Drafting और Structuring the Blog Post Title: "असुरक्षित ऋण: भारतीय बैंकिंग क्षेत्र और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, और RBI की भूमिका" Structure: परिचय असुरक्षित ऋण का मतलब और यह क्यों महत्वपूर्ण है। भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में असुरक्षित ऋणों का वर्तमान परिदृश्य। असुरक्षित ऋणों के बढ़ने के कारण आसान कर्ज नीति। उधारकर्ताओं की क्रेडिट प्रोफाइल का सही मूल्यांकन न होना। आर्थिक मंदी और बाहरी कारक। बैंकिंग क्षेत्र पर प्रभाव वित्तीय स्थिरता को खतरा। बैंकों की लाभप्रदता में गिरावट। अन्य उधारकर्ताओं को कर्ज मिलने में कठिनाई। व्यापक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव आर्थिक विकास में बाधा। निवेश में कमी। रोजगार और व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की भूमिका और समाधान सख्त नियामक नीतियां। उधार देने के मानकों को सुधारना। डूबत ऋण प्रबंधन (NPA) के लिए विशेष उपाय। डिजिटल और तकनीकी साधनों का उपयोग। उदाहरण और केस स्टडी भारतीय बैंकिंग संकट 2015-2020। YES बैंक और IL&FS के मामले। निष्कर्ष पाठकों के लिए सुझाव और RBI की जिम्मेदारी। B...
बाबर ( 1526 - 1530)
दिल्ली सल्तनत का अंतिम शासक इब्राहिम लोदी को 1526 में पराजित कर बाबर ने मुगल साम्राज्य की स्थापना की.
बाबर फरगना का शासक था बाबर को भारत आने का निमंत्रण पंजाब के सूबेदार दौलत खालो दी तथा इब्राहिम लोदी के चाचा आलम खान लोधी ने दिया था.
बाबर ने पानीपत के प्रथम युद्ध से पूर्व भारत पर 4 बार आक्रमण किया था पानीपत विजय उसका पांचवा आक्रमण था.
बाबा ने जिस समय भारत पर आक्रमण किया था उस समय भारत में बंगाल मालवा गुजरात सिंह कश्मीर मेवाड़ खानदेश विजयनगर और बहमनी आदि एक स्वतंत्र राज्य थे.
बाबर का पानीपत के बाद दूसरा महत्वपूर्ण युद्ध राणा सांगा के विरुद्ध खानवा का युद्ध 1527 में हुआ था जिसमें विजय के पश्चात बाबर ने गाजी की उपाधि धारण की थी.
बाबा ने 1528 में मेदनी राय को परास्त कर चंदेरी पर अधिकार कर लिया.
बाबर ने 1529 में घाघरा के युद्ध में बिहार और बंगाल की संयुक्त अफगान सेना को पराजित किया जिसका नेतृत्व महमूद लोदी कर रहा था.
बाबर ने पानीपत के प्रथम" तुलगमा युद्ध पद्धति का प्रयोग किया था जिसे उसने उस जैपकों से ग्रहण किया था.
बाबर ने अपनी आत्मकथा बाबरनामा में विजयनगर के तत्कालीन शासक कृष्णदेव राय को समकालीन भारत का सबसे शक्तिशाली राजा कहां है
बाबर ने दिल्ली सल्तनत के शासकों की परंपरा सुल्तान को तोड़कर अपने आप को बादशाह घोषित किया
अपनी उदारता के कारण बाबर को कलंदर कहा जाता है उसने पानीपत की विजय के पश्चात काबुल के प्रत्येक निवासी को एक एक चांदी का सिक्का दान में दिया था
बाबर ने आगरा में बाघ लगवाया जिसे नूरे अफगान के नाम से जाना जाता है किंतु अभी से आरामबाग कहा जाता है. बाबर ने गजे बाबरी नामक नापने वाली की एक इकाई का प्रचलन किया.
हुमायूं (1530 - 1556)
बाबर की मृत्यु के बाद उसका पुत्र हुमायूं मुगल वंश के सिंहासन पर बैठा बाबर के चार पुत्रों कामरान असगरी हिंदल और हुमायूं में हुमायूं सबसे बड़ा था हुमायूं ने अपने साम्राज्य का विभाजन अपने भाइयों में किया था उसने कामरान को काबुल एवं कंधार तस्करी को संभल और हिंडाल्को अलवर प्रदान किया हुमायूं के सबसे बड़े शत्रु अफगान थे क्योंकि वह बाबर के समय ही मुगलों को भारत के बाहर खदेड़ने के लिए प्रयत्नशील थे हुमायूं का सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी अफगान नेता शेरखान था जिसे शेरशाह सूरी भी कहा जाता है हुमायूं का अफ़गानों से पहला मुकाबला 1532 में दो हरिया नामक स्थान पर हुआ इसमें आप गानों का नेतृत्व महमूद लोदी ने किया था इस संघर्ष में हुमायूं सफल रहा 1532 में हुमायूं ने शेर खान के चुनार किले पर घेरा डाला इस अभियान में शेर खान ने हुमायूं की अधीनता स्वीकार कर अपने पुत्र कुतुब खान के साथ एक अफगान टुकड़ी मुगलों की सेवा में भेज दी.15 से 32 ईसवी में हुमायूं ने दिल्ली में दिनपनाह नामक नगर की स्थापना की.
15 से 35 ईसवी में उसने बहादुर शाह को हराकर गुजरात और मालवा पर विजय प्राप्त की शेर खान की बढ़ती शक्ति को दबाने के लिए हुमायूं ने 1538 ईस्वी में चुनार गढ़ के किले पर दूसरा घेरा डालकर उसे अपने अधीन कर लिया 15 से 38 ईसवी में हुमायूं ने बंगाल को जीतकर मुगल शासक के अधीन कर लिया बंगाल विजय से लौटते समय 26 जून 1539 चौसा के युद्ध में शेर खा ने हुमायूं को बुरी तरह से पराजित किया शेरखान 17 मई 1540 को बिलग्राम के युद्ध में पुनः हुमायूं को पराजित कर दिल्ली की गद्दी पर बैठा हुमायूं को मजबूर होकर के भारत से बाहर भागना पड़ा 1544 में हुमायूं ईरान के शाह तह्मस्प के यहां शरण लेकर दोबारा से युद्ध की तैयारी में लग गया 1545 में हुमायूं ने कामरान से काबुल और कंधार छीन लिया 15 मई 1555 को मछीवाड़ा तथा 22 जून 1555 को सरहिंद के युद्ध में सिकंदर शाह सुरी को पराजित कर दिल्ली की गद्दी पर दोबारा अधिकार कर लिया दिल्ली पर अधिकार कर लिया 23 जुलाई 1555 को हुमायूं एक बार फिर भारत के सिंहासन पर आसीन हुआ परंतु अगले ही वर्ष 27 जनवरी 1556 को पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिर जाने से उसकी मृत्यु हो गई
“बैरम खान हुमायूं का योग एवं वफादार सेनापति था जिसने निर्वासन तथा पुनः राज सिंहासन प्राप्त करने में हुमायूं की मदद की थी.”
शेरशाह सूरी (1540 - 45)
बिलग्राम के युद्ध में हुमायूं को पराजित कर 1540 में 67 वर्ष की आयु में दिल्ली की गद्दी पर बैठा इसने मुगल साम्राज्य की नींव काटकर भारत में गानों का शासन स्थापित किया इसके बचपन का नाम फरीद था शेरशाह का पिता हसन खान जौनपुर का एक छोटा जागीरदार था दक्षिण बिहार के सूबेदार बाहर खा लोहानी ने शेर मारने के उपलक्ष में फरीद को शेर खान की उपाधि प्रदान की थी बाहर खा लो रानी की मृत्यु के बाद शेर खान ने उसकी विधवा दूदू बेगम से विवाह कर लिया 1539 में बंगाल के शासक नुसरत सा को पराजित करने के उपरांत शेर खान ने हजरत ए आला की उपाधि धारण की 1539 में चौसा के युद्ध में हुमायूं को पराजित करने के बाद शेर खान ने शेरशाह से की उपाधि धारण की 40 में दिल्ली की गद्दी पर बैठने के बाद शेरशाह ने सूर्यवंश अथवा दुतीय अफगान साम्राज्य की स्थापना की शेर खान ने अपनी उत्तरी पश्चिमी सीमा की सुरक्षा के लिए रोहतासगढ़ नामक एक सुदृढ़ किला बनवाया 1542 और 1543 में क्रमशः मालवा और रायसेन पर आक्रमण करके उसको अपने अधीन कर लिया 1544 में शेरशाह ने मारवाड़ के शासक मालदेव पर आक्रमण कर दिया बड़ी मुश्किल से सफलता मिली इस युद्ध में राजपूत सरदार गाय ता और कुप्पा ने अफगान सेना के छक्के छुड़ा दिए.1545 में शेरशाह ने कलिंजर के मजबूत के लिए पर गहरा डाला जो उस समय कीरत सिंह के अधिकार में था परंतु 22 मई 1545 को बारूद के ढेर में विस्फोट के कारण उसकी मृत्यु हो गई भारतीय इतिहास में शेर सा अपने कुशल शासन प्रबंधन के लिए विख्यात है शेरशाह ने भूमि राजस्व के महत्वपूर्ण परिवर्तन किया जिससे प्रभावित होकर अकबर ने भी इसे अपने शासन प्रबंधन का अंग बनाया प्रसिद्ध ग्रैंड ट्रंक रोड पेशावर से कोलकाता की मरम्मत करवाकर व्यापार और आवागमन को सुगम बनाया शेरशाह का मकबरा बिहार के सासाराम में स्थित है जो मध्य कालीन कला का एक उत्कृष्ट नमूना है शेरशाह की मृत्यु के बाद सूर वंश का शासन 1555 ईस्वी में हुमायूं द्वारा पुनः दिल्ली की गद्दी प्राप्त करने तक कायम रहा.
अकबर (1556 - 1605)
1556 में हुमायूं की मृत्यु के बाद उसके पुत्र अकबर का कलानौर नामक स्थान पर 14 फरवरी 1556 को मात्र 13 वर्ष की आयु में राज्य अभिषेक हुआ अकबर का जन्म 15 अक्टूबर 1542 को अमरकोट के राजा वीर माल के प्रसिद्ध महल में हुआ था अकबर ने बचपन से ही गजनी और लाहौर के सूबेदार के रूप में कार्य किया था भारत का शासक बनने के बाद 1556 से सोल 1560 तक अकबर बैरम खां के संरक्षण में रहा अकबर ने बैरम खान को अपने वजीर नियुक्त किया एवं उसे खाने खाना की उपाधि प्रदान की थी 5 नवंबर 1556 को पानीपत के द्वितीय युद्ध में अकबर की सेना का मुकाबला कौन शासक मोहम्मद आदिल शाह के योग्य सेनापति हेमू की सेना से हुआ जिसमें हेमू की हार एवं मृत्यु हो गई 1560 से 15 से 62 ईसवी तक 2 वर्ष तक अकबर अपनी धाय माँ महम अनगआ का उसके पुत्र आदम खान तथा उसके संबंधियों के प्रभाव में रहा इन 2 वर्षों के शासनकाल को पेटीकोट सरकार की संज्ञा दी गई है.
अकबर ने दक्षिण भारत के राज्यों पर अपना आधिपत्य स्थापित किया खानदेश 1551 दौलताबाद 1599 अहमदनगर 1608 असीरगढ़ 1601 मुगल शासन के अधीन किए गए.
अकबर ने भारत के 1 बड़े साम्राज्य की स्थापना की परंतु इससे ज्यादा वह अपनी धार्मिक सहिष्णुता के लिए विख्यात था
अकबर ने 1575 ईसवी में फतेहपुर सीकरी में इबादत खाना की स्थापना के इस्लामी विद्वानों की आस्था से दुखी होकर अकबर ने 1578 में इबादत खाना में सभी धर्मों के विद्वानों को आमंत्रित करना शुरू किया 1582 में अकबर ने एक नवीन धर्म तो ही दे इलाही या दीन ए इलाही की स्थापना की जो वास्तु में विभिन्न धर्मों के अच्छे तत्वों का सम्मिश्रण था का प्रयास किया साथ ही विधवा विवाह को कानूनी मान्यता दी अकबर ने लड़कों के विवाह की आयु 16 वर्ष और लड़कियों के लिए 14 वर्ष निर्धारित की अकबर ने 1562 में दास प्रथा का अंत किया तथा 1563 ईस्वी में तीर्थ यात्रा पर कर समाप्त किया अकबर ने 1564 में जजिया कर समाप्त कर सामाजिक सद्भावना को सूत्रण किया अकबर ने 1579 में महज अथवा अमोघ व्रत की घोषणा की अकबर ने गुजरात विजय की स्मृति में फतेहपुर सीकरी में बुलंद दरवाजा का निर्माण कराया अकबर ने 1575 76 में संपूर्ण साम्राज्य को 12 प्रांतों में बांट दिया जिनकी संख्या बराड़ खानदेश और अहमदनगर जीतने के बाद बढ़कर 15 हो गई.
अकबर ने संपूर्ण साम्राज्य में एक सरकारी भाषा फारसी एक समान मुद्रा प्रणाली समान प्रशासनिक व्यवस्था तथा समान बांटना प्रणाली की शुरुआत के अकबर ने 1573 74 में मनसबदारी प्रथा की शुरुआत की जिसकी प्रेरणा उसे खलीफा अब्बा सहीद द्वारा शुरू की गई तथा चंगेज खां और तैमूर लंग द्वारा स्वीकृत सैनिक व्यवस्था से मिली थी.
जहांगीर (1605 - 27)
17 अक्टूबर 1605 को अकबर की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र सलीम जहांगीर के नाम से मुगल साम्राज्य की गद्दी पर बैठा गद्दी पर बैठते ही सर्वप्रथम 1606 ईस्वी में जहांगीर को अपने पुत्र खुसरो के विद्रोह का सामना करना पड़ा जहां गिरोह खुसरो के बीच वेरावल नामक स्थान पर एक युद्ध हुआ जिसमें खुसरो पराजित हुआ खुसरो को सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव का आशीर्वाद प्राप्त था जहांगीर ने अर्जुन देव को राजद्रोह का आरोप लगाकर फांसी की सजा दी 1585 में जहांगीर का विवाह आमेर के राजा भगवानदास की पुत्री तथा मान सिंह की बहन मान बाई के साथ हुआ खुसरो मानबाई का ही पुत्र था जहांगीर का दूसरा विवाह राजा उदय सिंह की पुत्री जगत गोसाई से हुआ जिसकी संतान शहजादा खुर्रम शाहजहां था.
मई 1611 में जहांगीर ने मेहरून्निसा नामक एक विधवा से विवाह किया जो फारस के मिर्जा गयास बैग की पुत्री थी जहांगीर ने मेहरून्निसा को नूर महल एवं नूरजहां की उपाधि दी.
नूरजहां के पिता गया सुबह को वजीर का पद प्रदान करें ए तात्मा दौला की उपाधि दी गई जबकि उसके भाई आसिफ खान को खाने सामा का पद दिया गया.
1605 से 1615 के मध्य कई लड़कियों के बाद जहांगीर ने मेवाड़ के राजा अमर सिंह से संधि कर ली अकबर के समय से ही खानदेश तथा अहमदनगर के कुछ भागों को जीत लिया गया था परंतु अहमदनगर का राज्य समाप्त नहीं हुआ था मुगलों और अहमदनगर के बीच का युद्ध हुए और अंततः 1621 में दोनों के बीच संधि हो गई 1621 में जहांगीर ने अपना दक्षिण अभियान समाप्त कर दिया क्योंकि इसके बाद वह 16 से 23 ईसवी में शाहजहां के विद्रोह 1626 यूपी में महावत खाकर विद्रोह के कारण उलझ गया था जहांगीर और दक्षिण विजय में सबसे बड़ी बाधा अहमदनगर के योग्य वजीर मलिक अंबर की उपस्थिति थी उसने मुगलों के विरुद्ध गोरिल्ला युद्ध नीति अपनाई और बड़ी संख्या में सेना में मराठों की भर्ती की जहांगीर ने 1611 में खरीदा 1615 में खोखर 1620 में कश्मीर के दक्षिण में किस द्वारा तथा 1620 में ही कांग्ला को जीता था जहांगीर के शासन की सबसे उल्लेखनीय सफलता 1620 में उत्तरी पूर्वी पंजाब की पहाड़ियों पर स्थित कभी तो जहांगीर के शासन काल की एक महत्वपूर्ण घटना थी महावत खाने जहांगीर को बंदी बना लिया था नूरजहां की बुद्धिमानी के कारण महावत ख़ां की योजना असफल सिद्ध हुए नूरजहां से संबंधित सबसे महत्वपूर्ण घटना उसके द्वारा बनाया गया जनता जुन्टा गुट था इस ग्रुप में उसके पिता एत्मदौला माता अस्मत बेगम भाई आसिफ खान और शहजादा खुर्रम सम्मिलित थे.
नूरजहां जहांगीर के साथ झरोखा दर्शन देती थी सिक्कों पर बादशाह के साथ उसका नाम भी अंकित होता था नूरजहां के चरित्र की सबसे मुख्य विशेषता उसकी अपरिमित महत्वकांक्षी थी.
जहांगीर ने तुजुक ए जहांगीरी नामक से अपनी आत्मकथा की रचना की है.
जहांगीर ने तंबाकू के सेवन पर प्रतिबंध लगाया था.
जहांगीर के शासनकाल में इंग्लैंड के सम्राट जेम्स प्रथम ने कैप्टन हॉकिंस 1608 और थॉमस 1615 को भारत भेजा जिससे अंग्रेज भारत में कुछ व्यापारिक सुविधाएं प्त करने में सफल हुए.
नूरजहां की मां अस्मत बेगम ने इत्र बनाने की विधि का आविष्कार किया था
जहांगीर धार्मिक दृष्टि से सभी धर्मों के प्रति लगाव रखता था . वह अकबर की तरह ब्राह्मणों और मंदिरों को दान देता था उसने 1612 ईस्वी में पहली बार रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया था किंतु कुछ अवसरों पर जहांगीर ने इस्लाम का पक्ष लिया कांगड़ा का किला जीतने के बाद उसने एक गाय कटवा कर जश्न मनाया.
अकबर सलीम को शेखो बाबा कहकर बुलाता था उसने अकबर द्वारा जारी गौ हत्या निषेध की परंपरा को जारी रखा. जहांगीर ने सूरदास को अपने दरबार में आश्रय दिया था जिसने सूरसागर की रचना की जहांगीर के शासनकाल में कला और साहित्य का काफी उत्कृष्ट प्रभाव था और विकास हुआ. नंबर 1627 में जहांगीर की मृत्यु हो गई उसे लाहौर के शाहदरा में रावी नदी के किनारे दफनाया गया था।
शाहजहां (1627 - 1658)
शाहजहांपुर राम का जन्म 1592 ईस्वी में जहांगीर की पत्नी जगत गोसाई से हुआ था शाहजहां दक्कन में था जहांगीर की मृत्यु के बाद नूरजहां ने लाहौर में अपने दामाद सहार खा को भी सम्राट घोषित कर दिया था जबकि आसफ खाने शाहजहां के दक्कन से आगरा वापस आने तक अंतरिम व्यवस्था के रूप में खुसर केपुत्र दवार बख्श को राजगद्दी पर आसीन किया
शाहजहां ने अपने सभी भाइयों सिंहासन के सभी प्रतिनिधियों तथा अंत में दवार बक्स की हत्या कर 24 फरवरी 1628 में आगरा के सिंहासन पर बैठा.
शाहजहां का विवाह 1612 में आसिफ खान की पुत्री और नूरजहां की भतीजी अंजुमन बानो बेगम से हुआ जो बाद में इतिहास में मुमताज महल के नाम से विख्यात हुई.
शाहजहां को मुमताज महल से 1497 उत्पन्न हुई लेकिन उनमें से चार पुत्रों तीन पुत्रियां ही जीवित रहे चार पुत्रों में दारा शिकोह औरंगजेब मुराद बख्श और सूजा थे जबकि रोशन आरा गुनारा और जहांआरा पुत्रियां थी.
शाहजहां के प्रारंभिक 3 वर्ष बुंदेला नायक जुझार सिंह और खाने जहां लोधी नामक अफगान सरदार के विद्रोह को दबाने में निकले.
शाहजहां के शासनकाल में सिखों के छठे गुरु हरगोविंद इनसे मुगलों का संघर्ष हुआ जिसमें सिखों की हार हुई शाहजहां ने दक्षिण भारत में सर्वप्रथम अहमदनगर पर आक्रमण करके 1633 ईस्वी में उसे मुगल साम्राज्य में मिला लिया फरवरी 1636 में गोलकुंडा के सुल्तान अब्दुल्ला शाह ने शाहजहां का आधिपत्य स्वीकार कर लिया मोहम्मद सैयद गोलकुंडा के वजीर शाहजहां को कोहिनूर हीरा भेंट किया शाहजहां ने 16 से 36 ईसवी में हुई बीजापुर पर आक्रमण कर उसके शासक मोहम्मद आदिल शाह प्रथम को संधि करने के लिए विवश किया .
शाहजहां ने 1636 में बीजापुर पर आक्रमण करके उसके शासक मोहम्मद आदिल शाह प्रथम को संधि करने के लिए विवश किया.
मध्य एशिया पर विजय प्राप्त करने के लिए शाहजहां ने 1645 में शहजादा मुराद एवं 1647 में औरंगजेब को भेजा पर उसको सफलता प्राप्त ना हो सके. व्यापार कला साहित्य और स्थापत्य क्षेत्र में चरमोत्कर्ष के कारण इतिहासकारों ने शाहजहां के शासन काल को स्वर्ण काल की संज्ञा दी है.
शाहजहां ने दिल्ली में लाल किला और जामा मस्जिद का निर्माण कराया और आगरा में अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में ताजमहल बनवाया जो कला और स्थापत्य का उत्कृष्ट नमूना प्रस्तुत करते हैं शाहजहां ने अपने शासनकाल के प्रारंभिक वर्षों में इस्लाम का पक्ष लिया किंतु कालांतर में धारा और जहांआरा के प्रभाव के कारण वह धर्मनिरपेक्ष बन गया.
शाहजहां ने अहमदाबाद के चिंतामणि मंदिर की मरम्मत किए जाने की आज्ञा दी तथा खमबाट के नागरिकों के अनुरोध पर वहां गो हत्या बंद करवा दी थी.
शाहजहां के अंतिम 8 वर्ष आगरा के किले के शाहपुर जिम में एक बंदी की तरह व्यतीत हुए शाहजहां द्वारा को बादशाह बनाना चाहता था किंतु अप्रैल 1658 ईस्वी में धर्मत के युद्ध में औरंगजेब ने दारा शिकोह को पराजित कर दिया बनारस के पास बहादुरपुर के युद्ध में सासूचा शाही सेना से भी पराजित हुआ.
औरंगजेब (1658 - 1707)
औरंगजेब का जन्म 3 नवंबर 1618 को उज्जैन के निकट दोहन नामक स्थान पर हुआ था उत्तराधिकार के युद्ध में विजई होने के बाद औरंगजेब 21 जुलाई 1658 को मुगल समराज की गद्दी पर आसीन हुआ एक शासक के सारे गुण औरंगजेब में थे उसने प्रशासन का अनुभव भी था क्योंकि बादशाह बनने से पहले वह दक्कन गुजरात मुल्तान वाशिंदे प्रदेशों का गवर्नर रह चुका था औरंगजेब ने 1661 में मीर जुमला को बंगाल का सूबेदार नियुक्त किया जिसने कुछ बिहार की राजधानी को जीत लिया 1662 में मीर जुमला ने अब होम की राजधानी गढ़वाल गांव पहुंचा जहां बाद में हो मोहन ने मुगलों से संधि कर वार्षिक कर देना स्वीकार कर लिया 1663 में मीर जुमला की मृत्यु के बाद औरंगजेब ने संस्था का को बंगाल का गवर्नर नियुक्त किया शाइस्ता खाने 1666 ईस्वी में पुर्तगालियों को दंड दिया तथा बंगाल की खाड़ी में स्थित संदीप पर अधिकार कर लिया कालांतर में उसने अराकान के राजा से चटगांव जीत लिया था औरंगजेब शाहजहां के काल में 1636 से 1644 ईस्वी तक दक्षिण के सूबेदार के रूप में रहा और औरंगाबाद मुगलों के दक्षिण सुबह की राजधानी थी शासक बनने के बाद औरंगजेब ने दक्षिण में लड़े गए युद्ध होम को दो भागों में बांटा जा सकता है बीजापुर तथा गोलकुंडा के विरुद्ध युद्ध और मराठों के साथ युद्ध औरंगजेब ने 1665 में राजा जयसिंह को बीजापुर एवं शिवाजी का दमन करने के लिए भेजा जयसिंह ने शिवाजी को पराजित कर पुरंदर संधि 1665 में करने के लिए विवश किया किंतु जैसे को बीजापुर के विरुद्ध सफलता नहीं मिली पुरंदर की संधि के अनुसार शिवाजी को अपने 23 किले मुगलों को सौंपने पड़े तथा बीजापुर के खिलाफ मुगलों की सहायता करने का वचन देना पड़ा.
1676 में मुगल सूबेदार दिलेर खाने बीजापुर को संधि करने के लिए विवश किया अंततः 1686 इसवी में बीजापुर के सुल्तान सिकंदर आदिल शाह ने औरंगजेब के समाचार समर्पण कर दिया फलस्वरूप बीजापुर को मुगल साम्राज्य में मिला लिया गया 1687 में औरंगजेब ने गोलकुंडा पर आक्रमण करके 8 महीने तक घेरा डाले रखा है इसके बावजूद सफलता नहीं मिली अंतत अक्टूबर 1687 में गोलकुंडा को मुगल साम्राज्य में मिला लिया गया जय सिंह के बुलाने पर शिवाजी औरंगजेब के दरबार में आया जहां उसे कैद कर लिया गया किंतु वह गुप्त रूप से फरार हो गया शिवाजी की मृत्यु के बाद उसके पुत्र संभाजी ने मुगलों से संघर्ष जारी रखा किंतु 1689 में उसकी पकड़ कर हत्या कर दी गई संभाजी की मृत्यु के बाद उसके सौतेले भाई राजाराम ने भी मुगलों से संघर्ष जारी रखा जिसे मराठा इतिहास में स्वतंत्रता संग्राम के नाम से जाना जाता है और राजपूतों के प्रति अकबर जहांगीर शाहजहां द्वारा अपनाई गई नीति में परिवर्तन की औरंगजेब के समय आमेर जयपुर के राजा जय सिंह मेवाड़ के राजा राज सिंह और जोधपुर के राजा जसवंत सिंह प्रमुख राजपूत राजा थे मारवाड़ और मुगलों के बीच हुए 30 वर्षीय युद्ध 1679 तक का नायक दुर्गादास था जिसे कर्नल टॉड ने यूनीसिस कहां है.
औरंगजेब ने सिखों के 90 गुरु तेज बहादुर की हत्या करवा दी औरंगजेब के समय कुछ प्रमुख विद्रोह में अकान विद्रोह 1667 से 1672 जाट विद्रोह 1679 69 से 18 सो 81 सतनामी विद्रोह 1672 से पति का विद्रोह 1681 अंग्रेजों का विद्रोह 1686 राजपूत पितरों 1680 से 1709 और सिख विद्रोह 1675 से 170 7 भी शामिल है.
औरंगजेब एक कट्टर रूढ़िवादी सुन्नी मुसलमान था उसका प्रमुख लक्ष्य भारत में दारुल हर्ष के स्थान पर दारुल इस्लाम की स्थापना करना था.
औरंगजेब ने 1679 ईस्वी में हिंदुओं पर जजिया कर आरोपित किया दूसरी और उसके शासनकाल में हिंदू अधिकारियों की संख्या संपूर्ण मुगल इतिहास में सर्वाधिक रही औरंगजेब की मृत्यु 88 वर्ष की आयु में 3 मार्च 1707 को हो गई थी.
मुगल प्रशासन
शक्ति पर आधारित एक केंद्रीकृत व्यवस्था थी मुगलों ने एक ऐसे समाज की स्थापना की जिस पर खलीफा जैसी किसी विदेशी सत्ता का कोई अंकुश नहीं था मुगलकालीन राजत्व सिद्धांत की स्पष्ट व्याख्या अबुल फजल ने आईने अकबरी में की है मुगल सम्राट सशस्त्र सेनाओं का सर्वोच्च सेनापति तथा सर्वोच्च न्यायाधीश था वास्तव में साम्राज्य की सारी शक्तियां सम्राट में ही निहित होती थी.
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