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असुरक्षित ऋण क्या होते हैं? भारतीय बैंकिंग संकट, अर्थव्यवस्था पर प्रभाव और RBI के समाधान की एक विस्तृत विवेचना करो।

Drafting और Structuring the Blog Post Title: "असुरक्षित ऋण: भारतीय बैंकिंग क्षेत्र और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, और RBI की भूमिका" Structure: परिचय असुरक्षित ऋण का मतलब और यह क्यों महत्वपूर्ण है। भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में असुरक्षित ऋणों का वर्तमान परिदृश्य। असुरक्षित ऋणों के बढ़ने के कारण आसान कर्ज नीति। उधारकर्ताओं की क्रेडिट प्रोफाइल का सही मूल्यांकन न होना। आर्थिक मंदी और बाहरी कारक। बैंकिंग क्षेत्र पर प्रभाव वित्तीय स्थिरता को खतरा। बैंकों की लाभप्रदता में गिरावट। अन्य उधारकर्ताओं को कर्ज मिलने में कठिनाई। व्यापक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव आर्थिक विकास में बाधा। निवेश में कमी। रोजगार और व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की भूमिका और समाधान सख्त नियामक नीतियां। उधार देने के मानकों को सुधारना। डूबत ऋण प्रबंधन (NPA) के लिए विशेष उपाय। डिजिटल और तकनीकी साधनों का उपयोग। उदाहरण और केस स्टडी भारतीय बैंकिंग संकट 2015-2020। YES बैंक और IL&FS के मामले। निष्कर्ष पाठकों के लिए सुझाव और RBI की जिम्मेदारी। B...

Bengal election: TMC vs BJP

ममता बनर्जी शुरू से ही मां माटी मानुष के नाम पर राजनीति करती हुई बांग्ला स्वाभिमान को आगे रख ली और बांग्ला राष्ट्रवाद को हवा देती है तो वहीं भाजपा को हिंदू राष्ट्रवाद का पैरोकार बताते हुए मुस्लिमों के शत्रु के तौर पर पेश करती हैं भाजपा इसे भली-भांति जानते हुए वह हिंदू राष्ट्रवाद के अपने क्षेत्र के एजेंडे को हवा देती है लेकिन वह सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास के साथ हिंदू राष्ट्रवाद को परवान चढ़ाने की बात भी करती है.


                   यूं तो ममता का पूरा राजनीतिक कैरियर की चुनौती और संघर्ष से भरा रहा है लेकिन अब विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा की ओर से मिलने वाली चुनौती और पार्टी में लगातार तेज होती बगावत को ध्यान में रखते हुए ममता का संघर्ष और घना होने लगा है हाल ही में सरकार और पार्टी में ममता बनर्जी की बात पत्थर की लकीर साबित होती रही है लेकिन अब उनके खिलाफ जब दर्जनों नेता आवाज उठाने लगे हो तो ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि क्या ममता की पकड़ अब पहले जैसी नहीं रही है.


                   दरअसल तृणमूल कांग्रेस में किसी नेता की इतनी हिम्मत नहीं थी कि उनके किसी फैसले पर उंगली उठा सकें लगभग 10 साल तक सत्ता में रहने के बाद नेताओं में कुछ असंतोष और नाराजगी तो जायज है लेकिन भाजपा ने खासकर बीते लोकसभा चुनाव में जिस तरह आक्रामक रुख अपनाया और पार्टी के नेताओं को अपने पाले में खींच रही है वह ममता बनर्जी के लिए एक गंभीर चुनौती बन गया है लेकिन लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद से ममता ने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की सेवाएं ली थी लेकिन उनका यह पैसा भी अब उल्टा ही पड़ता नजर आ रहा है. दवा के तौर पर आए प्रशांत पार्टी के लिए मर्ज बनते जा रहे हैं.


                                     शांत ने ममता और उनकी सरकार की छवि चमकाने के लिए कई रणनीति तैयार की उसी के तहत बीते साल दीदी के बोलो नामक अभियान शुरू किया गया जिसके तहत कोई भी नागरिक सीधे फोन पर अपनी समस्या बता सकता था तो अब सरकार की योजनाएं लोगों तक पहुंचे इसलिए सरकार द्वारा द्वारे द्वारे अभियान चलाया गया है.


                                इधर भाजपा की ओर से राजनीति और प्रशासनिक मोर्चे पर मिलने वाली कड़ी चुनौतियों के बीच सत्ता बचाने के लिए जूझ रही किसी भी पार्टी के लिए यह स्थिति आदर्श नहीं है ममता को एक साथ कई मोर्चों पर झुर्रियां पड़ रहा है पहले तो राजनीतिक मोर्चे पर भाजपा की ताकत और संसाधनों से मुकाबला उनके लिए कठिन चुनौती बन गया है भाजपा ने अगले चुनाव में जीत के लिए अपनी पूरी ताकत और तमाम संसाधन बंगाल में झोंक दिया आधा दर्जन से ज्यादा केंद्रीय नेताओं और मंत्रियों को बंगाल का जिम्मा सौंप दिया गया दूसरी और प्रशासनिक मोर्चा की ममता की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही है.



                 बीते दिनों भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा पर हमले के बाद एक और सरकार से रिपोर्ट मांगी गई तो दूसरी और मुख्य चुनाव सचिव और पुलिस महानिदेशक को दिल्ली तलब किया गया हालांकि केंद्र के दबाव के बावजूद ममता ने उनके दिल्ली नहीं भेजा उनके बाद तीन वरिष्ठ आईपीएस अफसरों को जबरन केंद्रीय डेपुटेशन पर जाने का निर्देश दे दिया गया इस मुद्दे पर भी टकराव जारी है राज्यपाल जगदीप धनखड़ भी कानून व्यवस्था समेत विभिन्न मुद्दों पर सरकार पर ताबड़तोड़ हमले में जुटे हुए हैं लेकिन घर के चिराग से घर में लगी आग की तर्ज पर ममता के लिए सबसे बड़ी मुश्किल ऐसे नेताओं ने खड़ी कर दिया जो कल तक उनके सबसे करीबी लोगों में शुमार किए जाते थे.



                        इनमें सबसे पहले तो उन मुकुल राय ने भाजपा का दामन थामा था जिनको राज्य के खासकर ग्रामीण इलाकों में टीएमसी की जड़ें जमाने का वास्तुकार माना जाता है उसके बाद बीते 2 साल के दौरान बैरकपुर के ताकतवर नेता और भाजपा सांसद अर्जुन सिंह समिति इक्का-दुक्का नेता बगावती अंदाज अपनाते रहे हैं.


                                 विधानसभा चुनाव जब सिर पर आ गए हैं और थोक के भाव में मची भगदड़ में एक गंभीर समस्या पैदा कर दिए इनमें मेदिनीपुर इलाके के बड़े नेता शुभेंदु अधिकारी समेत कई विधायक शामिल है भगदड़ से उसकी परिस्थिति पर विचार करने और इसकी काट के रणनीति तैयार करने के लिए उन्होंने बीते दिनों अपने आवास पर शीर्ष नेताओं के साथ आपात बैठक की.


               ममता अपनी तमाम रैलियों में कहती रही है कि पार्टी छोड़कर जाने वालों के लिए दरवाजे खुले हैं सत्ता लोलुप नेता आम लोगों की बजाय हमेशा अपनी भलाई के बारे में सोचते उनके रहने या जाने से कोई अंतर नहीं पड़ेगा तृणमूल में मची भगदड़ के लिए ममता भले ही पानी पी पीकर भाजपा को कोस रही हो विपक्षी नेता और राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि बंगाल में दलबदल की परंपरा को ममता ने ही बढ़ावा दिया था एक दशक बाद इतिहास खुद को दोहराता है.


             इस बात का जिक्र प्रसांगिक है कि वर्ष 2011 में तृणमूल कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद से मानस भैया अजय दे सौमित्र खान हुमायूं कबीर और कृष्णेन्दु नारायण चौधरी समेत कई कांग्रेस नेता तृणमूल के खेमे में शामिल हो चुके हैं उनमें से कुछ को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया तो कुछ सांसद बनाया गया इसी तरह छाया दुबला अनंत देव अधिकारी दशरथ तिर्की सुनील मंडल जैसे लेफ्ट के नेता भी तृणमूल कांग्रेस का हिस्सा बन चुके.



               जहां टीएमसी कांग्रेस अपनी अंदरूनी चुनौतियों से जूझती हुई चुनावी समर की तैयारियों में लगी है वहीं भाजपा इस चुनाव को लेकर अपना पूरा दमखम लगा चुकी है.


                         मां माटी मानुष की बात करते हुए ममता बनर्जी बंगाली स्वाभिमान और बांग्ला राष्ट्रवाद की राजनीति को आएंगे कर रही है तो भाजपा बंगाल की संस्कृति बंगाली मनीषियों को श्रद्धा करते हुए ममता द्वारा स्वयं पर लगाए गए बाहरी के तमगे से पीछा छुड़ाते हुए राजनीति को आगे बढ़ा रही इसी क्रम में भाजपा के वरिष्ठ नेता व केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पश्चिम बंगाल के 2 दिन के दौरे के दौरान बीरभूम जिले में सांतिनिकेतन विश्व भारती विश्वविद्यालय पहुंचे इसका एक मकसद रविंद्र नाथ टैगोर की प्रशंसा कर बीते लोकसभा चुनाव से पहले ईश्वरचंद विद्यासागर की प्रतिमा टूटने से हुए नुकसान की भरपाई भी थी ध्यान रहे ममता बनर्जी कांग्रेस के तमाम नेता भाजपा और उसके नेताओं को बताते हैं कि नहीं माना जा रहा है कि अपने दौरे में इसके लिए तमाम से जुड़ी विश्व भारती विश्वविद्यालय अमित शाह ने विश्व भारती में जाकर रविंद्र नाथ टैगोर और महात्मा गांधी के आवासों को देखा और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की.



                         शाह ने पत्रकारों से कहा है कि विश्व भारती में पहुंचकर दो महान पुरुषों रविंद्र नाथ टैगोर ऑन महात्मा गांधी की आवाज को देखने और उनको श्रद्धांजलि अर्पित करने का सौभाग्य मिला है उन्होंने भारतीय ज्ञान दर्शन का लाभ साहित्य की गूंज पूरी दुनिया में पहुंचाई है और विश्व भारती के जरिए इनके संरक्षण संवर्धन में अहम भूमिका निभाई है.



                        वहां से निकलने के बाद उन्होंने पार्टी के कुछ अन्य नेताओं के साथ बाउल कलाकार वासुदेव दास के घर दोपहर का भोजन किया और उसके बाद दूसरों की ओर सोम ऐसा ने दावा किया कि बंगाल में बदलाव की बयार तेज हो गई है और रोड शो में जुटी भीड़ इसका सबूत है भाई कलाकार के घर भोजन के बाद उन्होंने अपने ट्वीट पर कहा कि बाउल कला बहुमुखी बांग्ला संस्कृति का सही प्रतिबिंब लेकिन क्या सा का वीरभूमि द्वारा बाहरी सितम गैरों से निजात पाने के लिए काफी है प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप ऐसा नहीं मानते उनका कहना है कि रविंद्र सिर बंगाल की नहीं पूरे देश के गौरव हैं अमित शाह का दौरा दौरा था पहले दिन में मेदनीपुर गए और दूसरे दिन भी सुभारती गए इसका कोई अर्थ नहीं है.

         
              लेकिन दूसरी हो तृणमूल कांग्रेस ने कहा है कि गुरुदेव के विचारों को जाने बिना भाजपा अपने सियासी फायदे के लिए उनका इस्तेमाल करने का प्रयास कर रही है वैसे शांतिनिकेतन से दिल्ली के लिए निकलने से पहले सा ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में जो कहा उसे साफ हो गया है कि पार्टी बाहरी के तमगे को हटाने के लिए जूझ रही है शाह का कहना है कि भाजपा अगर बंगाल की सत्ता में आती है तो मुख्यमंत्री इसी श्री माटी का लाल बनेगा कोई बाहरी व्यक्ति नहीं.


                 तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता डेरेक ओ ब्रायन ने सोशल मीडिया पर जारी आंकड़ों में बंगाल में 300 भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या के साथ के दावे को निराधार बताते हुए कहा कि इसमें से ज्यादा लोग निजी दुश्मनी की वजह से मारे गए हैं कई मामलों में तो आत्महत्या को भी हत्या में शामिल कर लिया गया है इसके उलट 1997 से अब तक तृणमूल कांग्रेस के 1027 कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है कि भाजपा के नेताओं के बारे में कोई जानकारी सिर्फ और सिर्फ सियासी फायदा लेने का प्रयास कर रही है.


                   हालांकि सागे सांतिनिकेतन दौरे पर विवाद भी पैदा हो गया है दरअसल सा के दौरे से पहले ही स्थानीय संगठन की ओर से जो बैनर और कटआउट लगाए गए थे उनमें रवींद्नाथ से ऊपर सा की तस्वीर थी विश्व भारती के छात्रों के विरोध के बाद हालांकि बाद में उनको हटा दिया गया लेकिन तृणमूल कांग्रेस ने इस मौके पर सावर भाजपा को जमकर हमले किए इसके विरोध में पार्टी की ओर से  गुरु के जन्म स्थान जोरान शाम को मैं एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया.


             बंगाल की सत्ता पर कब्जे के लिए पाठ्यक्रम मूल कांग्रेस के बाहरी बनाम स्थानीय मुद्दे को गंभीरता से लेकर इसकी खाट की रणनीति के तहत ही मनीषियों से जुड़ी जगहों पर जाने का दौरा कर रहे हैं शायद उसने बीते साल की घटना से सबक सिखाएगी क्या उसे इसका कोई फायदा मिलेगा इस सवाल का जवाब तो आने वाले दिनों में ही मिलेगा लेकिन चुनावों से पहले स्थानीय बनाम बाहरी विवाद के और घर आने की संभावना है कुल मिलाकर के बंगाल का चुनाव समग्र रणनीति साया हत्या स्थानीय नाम बाहरी बांग्ला राष्ट्रवाद बनाम हिंदू राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों में उलझी है विकास शिक्षा स्वास्थ्य रोजगार जैसे मुद्दों पर ना तो सब कुछ कह रहा है और ना ही भाजपा की ओर से ऐसे मुद्दे उठाए जा रहे दोनों ही जनता की भावनाओं को उभारने की राजनीति में लगे हुए हैं जो जरूरतों पर अब तक किसी ने कोई पहल नहीं की है.

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