Skip to main content

Indus Valley Civilization क्या है ? इसको विस्तार से विश्लेषण करो ।

🧾 सबसे पहले — ब्लॉग की ड्राफ्टिंग (Outline) आपका ब्लॉग “ सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) ” पर होगा, और इसे SEO और शैक्षणिक दोनों दृष्टि से इस तरह ड्राफ्ट किया गया है ।👇 🔹 ब्लॉग का संपूर्ण ढांचा परिचय (Introduction) सिंधु घाटी सभ्यता का उद्भव और समयकाल विकास के चरण (Pre, Early, Mature, Late Harappan) मुख्य स्थल एवं खोजें (Important Sites and Excavations) नगर योजना और वास्तुकला (Town Planning & Architecture) आर्थिक जीवन, कृषि एवं व्यापार (Economy, Agriculture & Trade) कला, उद्योग एवं हस्तकला (Art, Craft & Industry) धर्म, सामाजिक जीवन और संस्कृति (Religion & Social Life) लिपि एवं भाषा (Script & Language) सभ्यता के पतन के कारण (Causes of Decline) सिंधु सभ्यता और अन्य सभ्यताओं की तुलना (Comparative Study) महत्वपूर्ण पुरातात्त्विक खोजें और केस स्टडी (Key Archaeological Cases) भारत में आधुनिक शहरी योजना पर प्रभाव (Legacy & Modern Relevance) निष्कर्ष (Conclusion) FAQ / सामान्य प्रश्न 🏛️ अब ...

मराठा साम्राज्य और संघ (maratha empire)

17 वीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य के विघटन की प्रक्रिया प्रारंभ होने के साथ ही भारत में स्वतंत्र राज्यों की स्थापना शुरू हो गई नए-नए स्वतंत्र राज्यों में मराठों का उद्भव एक महत्वपूर्ण घटना है.



एक शक्तिशाली राज्य के रूप में मराठों के उत्कर्ष ने अनेक कारणों का योगदान रहा है जिनमें भौगोलिक परिस्थिति औरंगजेब हिंदू विरोधी नीतियां और मराठा संत कवियों की प्रेरणा महत्वपूर्ण कारक है.

प्रारंभ में मराठे सिपहसालार और मनसबदार के रूप में बीजापुर और अहमदनगर राज्यों में नौकरी करते थे.

                              शिवाजी (1627 - 1680)                   


शिवाजी का जन्म पूर्णा के निकट शिवनेर के किले में 20 अप्रैल 1627 ईस्वी को हुआ था शिवाजी शाहजी भोंसले और जीजा बाई के पुत्र थे.

. शिवाजी ने एक हिंदू स्वतंत्र राज्य की स्थापना करके हिंदू धर्म उद्धारक और गैर ब्राह्मण प्रतिपालक उपाधि धारण की.

शिवाजी के संरक्षक और शिक्षक कोणदेव तथा समर्थ रामदास गुरु थे.

शिवाजी ने 1656 में रायगढ़ को मराठा राज्य की राजधानी बनाया.

शिवाजी ने अपने राज्य के विस्तार का आरंभ 1643 ईस्वी में बीजापुर के सिंह गढ़ किले को जीतकर किया.  1646 ईस्वी में तोरण के किले पर भी शिवाजी का आधिपत्य स्थापित हो गया.

शिवाजी की विस्तार वादी नीति से बीजापुर का शासक अत्यधिक चिंतित हो गया उसने शिवाजी की शक्ति को दबाने के लिए सो नायक सरदार अफजल खान को भेजा शिवाजी ने 1659 ईस्वी में अफजल खान को पराजित कर उसकी हत्या कर दी.


शिवाजी की बढ़ती शक्ति से घबराकर औरंगजेब ने शाइस्ता खान को दक्षिण का गवर्नर नियुक्त किया शिवाजी ने 1663 ईस्वी में शाइस्ता खान को पराजित कर दिया.

औरंगजेब ने शाइस्ता खान के असफल होने पर शिवाजी की शक्ति का दमन करने के लिए आमेर के मिर्जा राजा जयसिंह को दक्षिण भेजा.

जय सिंह के नेतृत्व में पुरंदर के किले पर मुगलों की विजय तथा रायगढ़ की घेराबंदी के बाद जून 1665 में मुगलों और शिवाजी के बीच पुरंदर की संधि हुई.

1670 ईस्वी में शिवाजी ने मुगलों के विरुद्ध अभियान छेड़ कर पुरंदर की संधि द्वारा खोए हुए किलो को पुनः जीत लिया 1670 ईस्वी में शिवाजी ने सूरत को लूटा तथा मुगलों से चौथ की मांग की.

1674 ईस्वी में शिवाजी ने रायगढ़ के किले में छत्रपति की उपाधि के साथ अपना राज्य अभिषेक करवाया. अपने राज्याभिषेक के बाद शिवाजी का अंतिम महत्वपूर्ण अभियान कर्नाटक अभियान 1676 ईस्वी था.

12 अप्रैल 1680 में शिवाजी की मृत्यु हो गई.





शिवाजी की प्रशासन व्यवस्था अधिकारिता दक्कन की सल्तनत से ली गई है जिसके शीर्ष पर छत्रपति होता था.

शिवाजी ने अष्टप्रधान नामक मंत्रियों की एक परिषद की स्थापना की थी यह मंत्री सचिव के रूप में प्रशासन का कार्य संभालते थे.


पेशवा:


यह अष्टप्रधान में सर्वोच्च पद था. राज्य का प्रधानमंत्री था.
मजूमदार या अमात्य:


यह राज्य की आय-व्यय का लेखा-जोखा रखता था.
वाकया नवीस:
यह सूचना गुप्तचर एवं संधि विग्रह के विभागों का अध्यक्ष होता था.


चिटनीस:


यह राजकीय पत्र व्यवहार का कार्य देखता था.


दबीर :
यह विदेशी मामलों का प्रभारी था.



सेनापति या सर यह नौबत:
यह सेना की भर्ती संगठन प्रसाद आदि के प्रबंधन कार्य संभालता था!
पंडितराव:
यह विद्वानों एवं धार्मिक कार्यों के लिए दिए जाने वाले अनुदान ओं का दायित्व संभालता था.


न्यायाधीश:
मुख्य न्यायाधीश होता था


शिवाजी ने अपने राज्यों को चार प्रांतों में विभक्त किया था! जो वायसराय के अधीन होते थे.
प्रांतों को पर गानों और तालुको में विभाजित किया गया था.


सैन्य व्यवस्था:


शिवाजी ने अपनी सेना को दो भागों में विभक्त किया था.

बरगीर

सिलेहदार


बरगीर सेना वह थी जो छत्रपति द्वारा नियुक्त की जाती थी जिसे राज्य की ओर से वेतन एवं सुविधाएं प्रदान की जाती थी।

सिलेहदार स्वतंत्र सैनिक थे। जो अस्त्र-शस्त्र स्वयं रखते थे। शिवाजी ने नौसेना की भी स्थापना की थी गवली सैनिक शिवाजी के अंगरक्षक थे गावली एक पहाड़ी लड़ाकू जाती है।

शिवाजी की सेना में मुसलमान सैनिक भी थे लेकिन उनकी सेना में स्त्रियों के लिए स्थान नहीं था।

शाही घुड़सवार सैनिकों को पागा कहा जाता था।

सर ए नौबत संपूर्ण घुड़सवार सेना का प्रधान होता था।


                  राजस्व व्यवस्था


की राजस्व व्यवस्था मलिक अंबर की भूमिका वाली व्यवस्था से पहले थी। भूमि की पैमाइश लिए काठी या गरीब का इस्तेमाल किया जाता था। शिवाजी के समय में कुल उपज का 33% लिया जाता था जो बाद में 40% हो गया।

चौथ


सामान्य रूप से चौथ मुगल क्षेत्रों की भूमि तथा पड़ोसी राज्यों की आय का चौथा हिस्सा होता था इसलिए उस चौथ हो वसूल करने के लिए उस क्षेत्र पर आक्रमण तक करना होता था।


सरदेशमुखी:

.
यह कर वंशानुगत रूप से उस प्रदेश का सरदेशमुखी होने के नाते वसूल किया जाता था शिवाजी के अनुसार लोगों  के हितों की रक्षा करने के बदले उन्हें सरदेशमुखी लेने का अधिकार है. यह आय का 10% था. “जदुनाथ सरकार के अनुसार यह मराठा आक्रमण से बचने के वश में वसूल किया जाने वाला कर था”.

             

                   शिवाजी के उत्तराधिकारी


संभाजी (1680 - 1689)


शिवाजी की मृत्यु के बाद मराठा साम्राज्य उत्तराधिकार के संघर्ष में उलझ गया शिवाजी की  पत्नियों से उत्पन्न दो पुत्रों संभाजी और राजा राम के बीच उत्तराधिकार के लिए संघर्षण छेड़ा गया.

राजाराम को गद्दी से हटा करके संभाजी 20 जुलाई 1680 को मराठा साम्राज्य की गद्दी पर आसीन हुआ संभाजी ने एक उत्तर भारतीय ब्राह्मण कवि कलश को प्रशासन का सर्वोच्च अधिकारी नियुक्त किया संभाजी ने 1681 में औरंगजेब के विद्रोही पुत्र अकबर द्वितीय को शरण दी. मार्च 1689 में औरंगजेब ने संभाजी की हत्या कर मराठा राजधानी रायगढ़ पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया औरंगजेब ने इसी समय संभाजी के पुत्र साहू को रायगढ़ के किले में बंदी बना लिया.

राजाराम (1689 - 1700)


संभाजी की मृत्यु के बाद राजा राम को मराठा साम्राज्य का छत्रपति घोषित किया गया. राजाराम मुगलों के आक्रमण के भय से अपनी राजधानी को रायगढ़ से जिंजी लाया। 1698 तक जिंजी मुगलों के विरुद्ध मराठा गतिविधियों का केंद्र रहा 1699 ईस्वी में सातारा मराठों की राजधानी बना।

राजाराम अपने को संभाजी के पुत्र साहू का प्रतिनिधि मानकर गद्दी पर कभी नहीं बैठा राजाराम के नेतृत्व में मराठों ने मुगलों के विरुद्ध स्वतंत्रता के लिए अभियान शुरू किया जो 1700 तक चलता रहा।

राजा राम की मृत्यु के बाद 1700 ईस्वी में उसकी विधवा पत्नी ताराबाई ने अपने 4 वर्षीय पुत्र शिवाजी द्वितीय को गद्दी पर बैठाया और मुगलों के विरुद्ध संघर्ष जारी रखा।

शाहू(1707~1748)


औरंगजेब की 1707 ईस्वी में मृत्यु के बाद उसके पुत्र बहादुर शाह प्रथम ने साहू को कैद से मुक्त कर दिया अक्टूबर 1707 में साहू और ताराबाई के मध्य खेड़ा का युद्ध हुआ जिसमें साहू बालाजी विश्वनाथ की मदद से विजई हुआ.

साहू ने 1713 ईस्वी में बालाजी को पेशवा के पद पर नियुक्त किया बालाजी विश्वनाथ की नियुक्ति के साथ ही पेशवा का पद शक्तिशाली हो गया. छत्रपति नाममात्र का शासक रह गया.


                 पेशवा बने मराठा साम्राज्य के उत्तराधिकारी या पेशवाओं के अधीन मराठा साम्राज्य


बालाजी विश्वनाथ(1713~1720)


बालाजी विश्वनाथ एक ब्राह्मण था बालाजी ने अपना राजनीतिक जीवन एक छोटे से राजस्व अधिकारी के रूप में शुरू किया था बालाजी विश्वनाथ की सबसे बड़ी उपलब्धि मुगलों तथा मराठों के मध्य एक स्थाई समझौते की व्यवस्था थी जिसमें दोनों पक्षों के अधिकार तथा प्रभाव क्षेत्र की विधिवत व्यवस्था की गई थी.

बालाजी विश्वनाथ को सम्राट निर्माता भी कहा जाता है उसने मुगलों की राजधानी में अपनी एक बड़ी सेना भेजकर सैयद बंधुओं की सहायता की थी जो मुगल इतिहास के किंग मेकर के रूप में प्रसिद्ध है.

मुगल सूबेदार हुसैन अली तथा बालाजी विश्वनाथ के बीच 17 से 19 ईसवी में हुई संधि को मराठा साम्राज्य के मैग्नाकार्टा की संज्ञा दी गई है.

बाजीराव प्रथम(1720~1740)


बालाजी विश्वनाथ की 1720 में मृत्यु के बाद उसके पुत्र बाजीराव प्रथम को साहू ने पेशवा नियुक्त किया बाजीराव प्रथम के पेशवा काल में मराठा शक्ति चरमोत्कर्ष पर पहुंच गई थी.

1724 ईस्वी में शूकर खेड़ा के युद्ध में मराठों की मदद से निजाम उल मुल्क ने दक्कन में मुगल सूबेदार मुबारिक खान को परास्त कर एक स्वतंत्र राज की स्थापना की. निजाम उल मुल्क ने अपनी स्थिति मजबूत करने के बाद मराठों के विरुद्ध कार्रवाई शुरू कर दी. बाजीराव प्रथम ने 1728 ईस्वी में पाल खेड़ा के युद्ध में निजाम उल मुल्क को पराजित किया.

1728 ईस्वी में निजाम उल मुल्क एवं बाजीराव प्रथम के बीच एक मुंशी शिव गांव की संधि हुई जिसमें निजाम उल मुल्क ने मराठों को चौथे एवं सरदेशमुखी देना स्वीकार किया.

बाजीराव प्रथम ने हिंदू पद पादशाही के आदर्शों के प्रसार के लिए प्रश्न किया. बाजीराव प्रथम में शिवाजी की गोरिल्ला युद्ध प्रणाली को अपनाया.

1739 ईस्वी में बाजीराव प्रथम ने पुर्तगालियों से साल सीट तथा बेसिन छीन लिया ग्वालियर के सिंधिया बड़ौदा के गायकवाड इंदौर के होल्कर और नागपुर के भोंसले शासकों को सम्मिलित करें एक मराठा मंडल की स्थापना की.

बालाजी बाजीराव(1740~1761):


बाजीराव प्रथम की मृत्यु के बाद बालाजी बाजीराव नया पेशवा बना इसे नाना साहब के नाम से भी जाना जाता है.

1750 ईस्वी में रघु जी भोसले की मध्यस्थता से राजाराम जूती के मध्य संगोला की संधि हुई इस संधि के द्वारा पेशवा मराठा राज्य का वास्तविक प्रधान बन गया छत्रपति नाम मात्र का राजा रह गया.

बालाजी बाजीराव के पेशवा काल में पुणे मराठा राजनीति का केंद्र हो गया.


बालाजी बाजीराव के शासनकाल में 1761 ईस्वी में पानीपत का तृतीय युद्ध हुआ यह युद्ध मराठों और अहमद शाह अब्दाली के बीच हुआ.

पानीपत का तृतीय युद्ध दो कारणों से हुआ था प्रथम नादिर शाह की भांति अहमद शाह अब्दाली भी भारत को लूटना चाहता था दूसरा मराठे हिंदू पद पादशाही की भावना से प्रेरित होकर दिल्ली पर अपना प्रभाव स्थापित करना चाहते थे.

पानीपत के युद्ध में बालाजी बाजीराव ने अपने नाबालिग बेटे विश्वास राव के नेतृत्व में शक्ति सेना भेजी किंतु वास्तविक सेनापति विश्वास राव का चचेरा भाई सदाशिव राव भाऊ था.

इस युद्ध में मराठों की पराजय हुई और विश्वास राव सदाशिव राव सहित 28000 सैनिक मारे गए.

माधवराव (1761 - 1772)


पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठों की पराजय के बाद माधवराव को पेशवा बनाया गया.

माधवराव की सबसे बड़ी सफलता मालवा और बुंदेलखंड की विजय थी. राव ने 1763 में उदगीर के युद्ध में हैदराबाद के निजाम को पराजित किया माधवराव निजाम के बीच राक्षस भवन की संधि.

1771 में मैसूर के हैदर अली को पराजित कर उसे नजराना देने के लिए बाध्य किया.

माधवराव नीरू हेलो राजपूतों और जाटों को अधीन लाकर उत्तर भारत में मराठों का वर्चस्व स्थापित किया 1761 में माधवराव के शासनकाल में मराठों ने निर्वासित मुगल बादशाह शाह आलम को दिल्ली की गद्दी पर बैठा कर पेंशनभोगी बना दिया.

नवंबर 1772 में माधवराव की छह रोग से मृत्यु हो गई.

नारायण राव (1772 - 1774)


माधवराव की अपनी कोई संतान नहीं थी अतः माधवराव की मृत्यु के उपरांत उसका छोटा भाई नारायणराव पेशवा बना. नारायण राव का अपने चाचा रघोबा से गद्दी को लेकर लंबे समय तक संघर्ष चला जिसमें रघोबा ने 1774 में नारायण राव की हत्या कर दी।

माधव नारायण (1774 - 1796)


1774 में पेशवा नारायण राव की हत्या के बाद उसके पुत्र माधवराव नारायण को पेशवा की गद्दी पर बैठाया गया.

इस के समय में नाना फडणवीस के नेतृत्व में एक काउंसिल आफ रीजेंसी का गठन किया गया जिसके हाथों में वास्तु प्रशासन था.

इस के शासनकाल में प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध हुआ.

17 मई 1782 को सालबाई की संधि के द्वारा प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध समाप्त हो गया यह संदीप ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और मराठा साम्राज्य के बीच हुई थी.


टीपू सुल्तान को 1792 में तथा हैदराबाद के निजाम को 1795 में परास्त करने के बाद का़ा  बार फिर स्थापित हो गई.


बाजीराव द्वितीय (1796 - 1818)


माधवराव नारायण की मृत्यु के बाद रघोबा का पुत्र बाजीराव द्वितीय पेशवा बना.

इसकी अकुशल नीतियों के कारण मराठा संघ में आपसी मतभेद उत्पन्न हो गया.

1802 में बाजीराव द्वितीय के बेसिन की संधि के द्वारा अंग्रेजों की सहायक संधि स्वीकार कर लेने के बाद मराठों का आपसी विवाद पटल पर आ गया सिंधिया तथा भोसले ने अंग्रेजों के साथ की गई संधि का कड़ा विरोध किया.

द्वितीय और तृतीय आंग्ल मराठा युद्ध बाजीराव द्वितीय के शासनकाल में हुआ.

द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध में सिंधिया और भोंसले को पराजित कर अंग्रेजों ने सिंधिया और भोंसले को अलग-अलग संधि करने के लिए विवश किया.

1803 में अंग्रेजों और भोंसले के साथ देवगांव की संधि कर कटक और वर्धा नदी के पश्चिम का क्षेत्र ले लिया गया. अंग्रेजों ने 1803 में सिंधिया से सूर्य की अर्जन गांव की संधि कर क्षेत्र को ईस्ट इंडिया कंपनी को देने के लिए बाध्य किया गया.1804 में अंग्रेजों तथा होलकर के बीच मराठा युद्ध हुआ जो कि तीसरा आंग्ल मराठा युद्ध था जिसमें पराजित होकर होल्कर अंग्रेजों के साथ राजपुर पर घाट की संधि.

मराठा शक्ति का पतन 1817 -18 में तब हो गया जब स्वयं पेशवा बाजीराव द्वितीय ने अपने को पूरी तरह से अंग्रेजों के अधीन कर लिया.

बाजीराव द्वितीय द्वारा पुन प्रदेश को अंग्रेजी राज्य में भी लेकर  पेशवा के पद को  समाप्त कर दिया गया.

प्रारंभ  में पेशवा का पद अष्टप्रधान की सूची में दूसरे स्थान पर था किंतु पेशवा बालाजी बाजीराव के समय यह पद वंशानुगत हो गया.

पुणे में पेशवा का सचिवालय हुजूर दफ्तर कहलाता था यह दफ्तर पेशवा कालीन मराठा प्रशासन का केंद्र था.

1750 में संगोला की संधि द्वारा मराठों का वास्तविक प्रधान पेशवा बन गया.

जदुनाथ सरकार के अनुसार मैं शिवाजी को हिंदू प्रजाति का अंतिम रचनात्मक प्रतिभा संपन्न व्यक्ति और राष्ट्र निर्माता मानता हूं.

शिवाजी का राजस्व प्रशासन अहमदनगर के मलिक अंबर द्वारा अपनाई गई रयत वाड़ी प्रथा पर आधारित था.

बाजीराव प्रथम द्वारा हिंदू पद पादशाही का आदर्श शुरू किया गया जिसे बालाजी बाजीराव ने समाप्त कर दिया.

पेशवा शासनकाल में प्रशासन में भ्रष्टाचार रोकने का कार्य देशमुख तथा देशपांडे नामक अधिकारी करते थे यह राजस्व अधिकारी थे.

महल का प्रधान हवलदार होता था जिसकी सहायता मजूमदार और फडणवीस करते थे.

पटेल और कुलकर्णी ग्राम प्रधान और प्रशासन के अधिकारी थे.

पेशवा ने विधवा के पुनर्विवाह पर पतदाम नामक कर लगाया था


Comments

Popular posts from this blog

पर्यावरण का क्या अर्थ है ?इसकी विशेषताएं बताइए।

पर्यावरण की कल्पना भारतीय संस्कृति में सदैव प्रकृति से की गई है। पर्यावरण में सभी भौतिक तत्व एवं जीव सम्मिलित होते हैं जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उसकी जीवन क्रियाओं को प्रभावित करते हैं। भारत में पर्यावरण परिवेश या उन स्थितियों का द्योतन करता है जिसमें व्यक्ति या वस्तु अस्तित्व में रहते हैं और अपने स्वरूप का विकास करते हैं। पर्यावरण में भौतिक पर्यावरण और जौव पर्यावरण शामिल है। भौतिक पर्यावरण में स्थल, जल और वायु जैसे तत्व शामिल हैं जबकि जैव पर्यावरण में पेड़ पौधों और छोटे बड़े सभी जीव जंतु सम्मिलित हैं। भौतिक और जैव पर्यावरण एक दूसरों को प्रभावित करते हैं। भौतिक पर्यावरण में कोई परिवर्तन जैव पर्यावरण में भी परिवर्तन कर देता है।           पर्यावरण में सभी भौतिक तत्व एवं जीव सम्मिलित होते हैं जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उसकी जीवन क्रियाओं को प्रभावित करते हैं। वातावरण केवल वायुमंडल से संबंधित तत्वों का समूह होने के कारण पर्यावरण का ही अंग है। पर्यावरण में अनेक जैविक व अजैविक कारक पाए जाते हैं। जिनका परस्पर गहरा संबंध होता है। प्रत्येक  जीव को जीवन के लिए...

सौरमंडल क्या होता है ?पृथ्वी का सौरमंडल से क्या सम्बन्ध है ? Saur Mandal mein kitne Grah Hote Hain aur Hamari Prithvi ka kya sthan?

  खगोलीय पिंड     सूर्य चंद्रमा और रात के समय आकाश में जगमगाते लाखों पिंड खगोलीय पिंड कहलाते हैं इन्हें आकाशीय पिंड भी कहा जाता है हमारी पृथ्वी भी एक खगोलीय पिंड है. सभी खगोलीय पिंडों को दो वर्गों में बांटा गया है जो कि निम्नलिखित हैं - ( 1) तारे:              जिन खगोलीय पिंडों में अपनी उष्मा और प्रकाश होता है वे तारे कहलाते हैं .पिन्ड गैसों से बने होते हैं और आकार में बहुत बड़े और गर्म होते हैं इनमें बहुत अधिक मात्रा में ऊष्मा और प्रकाश का विकिरण भी होता है अत्यंत दूर होने के कारण ही यह पिंड हमें बहुत छोटे दिखाई पड़ते आता है यह हमें बड़ा चमकीला दिखाई देता है। ( 2) ग्रह:             जिन खगोलीय पिंडों में अपनी उष्मा और अपना प्रकाश नहीं होता है वह ग्रह कहलाते हैं ग्रह केवल सूरज जैसे तारों से प्रकाश को परावर्तित करते हैं ग्रह के लिए अंग्रेजी में प्लेनेट शब्द का प्रयोग किया गया है जिसका अर्थ होता है घूमने वाला हमारी पृथ्वी भी एक ग्रह है जो सूर्य से उष्मा और प्रकाश लेती है ग्रहों की कुल संख्या नाम है।...

भारतीय संविधान का स्वरूप संघात्मक है किंतु उसका सार एकात्मक है . इस कथन पर टिप्पणी कीजिए? (the Indian constitutional is Federal in form but unitary is substance comments

संविधान को प्राया दो भागों में विभक्त किया गया है. परिसंघात्मक तथा एकात्मक. एकात्मक संविधान व संविधान है जिसके अंतर्गत सारी शक्तियां एक ही सरकार में निहित होती है जो कि प्राया केंद्रीय सरकार होती है जोकि प्रांतों को केंद्रीय सरकार के अधीन रहना पड़ता है. इसके विपरीत परिसंघात्मक संविधान वह संविधान है जिसमें शक्तियों का केंद्र एवं राज्यों के बीच विभाजन रहता और सरकारें अपने-अपने क्षेत्रों में स्वतंत्र रूप से कार्य करती हैं भारतीय संविधान की प्रकृति क्या है यह संविधान विशेषज्ञों के बीच विवाद का विषय रहा है. कुछ विद्वानों का मत है कि भारतीय संविधान एकात्मक है केवल उसमें कुछ परिसंघीय लक्षण विद्यमान है। प्रोफेसर हियर के अनुसार भारत प्रबल केंद्रीय करण प्रवृत्ति युक्त परिषदीय है कोई संविधान परिसंघात्मक है या नहीं इसके लिए हमें यह जानना जरूरी है कि उस के आवश्यक तत्व क्या है? जिस संविधान में उक्त तत्व मौजूद होते हैं उसे परिसंघात्मक संविधान कहते हैं. परिसंघात्मक संविधान के आवश्यक तत्व ( essential characteristic of Federal constitution): - संघात्मक संविधान के आवश्यक तत्व इस प्रकार हैं...