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असुरक्षित ऋण क्या होते हैं? भारतीय बैंकिंग संकट, अर्थव्यवस्था पर प्रभाव और RBI के समाधान की एक विस्तृत विवेचना करो।

Drafting और Structuring the Blog Post Title: "असुरक्षित ऋण: भारतीय बैंकिंग क्षेत्र और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, और RBI की भूमिका" Structure: परिचय असुरक्षित ऋण का मतलब और यह क्यों महत्वपूर्ण है। भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में असुरक्षित ऋणों का वर्तमान परिदृश्य। असुरक्षित ऋणों के बढ़ने के कारण आसान कर्ज नीति। उधारकर्ताओं की क्रेडिट प्रोफाइल का सही मूल्यांकन न होना। आर्थिक मंदी और बाहरी कारक। बैंकिंग क्षेत्र पर प्रभाव वित्तीय स्थिरता को खतरा। बैंकों की लाभप्रदता में गिरावट। अन्य उधारकर्ताओं को कर्ज मिलने में कठिनाई। व्यापक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव आर्थिक विकास में बाधा। निवेश में कमी। रोजगार और व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की भूमिका और समाधान सख्त नियामक नीतियां। उधार देने के मानकों को सुधारना। डूबत ऋण प्रबंधन (NPA) के लिए विशेष उपाय। डिजिटल और तकनीकी साधनों का उपयोग। उदाहरण और केस स्टडी भारतीय बैंकिंग संकट 2015-2020। YES बैंक और IL&FS के मामले। निष्कर्ष पाठकों के लिए सुझाव और RBI की जिम्मेदारी। B...

1857 की क्रांति या विद्रोह (indian first revolution 1857)

ब्रिटिश शासन के विरुद्ध असंतोष के कारण:


कंपनी के आर्थिक शोषण नीतियों से ग्रामीण अर्थव्यवस्था  चौपट हो गई थी.

. अत्यधिक भू राजस्व
. वसूली के कठोर नियम व तरीके
. हस्तशिल्प उद्योग का विनाश
. खाद्यान्न फसलों की जगह व्यवसायिक फसलों को बढ़ावा

. इनाम कमीशन:

.1852 में गठित इस कमीशन का उद्देश्य भूमि कर रोहित जागीरो का पता लगाकर उनका अधिग्रहण करना.

. डलहौजी के काल में 20000 से भी अधिक जागीर है अंग्रेजी हुकूमत ने अपने कब्जे में ले लिया की गई

. अंग्रेज व्यापारियों को सुविधाएं तट कर अतिरिक्त चुंगी कर में छूट इत्यादि
. भारत से कच्चे माल के निर्यात को बढ़ावा जिससे मुर्शिदाबाद सूरज जैसे व्यापारिक शहरों के उद्योग नष्ट हो गए.

. अकाल भुखमरी महामारी जैसी प्राकृतिक आपदाओं के समय की सरकार द्वारा कोई सहायता ना देकर लगान वसूली करना
. नागरिक और सैनिक सेवा में भारतीयों को कोई स्थान नहीं

. किसानों जनजातियों में सरकारी नीतियों के प्रति भयंकर असंतोष

राजनीतिक कारण:


डलहौजी के व्यापक गत सिद्धांत के तहत भारतीय रियासतों सातारा जैतपुर व संभल 1849 घाट 1850 उदयपुर अट्ठारह सौ बावन झांसी 18 सो 53 नागपुर 18 से 54 जैसी रियासतों का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय

तंजौर व कर्नाटक के राजा की मृत्यु के पश्चात उनकी उपाधियां समाप्त कर दी गई

पेशवा बाजीराव द्वितीय को उत्तराधिकार से वंचित कर दिया गया
नागपुर में शाही सामान की खुली नीलामी की गई
मुगल बादशाह बहादुर शाह द्वितीय  का नाम सिक्कों से हटा दिया गया और लाल किला खाली करें व दिल्ली के बाहर ं महरौली में रहने के लिए भी कहा गया

18 56 में अवध के विलय से भारतीय रियासतों और अवध के सैनिकों में विद्रोह हुआ वाह संतोष

सेना में भारतीयों को कम वेतन कोई पदोन्नति  नहीं मिलने से बाहर थी सैनिकों में असंतोष की लहर दौड़ गई

1806 में वेल्लूर में हुए सैनिक विद्रोह को भी दबा दिया गया

सो 64 में बंगाल में हुए सिपाही विद्रोह में 30 सैनिकों को गोली से भून दिया गया.

1824 में बैरकपुर छावनी में विद्रोह सैनिकों ने समुद्री मार्ग से बर्मा जाने से मना कर दिया परिणाम स्वरूप 47 मी रेजीमेंट भंग कर दी गई

1849 में 22 मी रेजीमेंट देसी पैदल सेना तथा 1850 में 66 विदेशी पैदल सेना एवं 1852 में देसी पैदल सेना ने बगावत की

तत्कालीन कारण:


भारतीय सैनिकों को पुरानी लोहे वाली बंदूक ब्राउन बस के स्थान पर नई एनफील्ड राइफल दी गई

जनवरी 18 सो 57 में बंगाल में अफवाह फैली की चर्बी वाले कारतूस में गाय और सुअर की चर्बी है
अंग्रेज इतिहासकार सर जान के ही जो उस समय कंपनी के राजनीतिक व गुप्त सचिव थे ने यह स्वीकार किया कि कारतूस बनाने में गाया हुआ सूअर की चर्बी का प्रयोग किया जाता था.

विद्रोह का आरंभ और प्रसार:


मार्च 1857 को बैरकपुर में मंगल पांडे नामक एक सैनिक ने इनकार दूसरों को मुंह से काटने से स्पष्ट मना कर दिया फलता 8 अप्रैल 18 57 को उसे फांसी दे दी गई.

24 अप्रैल 1857 को तीसरी भारतीय घुड़सवार ओं की सेना के 90 सैनिकों ने कार दूसरों के प्रयोग से इनकार करने पर सेना से हटाकर उन्हें मेरठ जेल में बंद कर दिया गया.

कुछ सिपाहियों ने 10 मई को जेल तोड़कर उन्हें आजाद कराया और रात में दिल्ली चले गए.
विद्रोही सैनिकों ने दिल्ली पहुंचकर बहादुर शाह द्वितीय को भारत सम्राट घोषित कर भारतीय रजवाड़ों को सहायता पत्र लिखा.

दिल्ली का अंग्रेज अधिकारी कर्नल रीप्ले मारा गया जगह-जगह सैनिकों ने विद्रोह किया.
इस विद्रोह का वास्तविक नेतृत्व दिल्ली में बहादुर शाह द्वितीय के सेनापति वक्त खाने किया जिसको बाद में संघर्ष करते हुए 13 मई अट्ठारह सौ उनसठ को मृत्यु हो गई.
भारतीय नेताओं के परस्पर तालमेल ना होने का फायदा उठाकर 5 दिन के संघर्ष के बाद 14 सितंबर 18 57 को अंग्रेजी सेना ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया इस संघर्ष में अंग्रेज अधिकारी जान निकल सन की मृत्यु हो गई प्रतिरोध हुआ हजारों दिल्ली वासियों को कृत्य कर दिया गया.

सम्राट बहादुरशाह के रिश्तेदार मिर्जा इलाही बख्श की सहायता से बहादुर शाह को गिरफ्तार कर रंगून भेज दिया गया जहां 18 सो 62 में उसकी मृत्यु हो गई

4 जून 1857 को अवध की बेगम हजरत महल ने अपने नाबालिग पुत्र बिरजिस कद्र  को नवाब घोषित कर दी के बगावत शुरू कर दी

ब्रिटिश सेना ने अवध रेजिडेंसी में शरण ली जहां क्रांतिकारियों ने आग लगा दी रेजिडेंसी रिलायंस की मृत्यु हो गई

जर्नल हैवलॉक इसे दबाने में असफल रहे बाद में कर्नल कैंपबेल ने को गोरखा रेजीमेंट की मदद से अवध में विद्रोह का दमन किया

5 जून 18 सो 57 को कानपुर विद्रोह हुआ जिसका नेतृत्व नाना साहब ने किया
तात्या टोपे और अजीमुल्लाह खाने कानपुर में इस विद्रोह को संगठित किया

कानपुर में सतीचौरा नामक गंगा घाट पर अंग्रेज परिवारों को नौका में बिठाकर गोलियों से भून दिया गया

झांसी में रानी लक्ष्मीबाई ने ब्रिटिश सेना से संघर्ष किया अंग्रेज अधिकारी हूओरोज द्वारा पराजित होने पर कालपी की ओर गई

 लक्ष्मीबाई ने टाटा टोपे की सहायता से ग्वालियर पर कब्जा किया किंतु ग्वालियर का राजा सिंधिया अंग्रेजों का राज भक्त बन रहा रहा उसने आगरा में शरण ली.

17 जून अट्ठारह सौ 58 को रानी वीरगति को प्राप्त हो गई.

बिहार में विद्रोह का नेतृत्व जगदीशपुर के 80 वर्षीय कुंवर सिंह ने किया.

आरा के निकट ब्रिटिश सैनिकों को पराजित किया परंतु 27 अप्रैल 458 को उनकी मृत्यु हो गई. रोहिलखंड में विद्रोह का नेतृत्व अहमदुल्लाह ने किया अहमदुल्लाह मूलता मद्रास का निवासी था जो फैजाबाद में रहता था उसने विद्रोह का खूब प्रचार किया जगन्नाथ सिंह के भाई ने उसे मरवा दिया हरियाणा पंजाब में भी विद्रोह भड़का दिल्ली से लगभग 300 सिपाहियों ने गुड़गांव पहुंचकर विद्रोह किया मेवात में खंजर उद्दीन नामक किसान के नेतृत्व में अहिरवार में राव तुला राम बाग गोपाल देव इसी प्रकार पलवल फरीदाबाद बहादुरगढ़ इत्यादि स्थानों पर भी लोगों ने अंग्रेजों के विरुद्ध बगावत की 16 नवंबर 1857 को नारनौल के समीप एक संघर्ष में 70 सैनिक मारे गए तथा 45 घायल हुए उनका कमांडर कर्नल जी लाडवा कैप्टन पैलेस भी मारे गए थे. हरसन को दिल्ली से रोहतक विद्रोह को दबाने के लिए भेजा गया पानीपत के दो अली कलंदर इमाम के नेतृत्व में विद्रोह हुआ बाद में इमाम को फांसी दे दी गई पंजाब में फिरोजपुर पेशावर मरदान जालंधर अजनाला इत्यादि स्थानों पर देसी पर दलों ने विद्रोह किया अट्ठारह सौ छप्पन सत्तावन और अट्ठारह सौ सत्तावन की प्रशासकीय की रिपोर्टों के अनुसार 386 व्यक्तियों को फांसी दी गई लगभग 2000 व्यक्ति मार दिए गए और 206 व्यक्तियों को अंडमान (काला पानी की) भेज दिया गया.



सभी स्थानों पर स्थानीय राजाओं की मदद से अंग्रेजों ने विद्रोह दबा दिया इंदौर के होल्कर में अंग्रेजों का साथ दिया किंतु उसके अनेक सैनिकों ने विद्रोह किया नवीनतम शोधों से ज्ञात है कि 18 सो 57 का विद्रोह कर्नाटक महाराष्ट्र आंध्र प्रदेश तमिलनाडु और केरल में भी व्याप्त था जो दक्षिण भारत में दूर तक फैला और गोवा पांडिचेरी भी इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके महाराष्ट्र में विद्रोह करने प्रारंभ रंगाबाबू की जी गुप्ते ने किया जो 1840 में सतारा के पूर्व राजा प्रताप सिंह के वकील के रूप में इंग्लैंड गए और 14 वर्ष पश्चात वापस आए उसने 10 जून 1857 को सतारा में और 13 जुलाई को पंढरपुर में विद्रोह किया रंगा जी ने आम व्यक्तियों को भर्ती कर अपनी सेना बनाए उन्हें भी समुद्र पार निष्कासन की सजा दी गई इसी संदर्भ में मान सिंह राजपूत को 20 जून 1857 को खुलेआम फांसी की सजा दी गई कोल्हापुर में अगस्त में सैनिक विद्रोह हुआ 27 वी पैदल सैनिक पलटन के व्यक्तियों ने रत्नागिरी के रास्ते में 3 यूरोपीय अफसरों को मार दिया मुंबई में फौज पलटन ओं में विद्रोह की तैयारी की योजना के प्रमुख सैयद हुसैन व मंगल को पकड़कर सरेआम तोप से उड़ा दिया गया हैदराबाद राज महेंद्री कुरनूल गुंटुर कडप्पा और विशाखापट्टनम से नल्लोर तक की समुद्र पट्टी विद्रोह का प्रमुख क्षेत्र हैदराबाद के सोना जी पंत ने रंगा राव पांडे के माध्यम से नाना साहब से पत्राचार किया प्रणाम तारणहारा अप्रैल 18 258 को नाना साहब का घोषणा पत्र और संदेश पूरे दक्षिण भारत में भेजा गया जिसमें विद्रोह के लिए जनता का आवाहन किया गया था सोनाजी पंत की मृत्यु हो जाने से रंगा राव पांडे ने स्थान स्थान पर घूम-घूम कर प्रचार किया अप्रैल 18 सो 59 में उन्हें गिरफ्तार कर अंडमान निर्वासित कर दिया गया गंजा में राधाकृष्ण दंडसेना संघर्ष किया उन्हें फांसी दे दी गई चिंता बूपथियाम सन्यासी भूपति ने 1818 में गोलकुंडा क्षेत्र में विद्रोह किया राज महेंद्री में भी 11 क्रांतिकारियों को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ षड्यंत्र में गिरफ्तार कर लिया गया यह विद्रोह मछलीपट्टनम और गुंटूर तक फैला कर्नाटक में मुख्य विद्रोह ब्रिटिश शिक्षा और धार्मिक नीति से प्रारंभ हुआ बेंगलुरु में 18 सो 55 में नॉर्मल स्कूल खोला मैसूर की 1858 - 59 रिपोर्ट से ज्ञात होता है कि वहां के लोगों ने इसे धर्म के लिए खतरा समझकर राजद्रोह आत्मक पत्र निकाले . जून 18 सो 57 में रामचंद्र व अन्य नेताओं ने अंग्रेजों के विरुद्ध प्रचार किया. जुलाई में बेंगलूर स्थित मद्रा सेना की आठवीं घुड़सवार सेना ने तथा अगस्त में बेलगांव में एबीसी पैदल सेना की पलटन ने विद्रोह किया सोलापुर के राजा नानक साहब को विद्रोह के लिए संदेश भेजें बाद में कर वार्ड में डिग्री पहाड़ियों के जंगल में भारतीय तथा बैठे सभा में मुठभेड़ हुई कई विद्रोहियों और रघुवरण वी शांताराम फडणवीस और सिद्धि विनोद को फांसी दे दी गई ढक्कन के विद्रोह का एक मुख्य केंद्र मद्रास मीरा जून 18 सो 57 में प्रथम मद्रास पलटन ने कुछ करने से मना कर दिया प्रथम मथुरा से निकलने कुछ करने से मना कर दिया जुलाई 1857 मद्रास के निकट सिंगलपुर विद्रोहियों का मुख्य केंद्र था निगम का मुख्य केंद्र रहा हिंदू मंदिर मनिक कम तथा पल्लवरम गुप्त कार्यवाही ओके केंद्र रहे. जिंगल पुर न्यायालय का मुंशी शायद हामूद जलाल भी विद्रोह में सहयोगी था. फरवरी 18 सो 58 में गुलाम गौस और शेख मनु ने विदेश विद्रोही कार्रवाई को जारी रखा उन्हें देश निकाला दे दिया गया वेल्लोर में नवंबर 18 सो 58 में कुछ सिपाहियों ने विद्रोह किया कैप्टन हार्ड और जेलर स्टेपल को मार दिया गया एक सिपाही को मृत्युदंड दिया गया अगस्त 18 सो 57 में सलेम में जुलाई को को एक भारी भीड़ ने बगावत की घोषणा कर दी केरल में केरल लोन कोचीन कालीकट इसके प्रमुख स्थल थे सितंबर 18 सो 57 में बानाजी कुदरत कुंजी मामा को उत्तेजक भाषण देने के आरोप में गिरफ्तार कर 8 वर्ष का कारावास दिया गया मालाबार में भी कुछ व्यक्ति राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किए गए त्रावणकोर में सैनिक एवं स्थानीय नागरिकों ने मिलकर विद्रोह करके अनाज की दुकानें खुलवा i20 फौजी गिरफ्तार किए गए गोवा में दीपू जी राणा में संघर्ष किया जो बाद में गिरफ्तार कर लिए गए.

सातारा - रंगा बापूजी गुप्ते
हैदराबाद - सोना जी पंडित रंगाराव पांडे मौलवी सैयद अलाउद्दीन आदि

कर्नाटक - भीमराव मुंडे की छोटा सिंह

कोल्हापुर - अन्ना जी फडणवीस तात्या मोती दे

मद्रास - गुलाम गौस खान सुल्तान बॉक्स

कोयंबटूर - मूलबगल स्वामी

केरल - विजय कुदरत कुंजी मामा मुल्लाह सलीम कौन जी मर कार इत्यादि

विद्रोह की असफलता के कारण 



सियार सीटों में आपसी मतभेद 550 से अधिक रियासतों में से कुछ सही राजाओं से विद्रोह में भाग लिया पंजाब का अधिकतर भूभाग राजपूताना तथा काश्मीर शांत रहे हैदराबाद के निजाम कश्मीर का राजा गुलाब सिंह पटियाला नाभा और जिनके सिख शासक इंदौर के होल्कर ग्वालियर के सिंधिया भोपाल का नवाब की का गढ़ टिहरी के राजाओं ने अपने पद तथा राज्य को बनाए रखने के लिए इस विद्रोह के जमाने में अंग्रेजों की जाए ताकि यह समस्त भारतवासियों से और हिम्मत से अंग्रेजों के विरुद्ध मिल जाते तो वे शीघ्र पूरी तरह से नष्ट हो जाते यदि पटियाला और जिनके राजा हमारे मित्र ना होते और पंजाब में शांति ना बनी रहती तो दिल्ली पर हमारा अधिकार असंभव होता विलियम w.h रसेल

जमीदारों साहूकार एवं व्यापारियों ने भी कंपनी को समर्थन दिया शिक्षित वर्ग तथा राष्ट्रीय बना रहा विद्रोह यद्यपि विस्तृत था किंतु उसके उद्देश्य सीमित है अंग्रेजों को भारत से बाहर खदेड़ने के पश्चात भारतीय शासन के स्वरूप के लिए रूपरेखा स्पष्ट नहीं थी असफलता के कई प्रमुख कारणों में से एक था श्रेष्ठ और देशव्यापी नेतृत्व की कमी विद्रोह के नेताओं में आपसी तालमेल और एकजुटता का भाव था एवं अखिल भारतीय स्तर पर नेतृत्व की कमी थी भारतीय सैनिकों का विद्रोह देश भक्ति धार्मिक जोश और निस्वार्थ भावना से ओतप्रोत था परंतु अनुशासन का सर्वथा अभाव सैनिक संगठन की कमी आधुनिक संस्थाओं की कमी तथा योग्य सेनापति का भाव विद्रोह की एक बड़ी कमजोरी निश्चित समय से पूर्व प्रारंभ हो जाना है वास्तव में विद्रोह की विफलता का कारण भारतीयों की भावनाओं करके राष्ट्रीय एकता की भावना की कमी ना होना बल्कि परस्पर फूड थी

कुछ प्रमुख ध्यान रखने वाले तथ्य


बहादुर शाह दिल्ली में प्रतीकात्मक ने तथा वास्तविक नेतृत्व सैनिकों की एक परिषद के हाथों में था जिसका प्रधान खान

18 57 के विद्रोह के समय भारत के गवर्नर लॉर्ड कैनिंग था यह विद्रोह सत्ता पर अधिकार के बाद लागू किए जाने वाले किसी सामाजिक विकल्प से रहित था 18 57 के विद्रोह में पंजाब राजपूताना हैदराबाद और मद्रास के सैनिकों ने बिल्कुल हिस्सा नहीं लिया विद्रोह के असफलता के कई कारण थे जिनमें प्रमुख एकता संगठन और संसाधनों की कमी बंगाल के जिम्मेदारों ने विद्रोह को कुचलने के लिए अंग्रेजों की मदद की विधि सावरकर ने अपनी पुस्तक भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के माध्यम से इस धारणा को जन्म दिया था किराम 57 का विद्रोह एक सुनियोजित राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम 18 57 का विद्रोह सैनिक विद्रोह नहीं था बल्कि समाज का प्रत्येक वर्गिस में शामिल था इस विद्रोह में लगभग डेढ़ लाख लोगों की जानें गई थी    

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