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Indus Valley Civilization क्या है ? इसको विस्तार से विश्लेषण करो ।

🧾 सबसे पहले — ब्लॉग की ड्राफ्टिंग (Outline) आपका ब्लॉग “ सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) ” पर होगा, और इसे SEO और शैक्षणिक दोनों दृष्टि से इस तरह ड्राफ्ट किया गया है ।👇 🔹 ब्लॉग का संपूर्ण ढांचा परिचय (Introduction) सिंधु घाटी सभ्यता का उद्भव और समयकाल विकास के चरण (Pre, Early, Mature, Late Harappan) मुख्य स्थल एवं खोजें (Important Sites and Excavations) नगर योजना और वास्तुकला (Town Planning & Architecture) आर्थिक जीवन, कृषि एवं व्यापार (Economy, Agriculture & Trade) कला, उद्योग एवं हस्तकला (Art, Craft & Industry) धर्म, सामाजिक जीवन और संस्कृति (Religion & Social Life) लिपि एवं भाषा (Script & Language) सभ्यता के पतन के कारण (Causes of Decline) सिंधु सभ्यता और अन्य सभ्यताओं की तुलना (Comparative Study) महत्वपूर्ण पुरातात्त्विक खोजें और केस स्टडी (Key Archaeological Cases) भारत में आधुनिक शहरी योजना पर प्रभाव (Legacy & Modern Relevance) निष्कर्ष (Conclusion) FAQ / सामान्य प्रश्न 🏛️ अब ...

सिंधु घाटी की सभ्यता: सिंधु घाटी की सभ्यता का प्रारंभिक तौर पर विकास sindhu ghati sabhyata ka vikas

लगभग 5000 साल पहले मानव सभ्यता चार अलग-अलग स्थानों पर गहन कृषि क्षेत्र से शहरों के विकास की तरफ उन्मुख हुई पहले कस्बे बने फिर शहरों का विकास हुआ तदोपरांत इन क्षेत्रों में शहरी सभ्यता का विकास दृष्टिगोचर होता है यह सभी के सभी अलग-अलग नदियों की घाटियों में स्थित है डिग्रेस और यूफ्रेट्स अनिल के डेट पर मिस्र सभ्यता संधू के टप्पर सिंधु सभ्यता तथा वांग हो पीली नदी के तट पर चीनी सभ्यता का आविर्भाव हुआ था.

           इन नदियों के तटों पर बाढ़ द्वारा सिंचित भूमि इतनी उपजाऊ थी कि प्राचीन मेसोपोटामिया में सचिन तथा भारतीय सभ्यताओं में कुछ जनसंख्या कृषि के कार्य करने से मुक्त थी इन मुक्त हुए व्यक्तियों ने धीमे-धीमे कुछ कार्य विशेष और लेखन ताम्र उद्योग भवन निर्माण भव्य भवन निर्माण आदि कार्यों में विशिष्ट योग्यता विकसित कर ली थी.

           वैसे तो यह हमारी सारी सभ्यताएं स्वतंत्र रूप से विकसित हुई तथा भी इनमें कभी काफी समानताएं थी और यह अपनी पूर्ववर्ती कृषि आधारित समाज से काफी विनती विस्तृत शहरों का विकास इन की एक बड़ी महत्वपूर्ण समानता थी यह सभी अपनी किसी भी पूर्वर्ती तथा भविष्य में काफी समय तक विकसित किसी भी सभ्यता किसे भव्य थी अता चौथी शताब्दी ईसा पूर्व की शहरी क्रांति मानव विकास का एक महत्वपूर्ण चरण मानी जाती है.

        इंडिया शब्द की उत्पत्ति इंडस यानी सिंधु नदी के नाम पर आधारित है अर्थात इंडस सिंधु का क्षेत्र प्रारंभिक साहित्य लिखित प्रमाण के अनुसार क्षेत्र में आकर बसने वाले शुरुआती आर्यों ने इंडस को सिंधु पानी की बड़ी झील कहा था ईरान होते हुए भारत की तरफ अपनी लंबी यात्रा में आर्यों ने कभी भी इतनी विशाल नदी नहीं देखी थी 2825 ईसा पूर्व में पर्शियन सम्राट डेरियस प्रथम ने सिंध क्षेत्र को जीतकर अपने साम्राज्य का एक प्रांत बना लिया था सा उच्चारित ना कर पाने की वजह से परसिया वासियों ने सिंधु को हिंदू कह दिया जिसे बाद में ग्रीको ने इंडस उच्चारित किया था ग्रीको और रोम वासियों के लिए सिंध क्षेत्र इंडस का पर्यायवाची बन गया सिंध पर अरब की विजय के पश्चात पुराने सिंधु से हिंदुस्तान शब्द की उत्पत्ति हुई तथा वहां के वासी हिंदू नाम से जाने जाने लगे तथा उनका धर्म हिंदू कहलाया.


        इंडिया नाम भारत की सर्वप्रथम सभ्यता सिंधु सभ्यता के समय से ही प्रचलित है हालांकि बीसवीं शताब्दी के तीसरे दशक तक इसके बारे में कोई नहीं जानता था 2620 के दशक में तो प्राचीन नगरों हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खोज हुई इन शहरों की खोज के शुरू में इसे सिंधु घाटी सभ्यता कहा गया परंतु बाद में सिंधु घाटी से काफी दूर के इलाके तक में ऐसी सभ्यता की खोज के बाद इसे सिंधु सभ्यता कहा जाने लगा साथ ही साथ हड़प्पा शहर के नाम पर इसे हड़प्पा सभ्यता भी कहते हैं. भारत गैस पहली और प्रारंभिक सभ्यता की खोज ने एक पहेली का स्वरूप ले लिया ऐसा लगता है कि यह अपने पूर्ण विकसित रूप में एकाएक उत्पन्न हुई थी जबकि इसके पहले कि सभी सभ्यता छोटे स्तर पर शुरू हुई थी और सैकड़ों वर्षो बाद पूर्ण विकसित हो पाई लेकिन अभी कुछ समय पहले तक इसकी उत्पत्ति और विकास के बारे में काफी कम जानकारी है परंतु 2673 से 2680 के बीच 2 फ्रांसीसी पुरातत्व शास्त्री द्वारा बलूचिस्तान के मेहरगढ़ इलाके में की गई विस्तृत खोजों में काफी हद तक इस पहेली को सुलझा दिया है इन पुरातत्व शास्त्रियों के अनुसार मेहरगढ़ में पुरानी बस्तियों के अवशेष की श्रंखला मिलती है इस श्रंखला से अनाज उत्पादन पशुपालन हस्तकला वास्तु कला तथा विचार के क्षेत्र में विकास की पूरी प्रक्रिया साफ नजर आती है तथा कोई भी इस प्रक्रिया में सिंधु सभ्यता के विकास की प्रक्रिया को समझ सकता है. क्षेत्रीय पुरातत्व विज्ञान के 8 दशक 1922 में इसकी खोज के समय अब तक पुरातत्व शास्त्रियों का आबाद ध्यानाकर्षण सिंधु सभ्यता के अध्ययन को पूर्वर्ती भारतीय इतिहास के सर्वाधिक गहन अनुसंधान दे चरणों में से एक बना देता है वर्तमान भारत में अनेक महत्वपूर्ण स्थलों की खोज के कारण पिछले 5 स्थलों की खोज के कारण पिछले 5 दशकों में इस सभ्यता के बारे में हमारी समझ उल्लेखनीय रूप से बड़ी है वर्तमान जानकारी के अनुसार इसका क्षेत्र विस्तार अफगानिस्तान में छोड़ तो भाई से दक्षिण गुजरात तक तथा मकरान तट पर शुद्ध कांगे डोर से लेकर आलमगीरपुर तक है. इस सभ्यता का वर्तमान पाकिस्तान के आकार से भी बड़ा है तथा इसके स्तर लगभग 500000 वर्ग मील क्षेत्र में फैले हुए हैं यद्यपि इस सभ्यता के पति पत्नी एवं कार्यक्रम के विषय में विद्वानों के बीच मतभेद है किंतु इसकी सांस्कृतिक परिपक्वता व एकरूपता समृद्धि कृषि विविधता कृत्य शिल्प कला व्यापक वाणिज्यिक संपर्क एक रूप लिपि तथा धार्मिक विश्वासों का कर्मकांड ओं के बारे में कोई विवाद नहीं है यह सभ्यता उपमहाद्वीप में शहरीकरण के उस प्रथम चरण को चिन्हित करती है जिसमें हड़प्पा मोहनजोदड़ो लोथल कालीबंगा धोलावीरा जैसे विस्तृत शहरी केंद्र तथा छोटे नगरों की एक बड़ी संख्या शामिल थी.

उत्पत्ति एवं विकास
खेत में मेहर गाड़ियों में सिंधुआ बलूचिस्तान के अन्य स्थलों की खुदाई में हमें ग्रामीण अर्थव्यवस्था की शुरुआत से लेकर अप्पा सभ्यता की दहलीज तक एक सतत पुरातात्विक सतत अनुक्रम प्राप्त होता है फिर भी हम अभी तक यह समझने में असमर्थ हैं कि यह शहरी सभ्यता कैसे और क्यों अपने विशिष्ट रूप में प्रकट हुई है इतिहास एवं मानव शास्त्र के मान्य विचारों के अनुसार एक राज्य स्तरीय राजनीतिक संगठन के अभाव में शहरीकरण का होना संभव है हड़प्पा शासक वर्ग कैसे सत्ता में आए अधिशेष उत्पादन संघ के इसके तरीके क्या थे तथा किस प्रकार इसने अंतर क्षेत्रीय संबंधों का प्रबंधन किया है इन सभी प्रश्नों का संतोषजनक उत्तर अभी आप प्राप्त है अभी इस बारे में भी निश्चित नहीं है कि यह एक राज्य था या कई सोयत किंतु अंता क्रियाशील राज्यों का समूह. पूर्वर्ती हड़प्पा काल के सहयोग की लाक्षणिक विशेषताएं निर्धारक रूप में उपस्थित है इस पूर्वर्ती चरण में अमृत कोट दीजी एवं सोती संस्कृतियों के बीच व्यापक समानताएं दिखाई देती हैं तथा विभिन्न समाजों के बीच गहन अंतः क्रिया व राजनीतिक नियंत्रण में वृद्धि के प्रमाण मिलते हैं किंतु इस मार के वास्तुशिल्प एवं शिल्प उत्पादन के संबंध में मानचित्र पर स्थलों के विस्तार के साथ साथ परिवर्तन दिखाई देने लगते हैं राज्य निर्माण से पहले एवं बात के कारों के बीच घरेलू शिल्पा कृतियों में ग्रामीण तकनीकों में निरंतरता देखी जा सकती है शिल्पा कृति परंपराओं की निरंतरता के अलावा हमें यह जानने की जरूरत है कि परिपक्व हड़प्पा की विशेषताओं व लक्ष्मण का प्रवेश किस प्रकार हुआ पूर्ववर्ती काल के एक स्थल से एक समुदाय पर राजनीतिक संस्थाओं के आरोपण की जानकारी मिलती है संक्रमण की प्रकृति और अधिक स्पष्ट हो सकती है यदि परिवर्तन के कुछ विशिष्ट पहलुओं का गहन अध्ययन किया जाए जैसा कि चमकदार पाषाण औजारों के विषय में किया गया यह अध्ययन दर्शाते हैं कि शहरी युग में पाषाण पर निर्भरता कम हुई है तथा चमकदार पाषाण औजारों के अधिक मन हकीकत बन गए हैं क्योंकि तांबे वाक्यांश के औजारों पर बढ़ती व्यापक निर्भरता के कारण पास आरोपों को पुनीत नहीं किया गया है तथा उनका उपयोग भी बहुत सीमित हो गया था.


            हड़प्पा सभ्यता की प्रकृति के संबंध में विद्वान कुछ पहलुओं पर अत्यधिक जोड़ देते हैं जबकि कुछ को आश्चर्यजनक रूप से नकार देते हैं उदाहरण के लिए लिपि के कूट वाचन को लेकर आने को दावे किए गए हैं किंतु इनमें से अधिकांश आवा ज्ञानिक विधियों पर आधारित है मोहरों तथा मुद्रा अंकन के संभावित उपयोग एवं वितरण के बारे में कोई विस्तृत विश्लेषण उपलब्ध नहीं है अध्ययन करता इस बात की भी स्पष्ट व्याख्या नहीं कर पाए हैं कि वह किसी स्थल को परिपथ हड़प्पा काल के साथ जोड़ने के लिए कौन से मापदंड अपना आते हैं शिल्पा कृतियों की एक पूरी श्रृंखला मौजूद है जिन्हें विद्वान विशेष सीकृत मानते हैं इनमें मृदभांड का एक विशिष्ट प्रकार धात्विक और यारों की एक सी में श्रंखला विशिष्ट आकार व अनुपातों की बैलगाड़ी व पहिए के साथ लंबी बैठक मूर्तियां एवं अभिलेख मुद्राओं का एक विशिष्ट प्रकार आदि शामिल है किंतु यह सभी वस्तुएं हड़प्पा सभ्यता के सभी स्थलों से प्राप्त नहीं हुई है तथा कुछ अन्य स्थलों पर अलग विशेषताएं दिखाई देती हैं मात्र कुछ स्थलों पर मोहरों वादों के सीमित वितरण की व्याख्या अथवा विभिन्न स्थलों पर उत्तर प्राप्त मूलभूत तत्वों के अध्ययन के बिना हड़प्पा सभ्यता की प्रकृति का सार्थक विश्लेषण कर पाना संभव नहीं है.

पतन संबंधी समस्याओं का विश्लेषण

पतन का एक निर्णायक आयाम एक वृहद स्तर पर बस्तियों को उजाड़ होना है इसी कारण शाब्दिक अर्थों में पतन की व्याख्या करने के लिए कई प्रयास किए गए जिनमें बाढ़ की विभीषिका समुद्री स्तर का नीचा होना निर्वाणीकरण विवर्तनिक बिछोर सूखा आर्यों का आक्रमण आदि शामिल है मिस्र की सभ्यता नील नदी में आने वाली भयंकर बड़ों के बावजूद कायम रही है तथा मेसोपोटामिया की सभ्यता दक्षिण में खारे पानी की समस्या के बाद भी लंबे समय तक जीवित रहे मिस्र और मोटा मियां पर विदेशियों के निरंतर आक्रमण भी होते रहे यद्यपि यह सभी उदाहरण हमें इन विध्वंस से जुड़ी व्याख्या ओं पर जोर देने से नहीं रुकते हैं किंतु अभी तक पतन के राजनीतिक व आर्थिक कारणों से जुड़ी व्याख्या ओं के प्रयास नहीं किए गए हैं जिसका कारण हड़प्पा के राजनीतिक व आर्थिक संगठन का समुचित अन्ना हो पाना है.


देसी से लेकर विदेशी उत्पत्ति से जुड़े सिद्धांतों के बारे में यदि हम बात कर रहे हैं तो पचास के दशक की शुरुआत में सिंधु सभ्यता की उत्पत्ति से जुड़े सिद्धांतों में घरेलू उत्पत्ति का अपेक्षाकृत कमजोर सिद्धांत क्योंकि भारत से बाहर उत्पत्ति को सहज असंभव माना जाता है तथा अधिक लोकप्रिय विदेशी उत्पत्ति का सिद्धांत दक्षिणी पश्चिमी ईरान के एल्बम तथा मेसोपोटामिया से होने वाले थोक व खुदरा आयात पर आधारित थे इन दोनों अतिवादी मान्यताओं के बीच में उद्दीपक विसरण का सिद्धांत जोमोसो पोटा मियां से सिंधु की और सभ्यता के प्रवासन की मान्यता पर टिका था हमें यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि इसी समय सिंधु सभ्यता के बारे में यह संकल्पना उभरी कि इसका पोषण कुछ विशेष अर्थों में मुंह से पोंटा मियां द्वारा तथा सामान्य रूप में पश्चिमी एशिया द्वारा हुआ है.


       50 के दशक के मध्य में कोट दीजी स्थल सिंधु का उत्खनन हुआ यहां पहली बार पार्क हड़प्पा से चरण से जुड़ी किलेबंदी बस्तियों के प्रमाण प्राप्त हुए इन प्रमाणों को आमली तथा सूखी घागर घाटी में कालीबंगा के उत्खनन से और अधिक मजबूती मिली है 60 के दशक की शुरूआत तक सिंधु सभ्यता के पति के बारे में और अधिक सार्थक पुरातात्विक विचार-विमर्श संभव हो पाया कोट दीजी हरिओम कालीबंगा की संस्कृतियों को ना केवल पूर्व हड़प्पा कालीन अभी तड़पा कालीन सिद्ध किया गया है किंतु अभी भी उत्पत्ति के तंत्र के विषय में मत भेज मौजूद था क्योंकि यह विसरण सिद्धांत से संबंध रखता है इसके अनुसार सिंधु सभ्यता का स्वरूप कुछ प्रबुद्ध निरंकुशता सको की सोची-समझी इच्छा का प्रतिफल था जिन्होंने समृद्धि हासिल करने के लिए विदेशी व्यापार व मानकीकरण को प्रोत्साहन दिया तथा समकालीन सुमेरियन सभ्यता से नगरों का विचार ग्रहण किया. साठ के दशक के आखिरी वर्षों में कुछ विकासशील चरणों के रूप में बलूचिस्तान एवं सिंधु तंत्र में अध्ययन आशिक सांस्कृतिक वृद्धि को विश्लेषण करने के प्रयास किए गए हैं इस सिद्धांत के अनुसार सिंधु सभ्यता ने अपनी लाक्षणिक विशेषताएं घरेलू स्तर पर आयोजित किए किंतु इसका परिष्कार सुमेरिया e-sampark के फल स्वरुप ही संभव हुआ है.

व्यापार की विशिष्ट भूमिका के संदर्भ में विदेशी उत्पत्ति के सिद्धांत का पुनरुत्थान

70 के दशक की शुरुआत में विवाद का एक नया आयाम उभर कर आया इसमें सिद्धांत का सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग सिंधु घाटी में पूर्वर्ती हड़प्पा कालीन भौतिक अवशेषों तथा उनके वितरण प्रति दर्शकों का तुलनात्मक विश्लेषण करना था यह तर्क दिया गया है कि सिंधु घाटी में शहरीकरण के लिए उत्तरदाई परिस्थितियों की पुनर्रचना संभव दिखाई नहीं देती है यह माना गया है कि परिपक्वता काल में शक्ति का केंद्र उत्तर से दक्षिण बलूचिस्तान में चला गया तथा समुद्री तट के आसपास बस्तियों के विस्तार से मेसोपोटामिया के साथ व्यापार प्रांगण होता गया 70 या मौसी के दशकों के एक अन्य सिद्धांत के अनुसार व्यापार को सिंधु सभ्यता में शहरीकरण की वृद्धि के लिए संभावित कारक माना गया यह सिंधु शहरी विकास को ईरान मद्धेशिया एवं अफगानिस्तान में भी विकासात्मक गतिविधियों के साथ जोड़ने का एक स्पष्ट प्रयास था इसमें भारतीय मिट्टी की जगह अधिग्रहित विदेशी विकासात्मक प्रवृत्तियों को अधिक महत्व दिया गया इस प्रयास की प्रतिध्वनि भारत में पश्चिमी पुरातत्व शास्त्रियों के लेखों में निरंतर मौजूद रही है यहां तक कि 80 के दशक के प्रारंभ में भी यह माना गया है कि पूर्ववर्ती चरण से परिपक्व चरण तक होने वाले रूपांतरण में मुंह से पोंटा मियां के साथ होने वाले व्यापार की निर्णायक भूमिका थी फिर भी इस मान्यता को पूर्णता स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि पूर्वर्ती हड़प्पा काल में मेसोपोटामिया के साथ व्यापार के कोई प्रमाण नहीं मिलते हैं इस प्रकार अधिकांश पश्चिमी विद्वानों के लिए मेसोपोटामिया के साथ संपर्क के प्रश्न को अलग रखकर सिंधु सभ्यता की उत्पत्ति के बारे में विचार कर पाना कठिन प्रतीत होता है.


संस्कृति की शुरुआत
लगभग 8000 ईसा पूर्व दक्षिण एशिया की जलवायु तकरीबन आज के ही समान थी इसके चलते मनुष्य को पर्यावरण पर अपनी पकड़ मजबूत करने के प्रयास में महत्वपूर्ण अवसर प्राप्त हुए तथा 4000 ईसा पूर्व तक ऐसी कई घटनाएं हुई जिनके कारण इस क्षेत्र में प्रथम शहरी समाज का प्रादुर्भाव हुआ संभवत इस साल की सबसे मौलिक प्रगति कई पशुओं तथा पौधों की नसों को फालतू बनाए जाने तथा कृषि के क्षेत्र में हुई जहां एक और विभिन्न पशुओं की नसों को पालतू बनाए जाने के कारण विशिष्ट पशु चारी वर्ग का प्रादुर्भाव हुआ वहीं दूसरी ओर कई जंगली पौधों की नियमित खेती के कारण स्थान बस्तियां अस्तित्व में आई कृषि कार्य प्रारंभ होने के बाद इसका असर सभी आर्थिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों पर हावी रहा जब से मनुष्य ने पशुपालन तथा खेती करना प्रारंभ किया इसकी और वक्ता तथा जादुई शक्तियों में रुचि एक विश्वव्यापी पहले की तरह देखने को मिलती है स्थाई बस्तियों के प्रादुर्भाव के साथ-साथ तकनीकी खोज पर आधारित कई शिल्पा का भी जन्म हुआ इनसिल्को तथा तकनीकी खोजों में मिट्टी के बर्तनों का निर्माण तथा उनका प्रयोग तथा इसकी मिश्र धातुओं के और उपकरण एवं हथियारों के निर्माण में उनका प्रयोग महत्वपूर्ण है.

सिंधु प्रणाली

मैदान में जब प्रारंभिक बस्तियां बसी संभवत वे कई अर्थों में आज की बस्तियों की तरह ही थी सिंधु की मुख्यधारा एक विस्तृत और अत्यंत उपजाऊ जलोढ़ मैदान से होकर गुजरती है इस क्षेत्र के कृषि क्षमता का अनुभव होने तथा बाढ़ के मैदान में बस्तियों कारण से बचाव के साधनों की खोज के साथ ही यहां एक नई जीवनशैली का प्रादुर्भाव हुआ स्पष्ट रूप से यह प्रक्रिया कई चरणों में पूरी हुई तथा इसका चरमोत्कर्ष लगभग तीसरे शताब्दी ईसा पूर्व के प्रारंभ में देखने को मिलता है मेहर गढ़ क्षेत्र का प्रथम और सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थल है भौगोलिक दृष्टिकोण से यह पूर्वी ईरान पठार की ऊपरी घाटी तथा सिंधु प्रणाली के मैदानी भाग के प्रारंभ के संक्रमण पर स्थित है यहां से प्राप्त सांस्कृतिक अवशेषों में यह संक्रमण स्पष्ट नजर आता है यहां छठी ले पाए गए हैं जिनमें सबसे पुराना एवं नव प्रस्तर गांव जो रेडियो कार्बन काल निर्धारण के अनुसार छठी शताब्दी ईसा पूर्व का है यहां से पाई गई चीजों में कई अनाजों के अवशेष तथा महत्वपूर्ण है जिनका प्रयोग हास्य की तरह किया जाता था इससे बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है कि उस समय बलूचिस्तान में खेती की जाती थी खानाबदोश जीवन से स्थित कृषि एवं पशुपालन से संबंधित संक्रमण से प्राप्त पशुओं की अस्थियों से लगाया जाता है इस प्राचीनतम टीले के साथ एक दूसरा टीला है जिसमें ताला प्रस्तर युग युग का संक्रमण दर्शाता है मेहरगढ़ का यह हिस्सा पांचवी शताब्दी ईसा पूर्व का है यहां से एक तांबे का छल्ला तथा मृतकों का विकास स्पष्ट नजर आता है.

         मेहरगढ़ की बस्तियों के तीसरे चरण में जो लगभग चौथी शताब्दी ईसा पूर्व का काल है कुशलता में काफी वृद्धि देखने को मिलती है इस काल में सर्वप्रथम बर्तन बनाए जाने वाले चाक का प्रयोग हुआ जिससे अधिक संख्या में एवं ज्यादा सुंदर बर्तन बनाने लगे यहां से प्राप्त अन्य महत्वपूर्ण चीजें हैं मन को में छेद करने के लिए वर्मा तथा था लोहा पिलाने के लिए छलिया उपलब्ध थी. चौथे चरण में लगभग 3500 ईसा पूर्व मृतिका शिल्प काफी महत्वपूर्ण हो गया कुमारों ने ज्यामितीय आकृतियों से सुसज्जित बड़े मस्त बानो के साथ दैनिक उपयोग हेतु छोटे पात्र भी बनाए इसके साथ-साथ यहां से 13 कोटा की छोटी महिला आकृति 13 कोटा के मोहरे सिंधु घाटी से प्राप्त महलों की सबसे पुरोगामी मोहरे भी पाई गई हैं मेहरगढ़ में बस्तियों के विकास का पांचवा चरण लगभग 32 ईसा पूर्व में प्रारंभ हुआ इस चरण के अभिलक्षण पूर्वी ईरान तथा मध्य एशिया में भी पाए गए हैं इस काल में दूरगामी व्यापार ने सांस्कृतिक उपलब्धियों में निसंदेह महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है मेहरगढ़ का अंतिम चरण भर्ती भी संपन्नता तथा शहरीकरण की प्रक्रिया को दर्शाता है इस काल में पशु संकेतों से युक्त एक नए प्रकार की मुहर तथा विशिष्ट के संयुक्त ओम नारियों की टेराकोटा आकृतियां एक नवीन जीवन शैली को दर्शाती है मनुष्य के सिर की वास्तविक आकृति तथा अनेक उत्कृष्ट आकृतियां इस काल में हस्तशिल्प के ऐसे नमूने हैं जो बाद की हड़प्पा काल को बात करते नजर आते हैं इस स्थल पर सबसे ऊपरी स्तर पर 2 मंजिला इमारतें बनी हुई है लेकिन लगभग तीसरी शताब्दी के मध्य में मेहरगढ़ का समृद्ध शहर अज्ञात कारणों से त्याग दिया गया था.


                सिंधु घाटी में तीसरा शताब्दी ईसा पूर्व बस्तियों के विस्तार का महत्वपूर्ण काल था जमीन पर जनसंख्या का दबाव बढ़ता जा रहा था अतः दूसरे स्थानों में उपनिवेश को की तलाश जरूरी थी पश्चिमी घाटी में जहां एक और मेहर गढ़ से बस्तियों का फैलाव पूर्वी ईरान और दक्षिणी तुर्कमेनिस्तान की ओर हुआ वहीं दूसरी ओर दक्षिणी बलूचिस्तान की ओर भी हुआ पूर्वी घाटी में हड़प्पा मोहनजोदड़ो काली बंद अंशु कोटड़ा एवं लोथल नगरों की स्थापना हुई इस प्रकार तीसरे शताब्दी ईसा पूर्व के मध्य तक सिंधु सभ्यता सिंधु के दोनों और स्थापित हो चुकी थी सिंधु प्रणाली में एक दूसरी प्राचीन बस्ती गुमला है हालांकि यह मेहरगढ़ जैसी प्राचीन नहीं है इस स्थल की स्थिति कुछ मामलों में मेहरगढ़ की तरह थी गुमला बस्ती सिंधु के दाहिने किनारे पर स्थित योगी नदी कोमल के जलोढ़ मैदान तीसरा एक खोला है जो तक्षशिला के लगभग 3 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में स्थित है या स्थल ऊंचे जलोढ़ पठार पर स्थित है तथा इस क्षेत्र में सिंधु मैदान की उत्तरी सीमा है इसका उत्खनन 1968 से 1971 के बीच हुआ है यहां से प्राप्त 4 सालों में सिर्फ पहला ही हमारे मतलब का है भौतिक संस्कृति के आधार पर यह स्थानों प्रस्तर युग का है इस काल में यहां कई गर्त निवासियों का भी पता चला है सिंधु प्रणाली के अंतर्गत चौथी प्राचीन बस्ती दक्षिणी पश्चिमी पंजाब में जलीलपुर में स्थित है यह हड़प्पा से लगभग 65 किलोमीटर दक्षिण पश्चिमी दिशा में रावी नदी के किनारे पर स्थित है इसका उत्खनन 1971 में हुआ है यहां का अभी प्राचीनतम काल नव प्रस्तर युगीन है यहां से तांबे अथवा कांसे की कोई वस्तु नहीं प्राप्त हुई है.

बलूचिस्तान

इस उसके पर्वतीय क्षेत्र तथा इसकी प्रथक घाटियों में प्राचीन बस्तियों के कई चिन्ह मौजूद हैं ऐसे संकेत उत्तर में कोटा घाटी में तथा पूर्व में लौलाई एवं जॉब नदियों की घाटियों में बहुत मिलते हैं इस स्थल में चार सांस्कृतिक चरण प्राप्त हुए हैं जिनमें प्राचीनतम काल प्रथम यहां से प्राप्त अवशेषों को रेडियो कार्बन काल निर्धारण से इस स्थल को 4441 ईसा पूर्व का बताया जाता है यहां से उपलब्ध आंकड़े इस बात की ओर संकेत करते हैं कि यहां के निवासी शुरू में खानाबदोश थे पर बाद में भेड़ बकरी तथा बैल पालने लगे काल सेकंड से अनगढ़ मिट्टी के बर्तन प्राप्त हुए हैं काल से के नियम का थर्ड में कच्ची ईंट की दीवारें प्राप्त हुई है काल ठंड में हस्त निर्मित एवं चार्ट निर्मित बर्तनों जिन पर समान ज्यामिति आकृतियां बनी है के साथ तांबा भी प्राप्त हुआ है उत्तर और मध्य बलूचिस्तान में कई स्थल पाए गए हैं जिन्हें किल्ली गुल मोहम्मद सेकंड एवं थर्ड से संबंधित किया जा सकता है और लाई घाटी में राणा गुंडई टीले के उत्खनन में विस्तृत अनुक्रम प्राप्त हुए हैं.

         इस क्षेत्र में प्राचीनतम बस्तियों के अन्य प्रमाण दक्षिण पूर्व अफगानिस्तान से प्राप्त होते हैं मंडी में प्रारंभिक सतह से कोई ढांचा नहीं प्राप्त हुआ था यहां के के प्राचीन प्राथमिक निवासी अर्थ खानाबदोश लगते हैं इसके बाद के स्तर से संपीड़ित मिट्टी की दीवारों वाले छोटे आयताकार कच्छ प्राप्त हुए है अगले स्तर से धूप में पकाई गई * से बने हुए कई कमरे वाले मकान मिले हैं मिट्टी के बर्तन जिनमें चौक से बने तथा रंगे हुए बर्तन भी शामिल है प्रारंभिक स्तर से ही मिलने लगते हैं इस काल में सबसे पहली बार पाषाण फलक सेलखड़ी के मनके लाजवर्त तथा फ्रिज देखने को मिलता है तांबे से बनी वस्तुएं भी पहली बार देखने को मिलती हैं इनमें सालों से ऐसा प्रतीत होता है कि पश्चिमी सीमा क्षेत्र में ऐसे स्थानों पर बस्तियां बसी जो मूल रूप से पशु चारी खानाबदोश ओं के पड़ाव थे इस स्थिति में स्थाई बस्तियों के बसने एवं कृषि कार्य प्रारंभ होने तक काफी समय लगा होगा बलूचिस्तान में या प्राचीनतम का लगभग चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में समाप्त हो गया था.

विकास क्रम तथा अवस्थाएं

पिछले 7 दशकों के पुरातात्विक स्रोतों से कई स्थानों पर सतत संस्थानों का पता चला है जो उच्च स्तरीय पूर्ण विकसित सिंधु सभ्यता के क्रमिक विकास को दर्शाते हैं इन संस्थाओं को पूर्व हड़प्पा प्रारंभिक हड़प्पा परिपथ हड़प्पा तथा परवर्ती हड़प्पा का नाम दिया गया इस शोध का सर्वाधिक महत्वपूर्ण परिणाम सभ्यता के देसी विकास का सबूत है जो कि सिंधु घाटी के बाहरी हिस्से पूर्वी बलूचिस्तान की पहाड़ियों में विकसित हुआ है तथा बाद में इसका विस्तार मैदानी भाग में हुआ है मेसोपोटामिया के साथ सिंधु सभ्यता के संपर्क थे लेकिन यह मेसोपोटामिया का विस्तार नहीं था और ना ही इसे मेसोपोटामिया की नकल पर बसाया गया था सिंधु घाटी सभ्यता के देसी विकास के प्रमाण हाल के वर्षों में 4 स्थानों पर की गई खुदाई से प्राप्त विभिन्न चरणों की आधार पर निर्धारित किए गए यह चार स्थल है मेहरगढ़ आमरी काली बंधन तथा लोकल यह चार स्थल भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी पश्चिमी क्षेत्र में प्रागैतिहासिक तथा इतिहास के महत्वपूर्ण दर्शाते हैं अनुक्रम का प्रथम चरण संक्रमण काल खानाबदोश पुजारी लोग पूर्वी बलूचिस्तान में स्थायीकरण में सिंधु घाटी में बड़े गांव का विकास एवं शहरों की उत्पत्ति दर्शाता है दूसरे चरण का तीसरे चरण में हुआ जब बड़े शहरों का विकास हुआ तथा अंत का चौथे चरण में उनका पतन हुआ इनमें से चारों चारों स्तनों प्रथम मेहरगढ़ में तीसरा कालीबंगा लोथल में पाए गए हैं.

प्रथम चरण मेहरगढ़

यह मोहनजोदड़ो से लगभग 150 मील उत्तर-पश्चिम बोलन दर्रे के पास स्थित है वैसे तो यह प्रकाश प्रशासकीय दृष्टिकोण से बलूचिस्तान का भाग है पर जल विज्ञान की दृष्टि से यह सिंधु प्रणाली का अंग है यहां पर खुदाई में हमें भारतीय उपमहाद्वीप में स्थाई कृषि का प्रथम प्रमाण प्राप्त हुआ है मेहरगढ़ स्थल का व्यास लगभग 1000 गज है .

दूसरा चरण आमरी

पूर्व हड़प्पा से परिपथ हड़प्पा का संक्रमण आमरी में सर्वाधिक स्पष्ट ऐसा प्रतीत होता है कि आमरी के लोग बलूचिस्तान की प्रारंभिक संस्कृति के संपर्क में रहना चाहते थे तथा सिंधु के पास के मैदान में बसना कठिन मान रहे थे यह नया कार्य 4000 ईसा पूर्व के आसपास अर्थात बलूचिस्तान में मेहरगढ़ जैसे स्थलों की उत्पत्ति के 2000 वर्ष बाद ही प्रारंभ हो सका था लेकिन आमली तथा निम्न सिंधु घाटी के अन्य स्थल सिंधु घाटी सभ्यता के 700 साल बाद तक बस तेरे लिए घाटी में सांस्कृतिक विकास के रोचक तथ्य प्रस्तुत करते हैं आवरी में 1959 से 1969 के बीच खुदाई की गई यहां सिंधु सभ्यता के चारों चरण स्पष्ट दिखाई देते हैं पूर्व हड़प्पा प्रारंभिक हड़प्पा परिपथ हड़प्पा तथा परवर्ती हड़प्पा संस्कृति यहां से दिखाई देती है.

तीसरा चरण कालीबंगा
घर में काली बागन हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो के बाद था लेकिन इसके छोटे आकार के बावजूद इस पूर्व हड़प्पा स्थल का बेहतरीन परिरक्षण अत्यंत रोचक है इसके कारण काली बंधन और पूर्व हड़प्पा और प्रारंभिक हड़प्पा से परिपथ हड़प्पा चरण के संक्रमण की परिस्थितियों का महत्व पूर्ण साक्षी है प्राचीन काली बंधन की स्थापना लगभग 24 सौ ईसा पूर्व के आसपास हुई इसके कुछ प्रमुख लक्षण बाद में सिंधु सभ्यता के शहरों में मानक बन गए यह एक आयताकार सुनियोजित शहर था जो लगभग 750 फीट लंबा तथा उत्तर दक्षिण पर बसा हुआ था शहर की किलेबंदी की गई तथा मानक 10 * 20 * 30 सेंटीमीटर की पक्की ईंटों के बने हुए थे जल निकास प्रणाली पक्की ईंटों की बनी हुई थी यहां के बर्तन चार्ट के बने हुए उच्च कोटि के बर्तन थे जिन को सुंदर ढंग से सजाया गया था तथा यह पाद के कार्यों से बिल्कुल अलग थे लगभग 2250 ईसा पूर्व के लगभग जब हापा सभ्यता का विस्तार हो रहा था तो अज्ञात कारणों से प्राचीन काली बंधन को त्याग दिया गया लगभग 50 से 100 वर्षों बाद उसका पुनर्निर्माण हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो की संस्कृति की पद्धतियों पर हुआ पहली बार नगर दुर्ग एवं निर्णय नगर में अब स्पष्ट अंतर देखने को मिला नगर दुर्ग प्राचीन काली बंधन के अवशेषों पर बनाया गया था तथा निम्न शहर नगर दुर्ग से लगभग 120 फीट की दूरी पर बसा हुआ था निम्न शहर प्राचीन काली बंधन से 4 गुना बड़ा तथा मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा के निम्न शहरों के योजना अनुसार बना हुआ था नए काली बंधन में मानकीकरण के स्तर अत्यंत कठोर तत्व की सापेक्ष विभिन्न सड़कें 1218 24 फीट चौड़ी थी प्राचीन काली मंदिर में जो विशेषताओं के साथ बनाई जाती थी वह अब हड़प्पा मोहनजोदड़ो बनने लगी थी. नेकाली बंधन की एक खास विशेषता थी कि वह निम्न शहर से लगभग 240 मीटर दूर एक प्राकृतिक टीला था इस टीले पर सिर्फ अग्नि विधियों के अवशेष मिले हैं यह संभवत निम्न शहर के लोगों का धार्मिक स्थल था जबकि नगर दुर्ग के दो चबूतरो की अग्नि भी दिया वहां के निवासियों के लिए थी काली बंधन में मात्र देवियों की मूर्ति की अनुपस्थिति वहां की प्रमुख विशेषता है क्योंकि यह देवियां सिंधु सभ्यता के बाकी अन्य केंद्रों में बहुत आयात में प्राप्त हुई है.


चौथा चरण लोथल

लोथल की स्थापना तीन स्थलों के काफी बाद हुई थी यहां निर्माण कार्य 2100 ईशा से पूर्व के आसपास परिपथ हड़प्पा काल में प्रारंभ हुआ था सिंधु शहरों की सभी विशेषताएं यहां से प्राप्त हुई थी इसका नगर दुर्ग चबूतरे पर बना हुआ था. गलियों तथा पगडंडियों के नमूने मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की तरह थे लोथल का अति विशिष्ट लक्षण यहां का गोदी बाड़ा है यह एक बड़ा कुंड है जिसका माफ 770 * 120 * 15 फीट क्रम से लंबाई चौड़ाई और गहराई के अनुसार है शहर के पूर्व में स्थित इस की दीवार कटोरी तो की बनी है जिसमें पानी के निकास के लिए दो चित्र बने हैं इस कुंड के तल में चार बड़े गोल पत्थर हैं जिनके बीच में छेद हैं यह संभवत जहाजों के लंगर डालने के लिए बने हुए थे जो इसे गोदी बाड़े के रूप में इस्तेमाल करते थे कुंड और शहर के बीच एक बड़ा चबूतरा संभवत गोदी का कार्य करता था तथा यह शहर सिंधु सभ्यता एवं मेसोपोटामिया के बीच व्यापार का मुख्य केंद्र था यहां से कई उपकरण मनके तथा मोरे प्राप्त हुई हैं जिनमें प्रसिद्ध फारस की खाड़ी की मोहर भी है संभवत लोथल मात्र सुदूर व्यापार का केंद्र ही नहीं था बल्कि यह सिंधु शहरों को गुजरात से कपास तथा राजस्थान से तांबा जैसे कच्चे माल का निर्यात भी था साथ ही यह भी संभावना है कि जब हड़प्पा मोहनजोदड़ो जैसे से चरमोत्कर्ष पर थे तब इनको कच्चे माल की आपूर्ति हेतु लोथल की स्थापना बाद में हुई थी.

       मेहरगढ़ में की गई हाल की खुदाई से पता चला है कि बलूचिस्तान क्षेत्र में उठे स्वामी शताब्दी जयपुर से चौथी शताब्दी ईसा पूर्व तक सांस्कृतिक विकास की प्रक्रिया लगातार होती रही मेहरगढ़ के प्राचीनतम पीले समेत बलूचिस्तान में कई नवपाषाण बस्तियों की खोज से ज्ञात होता है कि सिंधु सभ्यता भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिम में प्रारंभ हुई संस्कृति के देसी विकास का परिणाम की खुदाई द्वारा हाल में प्राप्त चौथी शताब्दी ईसा पूर्व की बस्तियां इस परिकल्पना को और भी बल प्रदान करती हैं अमरीकी खुदाई से ज्ञात होता है कि सिंधु घाटी में बस्तियां चौथी शताब्दी में बसने प्रारंभ हो गई थी यहां मेसोपोटामिया ईरान तथा मध्य एशिया के प्रवासियों द्वारा स्थान पर इस संस्कृति का परिणाम ना होकर देसी विकास का विस्तार था स्वदेशी शिल्प की उत्पत्ति के कारण पश्चिम तथा मध्य एशिया के देशों के साथ व्यापार का विकास स्वाभाविक था लेकिन जैसा कि पहले के विद्वानों की धारणा है कि इस व्यापार के कारण सिर्फ एक तरफा सांस्कृतिक लेन-देन नहीं हुआ ऐसे विद्वानों की इस प्रकार की धारणा का कारण यह था कि वे एक परिपथ सांस्कृतिक जिसका कोई स्थानीय पूर्वर्ती और शेष नहीं मिला था की खोज के कारण स्वाभाविक रूप से की कर्तव्य थे अभी हाल ही में सिंधु सभ्यता के देसी मुल्लों की स्पष्ट जानकारी हमारे पास है पर दुर्भाग्यवश विशिष्ट परिपथ संस्कृति की उत्पत्ति के बारे में हम जानते हैं इसकी उत्पत्ति का वास्तविक काल अभी भी विवाद का विषय है इसके अलावा सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थल मोहनजोदड़ो का प्रारंभिक स्तर पानी से बुरे ढंग से प्रभावित मोहनजोदड़ो का प्रारंभिक से लगभग 24 फीट नीचे पानी की सतह का ऊपर उठना इस के पतन का एक कारण हो सकता है तथा इसके कारण इस शहर की उत्पत्ति पर भी पर्दा पड़ा हुआ इसी कारण सिंधु सभ्यता के अन्य स्थलों पर समांतर खुदाई की आवश्यकता है जिन्हें आसानी से खोदा जा सकता है तथा उनकी तिथि रेडियो कार्बन पद्धति से आसानी से निर्धारित की जा सकती है.
            


  


    

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