को कुचलने के लिए सरकार ने निर्मम दमन तथा पुलिस कार्रवाई यों का सहारा लिया.
नेहरू रिपोर्ट (1928)
- साइमन आयोग की नियुक्तियों और उसके विरोध के पश्चात भारत सचिव ने भारतीयों की क्षमता पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए उन्हें अपने लिए एक सर्वमान्य संविधान बनाने की चुनौती दी.
- डॉक्टर मुख्तार अहमद अंसारी की अध्यक्षता में एक सर्वदलीय सम्मेलन का आयोजन 19 मई 1926 को किया गया. इस सम्मेलन के अंत में मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक समिति की को गठित किया गया.
- इस समिति ने 10 अगस्त 1928 को लखनऊ में हुए एक सर्वदलीय सम्मेलन में अपने संविधान का प्रारूप पेश किया जिसे नेहरू रिपोर्ट के नाम से भी जाना जाता है.
- रिपोर्ट में भारत को डोमिनियम राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग पर बहुमत था लेकिन राष्ट्र वादियों के एक दल को इस पर आपत्ति थी वह डोमिनियम राज्य के स्थान पर पूर्ण स्वतंत्रता का समर्थन कर रहे थे.
- लखनऊ में डॉक्टर अंसारी की अध्यक्षता में पुनः सर्वदलीय सम्मेलन हुआ जिसमें नेहरू रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया गया.
सविनय अवज्ञा आंदोलन
- फरवरी 1930 में साबरमती आश्रम में कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाने की संपूर्ण शक्ति महात्मा गांधी के हाथों में सौंप दी गई.
- गांधी जी ने 31 जनवरी 1930 को ला ड्यूरिंग के समक्ष अंतिम चेतावनी के रूप में अपनी 11 सूत्री मांग रखी जिसमें अस्वीकार किए जाने पर सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ करने की चेतावनी दी गई.
- लॉर्ड इरविन द्वारा 11 सूत्री मांगों को अस्वीकार कर दिए जाने के बाद गांधीजी के समक्ष आंदोलन शुरू करने के तरीके और कोई चारा नहीं था.
- गांधी जी ने 12 मार्च 1930 को अपने चुनस्वयंसेवलिनों के साथ दांडी के लिए यात्रा शुरू की 24 दिनों में डांडी पहुंचकर महात्मा गांधी ने 6 अप्रैल को नमक कानून का उल्लंघन किया.
- बंगाल में मानसून के आगमन की वजह से नमक बनाना कठिन था और था वहां यह आंदोलन चौकीदारी विरोधी तथा यूनियन बोर्ड विरोधी आंदोलन के रूप में चलाया गया.
- महाराष्ट्र कर्नाटक तथा मध्य प्रांत में जंगल कानूनों तथा असम में कनिंघम सर्कुलर जिसके अंतर्गत छात्रों तथा उनके परिजनों को चरित्र प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने होते थे का विरोध प्रारंभ हुआ.
- निर्ममता पूर्वक दमन के बाद भी आंदोलन की तीव्र गति को देखकर लॉर्ड इरविन ने महात्मा गांधी से समझौते का प्रयास किया सरकार द्वारा यह आश्वासन दिए जाने पर की हानि उठाने वालों को हर्जाना मिलेगा 5 मार्च 1931 को गांधी इवनिंग समझौते के बाद आंदोलन वापस ले लिया गया.
गांधी इरविन समझौता
- 5 मार्च 1931 को गांधी और इरविन के मध्य एक समझौता हुआ जिसे गांधी इरविन समझौता के नाम से जाना जाता है.
इस समझौते के तहत लॉर्ड इरविन ने निम्न आश्वासन दिए:
- सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा कर दिया जाएगा।
- आपातकालीन अध्यादेश ओं को वापस ले लिया जाएगा।
- आंदोलन के दौरान जप्त की गई संपत्ति उनके स्वामियों को वापस कर दी जाएगी तथा जिनकी संपत्ति नष्ट हो गई है उन्हें हर्जाना दिया जाएगा।
- समुद्र तट के निकट रहने वाले लोगों को अपने इस्तेमाल के लिए बिना कोई कर दिया नमक एकत्र करने तथा बनाने दिया जाएगा.
- सरकार मादक द्रव्य तथा विदेशी वस्तुओं की दुकानों पर शांतिपूर्ण धरना देने वालों को गिरफ्तार नहीं करेगी।
- जिन सरकारी कर्मचारियों ने आंदोलन के दौरान नौकरी से त्यागपत्र दिया था उन्हें नौकरी में वापस लेने में सरकार उदार नीति अपनाई गई.
पूना समझौता (1932)
सितंबर 1932 में गांधीजी और अंबेडकर के बीच एक समझौता हुआ जिसे पूना पैक्ट समझौते के नाम से भी जाना जाता है.
- इस समझौते में सभी अल्पसंख्यक समुदायों हरिजनों मुसलमानों सिकवादी के लिए संघीय विधान परिषद में पृथक निर्वाचन मंडल की व्यवस्था की गई.
- इसके तहत मुसलमान केवल मुसलमानों द्वारा सुख केवल सिखों द्वारा तथा अन्य अल्पसंख्यक समुदाय केवल अपने ही समुदाय द्वारा चुने जा सकते थे.
- गांधी जी ने जो उस समय यरवदा जेल में बंदी थे ने इसे भारतीय एकता तथा राष्ट्रवाद पर चोट की संज्ञा दी उन्होंने इस निर्णय को वापस न लिए जाने की स्थिति में 20 सितंबर 1932 को आमरण अनशन प्रारंभ कर दिया.
- इस समझौते के तहत दलित वर्ग के लिए प्रथम निर्वाचक मंडल की व्यवस्था वापस ले ली गई.
- पूना समझौते के सांप्रदायिक निर्णय द्वारा हिंदुओं से हर जनों को पृथक करने के सरकारी प्रयास को विफल कर दिया गया.
1937 का चुनाव प्रांतों में कांग्रेसी मंत्री मंडल
- भारत सरकार अधिनियम 1935 के प्रावधानों के अनुकूल सरकार ने प्रांतों में फरवरी 1937 में चुनाव कराने की घोषणा की.
- फरवरी 1937 में संपन्न हुए चुनाव में यह बात निश्चित रूप से सिद्ध हो गई की जनता का एक बड़ा भाग कांग्रेस के साथ है.
- 1937 के चुनाव में कांग्रेस ने अधिकांश प्रांतों में भारी जीत हासिल की 11 में से 7 प्रांतों में कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा.
- जुलाई 19 37 में 11 में से 7 प्रांतों में कांग्रेसी मंत्री मंडल गठित हुआ बाद में कांग्रेस ने 2 प्रांतों में शादी सरकारें भी बनाई केवल बंगाल और पंजाब में ही गैर कांग्रेसी मंत्रिमंडल बन सके.
- 3 सितंबर 1939 को वार सराय लिनलिथगो ने प्रांतीय मंत्री मंडलों पर राष्ट्रीय भारतीय कांग्रेस के नेताओं की सलाह लिए बिना एकतरफा तौर पर भारत को जर्मनी के साथ ब्रिटेन के युद्ध में झोंक दिया.
- इस एकतरफा निर्णय के विरोध में 29 30 अक्टूबर 1939 को प्रांतों के कांग्रेसी मंत्री मंडलों ने अपने 28 महीने के शासन के पश्चात त्यागपत्र दे दिया.
अगस्त प्रस्ताव (1940)
युद्ध में भारतीयों का सहयोग प्राप्त करने के उद्देश्य 8 अगस्त 1940 को वायसराय ने एक घोषणा की जिसे अगस्त प्रस्ताव के नाम से जाना जाता है.
वायसराय के प्रस्ताव में निम्नलिखित बातें कही गई थी:
- वायसराय की कार्यकारिणी परिषद का विस्तार किया जाएगा।
- वायसराय द्वारा भारतीय राज्यों भारत के राष्ट्रीय जीवन से संबंधित अन्य हितों के प्रतिनिधियों की एक युद्ध परामर्श समिति की स्थापना की जाएगी.
- भारत के लिए नए संविधान का निर्माण मुक्ता भारतीयों का उत्तरदायित्व होगा युद्ध उपरांत भारत के लिए नवीन संविधान निर्माण हेतु राष्ट्रीय जीवन से संबंधित व्यक्तियों के एक निकाय का गठन किया जाएगा.
- युद्ध समाप्ति के 1 वर्ष के भीतर औपनिवेशिक स्वराज्य की स्थापना करना ब्रिटिश सरकार की घोषित नीति है.
- अल्पसंख्यकों को को पूर्ण महत्व प्रदान करने का आश्वासन दिया गया.
- यद्यपि यह घोषणा एक महत्वपूर्ण प्रगति थी क्योंकि इसमें स्पष्ट कहा गया था कि भारत का संविधान बनाना भारतीयों का अपना अधिकार है और इसमें स्पष्ट प्रादेशिक स्वशासन की प्रतिज्ञा की गई थी.
क्रिप्स मिशन (1942)
- 1941 में सुदूर पूर्व में जापान द्वारा ब्रिटेन की पराजय तथा मार्च 1942 तक जापान की भारतीय सीमा पर दस्तक इन दो घटनाओं से ब्रिटिश युद्ध कालीन मंत्रिमंडल के रुख में नरमी आ गई थी.
- भारत में संवैधानिक प्रतिरोध को समाप्त करने के उद्देश्य ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमंस के नेता तथा युद्ध कालीन मंत्रिमंडल के एक सदस्य sir stafford cripps crips को एक घोषणा के मशविरा के साथ भारत भेजा गया..
- मार्च 1947 में यह मशविरा कार्यकारी परिषद तथा भारतीय राजनेताओं के सम्मुख रखा गया.
- लगभग सभी पार्टियों तथा वर्गों के असंतोष को देखकर यह घोषणा केवल सभी भारतीयों की युद्ध में सहायता प्राप्त करने का एक उपाय मात्र था इसमें भारतीय समस्या के समाधान के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं किया गया था.
भारत छोड़ो आंदोलन 1942
- 14 जुलाई 1942 को कांग्रेस कार्यकारिणी ने वर्धा में प्रस्ताव पारित किया जिसमें अंग्रेजों को भारत से चले जाने को कहा गया तथा यह कहा गया कि यदि यह अपील स्वीकृत नहीं होती है तो कांग्रेस एक सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाने के लिए बाध्य हो जाएगी.
- पूरे देश में कारखानों स्कूल और कॉलेजों में हड़ताल ने और काम बंदी भी जिन पर लाठीचार्ज और गोलियां भी चलाई गई.
- बार-बार पुलिस की गोलाबारी और दमन से क्रुद्ध होकर के जनता ने अनेक जगहों पर हिंसक कार्यवाही भी की जनता ने पुलिस थानों डाकखान और रेलवे स्टेशनों आदि ब्रिटिश शासन के तमाम प्रतीकों पर हमले भी किए.
- उत्तरी और पश्चिमी बिहार और पूर्वी संयुक्त प्रांत बंगाल में मिदनापुर महाराष्ट्र कर्नाटक तथा उड़ीसा के कुछ हिस्से आंदोलन के प्रमुख केंद्र है जिनमें बलिया ताल्लुक सातारा आदि अनेक स्थानों पर समांतर सरकारों की स्थापना की गई जो कि ज्यादा दिनों तक दीर्घ जीवी सिद्ध नहीं हुई.
सुभाष चंद्र बोस और आजाद हिंद फौज
- रासबिहारी बोस ने जापान में इंडियन इंडिपेंडेंस लीग की स्थापना की इसके बाद 11 दिसंबर 1941 को उन्होंने इंडियन नेशनल आर्मी की भी स्थापना की.
- 18 फरवरी 1942 को मोहन सिंह इस सेना के जनरल बनाए गए जब सुभाष चंद्र बोस अप्रैल 1943 में पहुंचे तो जुलाई 1943 को रासबिहारी बोस ने इंडियन इंडिपेंडेंस लीग और आजाद हिंद फौज की अध्यक्षता से इस्तीफा दे दिया और सुभाष चंद्र बोस को इनका दायित्व सौंप दिया गया.
- सुभाष चंद्र बोस सिंगापुर लौट गए तथा वहां उन्होंने 21 अक्टूबर 1943 को स्वतंत्र भारत की अस्थाई सरकार की स्थापना की तथा रंगून और सिंगापुर को मुख्यालय बनाया.
- 1945 में जापान की युद्ध में पराजय ने भारत को आजाद कराने की आशाओं पर पानी फेर दिया फौज के अधिकांश सैनिक बंदी बना लिए गए जब इन सैनिकों पर मुकदमा चलने लगे तो इन्हें जनता का भारी समर्थन मिला.
- जवाहरलाल नेहरू तेज बहादुर सप्रू तथा भूलाभाई देसाई ने इन सैनिकों की पैरवी की जन दबाव में सरकार को झुकना पड़ा.
- सुभाष चंद्र बोस ने दिल्ली चलो का विख्यात नारा तथा अपने अनुयायियों को जय हिंद का मूल मंत्र दिया.
- द्वितीय विश्वयुद्ध भारत में लोगों की चेतना और राष्ट्रीय भावना जागृत करने में आजाद हिंद फौज ने प्रमुख भूमिका निभाई.
शिमला सम्मेलन तथा वेवेल योजना
- अक्टूबर 1943 में लार्ड ल के स्थान पर लॉर्ड वेवल भारत के वायसराय बने उन्होंने भारतीय संविधान में गतिरोध को समाप्त करने के उद्देश्य से एक विस्तृत योजना बनाई जो उनके नाम वेवेल योजना से जानी जाती है वेवेल योजना की घोषणा 14 जून 1945 को की गई थी इस योजना के मुख्य प्रावधान निम्नलिखित है:
- ब्रिटिश शासन राजनीतिक गतिरोध को समाप्त करके भारत को स्वशासन के लक्ष्य की ओर अग्रसर करना चाहता है.
- वायसराय कार्यकारिणी परिषद का गठन किस तरह किया जाए कि वार सराय तथा प्रधान सेनापति को छोड़कर शेष सदस्य भारतीय हो.
- कार्यकारिणी परिषद में हिंदुत्व सब मुसलमान सदस्यों की संख्या बराबर होगी।
- विदेश विभाग भारतीय सदस्यों के हाथ में होगा.
- एक ब्रिटिश उच्चायुक्त की नियुक्ति की जाएगी जो भारतीय वाणिज्यिक तथा दूसरे हितों की देखभाल करेगा.
- नई कार्यकारिणी परिषद 1935 के अधिनियम के तहत कार्य करेगी.
- भारत सचिव शक्ति को सीमित किया जाएगा जब वायसराय के बीजों के अधिकार को बरकरार रखा जाएगा.
कैबिनेट मिशन योजना 1946
- वेवेल योजना और शिमला समझौता दोनों विरोध हो जाने के पश्चात भारत में राजनीतिक गतिरोध को दूर करने के लिए कैबिनेट मिशन को भारत भेजा गया
- इस शिष्टमंडल में 3 सदस्य थे पैथिक लारेंस सर स्टैनफोर्ड क्लिप्स और ए बी एलेग्जेंडर यह शिष्टमंडल 24 मार्च 1946 को दिल्ली पहुंचे.
- भारत के विभिन्न राजनीतिक दलों से लंबी बातचीत के बाद एक त्रिपक्षीय सम्मेलन सरकार कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग के बीच शिमला में आयोजित किया गया.
- मिशन ने इस बात को स्पष्ट कर दिया था कि उसका उद्देश्य किसी संविधान का निर्धारण करना नहीं बल्कि उस तंत्र को सक्रिय बनाना है जिसके द्वारा भारतीयों के लिए संविधान तय किया जा सके.
- कैबिनेट मिशन योजना का महत्व इस बात में नहीं था कि इसमें भारतीय एकता को सुरक्षित रखा गया था तथा पाकिस्तान की मांग को स्पष्ट रूप से अमान्य कर दिया गया था.
अंतरिम सरकार का गठन 1946
- जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में उनके 11 सहयोगियों के साथ 2 सितंबर 1946 को अंतरिम सरकार का गठन किया गया इसमें मुस्लिम लीग के सदस्य शामिल नहीं हुए.
- मुस्लिम लीग ने कांग्रेस ली की समानता पर बल दिया ऐसा न करने पर उसने कैबिनेट मिशन योजना को ठुकरा दिया.
- आरंभ में मुस्लिम लीग इस सरकार में शामिल नहीं हुई थी परंतु वायसराय के प्रयासों से वह 26 अक्टूबर 1946 को सरकार में शामिल हुई सरकार में उसके 5 सदस्य थे लियाकत अली गजल पर अली चंद्रिका अब्दुल थाना स्तर तथा योगेंद्र नाथ मंडल.
LORD ATLLEE की घोषणा
- कांग्रेसी एक टकराव संविधान सभा की बैठक में लिख के भागना लेने तथा उसके द्वारा चलाए जा रहे हैं प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस के परिणाम स्वरुप भारत में दंगे विकराल रूप धारण करते जा रहे थे.
- राजनीतिक गतिरोध को दूर करने के लिए ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने फरवरी 1947 को घोषणा की कि ब्रिटिश सरकार जून 1948 के पूर्व सत्ता भारतीयों को सौंप देगी.
- ब्रिटिश संसद में यद्यपि इस घोषणा की काफी आलोचना हुई परंतु वह अंतता स्वीकृत हो गई.
- इसी घोषणा के तहत सप्ताह का सफलतापूर्वक हस्तांतरण करने के लिए लॉर्ड माउंटबेटन को भारत भेजा गया.
लॉर्ड माउंटबेटन योजना जून 1947
- मार्च 1947 में लॉर्ड माउंटबेटन को भारत का वायसराय बनाकर भेजा गया लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत और पाकिस्तान के बीच बंटवारे के प्रश्न पर कांग्रेस और मुस्लिम लीग के नेताओं के साथ बातचीत करके एक योजना तैयार कीजिए जिसे माउंटबेटन योजना के नाम से भी जाना जाता है.
- माउंटबेटन द्वारा इस योजना की घोषणा 3 जून 1947 को की गई जिसमें हस्तांतरण प्रक्रिया को सुगम बनाने तथा दोनों मुख्य संप्रदायों का समायोजन करने के लिए देश को दो भागों भारत और पाकिस्तान में विभाजित करने का परामर्श दिया गया.
- इस योजना के द्वारा यह निर्णय लिया गया कि 15 अगस्त 1947 को भारत और पाकिस्तान को सत्ता का हस्तांतरण डोमिनियम स्टेटस के आधार पर कर दिया जाएगा.
- कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग सहित सभी दलों ने इस योजना को अपनी स्वीकृति दे दी इसके उपरांत ब्रिटिश सरकार ने इस योजना को कार्य रूप देने के लिए एक विधेयक पारित कर दिया.
भारत का हस्तांतरण भारत स्वतंत्रता अधिनियम 1947:
- माउंटबेटन योजना के आधार पर ब्रिटिश संसद में एक विधेयक 4 जुलाई 1947 को प्रस्तुत किया गया यह विधेयक 18 जुलाई 1947 को भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम के रूप में पारित हुआ इसकी प्रमुख बातें निम्नलिखित थी
- 15 अगस्त 1947 को दो स्वतंत्र अधिराज्य भारत तथा पाकिस्तान की स्थापना की जाएगी
- नए संविधान के बनने और लागू होने तक वर्तमान संविधान सभा ही विधानसभा के रूप में 1935 के एक्ट के तहत कार्य करेगी
- ब्रिटिश क्रॉउन का भारतीय रियासतों पर प्रभुत्व समाप्त हो जाएगा
- भारत सचिव का पद समाप्त कर उसके स्थान पर एक राष्ट्रमंडल के मामलों के सचिव की नियुक्ति की जाएगी.
- दोनों राज्यों के लिए राज्य मंत्री मंडलों के सुझाव पर प्रथम गवर्नर जनरल की नियुक्ति की जाएगी.
- इस अधिनियम द्वारा 15 अगस्त 1947 को भारत को दो स्वतंत्र डोमिनियन ओ भारत तथा पाकिस्तान में बांट दिया गया पाकिस्तान के प्रथम गवर्नर जनरल मोहम्मद अली जिन्ना बने तथा भारत के लिए माउंटबेटन को ही गवर्नर जनरल बने रहने को कहा गया.
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