Drafting और Structuring the Blog Post Title: "असुरक्षित ऋण: भारतीय बैंकिंग क्षेत्र और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, और RBI की भूमिका" Structure: परिचय असुरक्षित ऋण का मतलब और यह क्यों महत्वपूर्ण है। भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में असुरक्षित ऋणों का वर्तमान परिदृश्य। असुरक्षित ऋणों के बढ़ने के कारण आसान कर्ज नीति। उधारकर्ताओं की क्रेडिट प्रोफाइल का सही मूल्यांकन न होना। आर्थिक मंदी और बाहरी कारक। बैंकिंग क्षेत्र पर प्रभाव वित्तीय स्थिरता को खतरा। बैंकों की लाभप्रदता में गिरावट। अन्य उधारकर्ताओं को कर्ज मिलने में कठिनाई। व्यापक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव आर्थिक विकास में बाधा। निवेश में कमी। रोजगार और व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की भूमिका और समाधान सख्त नियामक नीतियां। उधार देने के मानकों को सुधारना। डूबत ऋण प्रबंधन (NPA) के लिए विशेष उपाय। डिजिटल और तकनीकी साधनों का उपयोग। उदाहरण और केस स्टडी भारतीय बैंकिंग संकट 2015-2020। YES बैंक और IL&FS के मामले। निष्कर्ष पाठकों के लिए सुझाव और RBI की जिम्मेदारी। B...
आज मैं भी हूं चुनाव से संबंधित सोशल मीडिया पर कुछ वीडियो देख रहा था कई सारे वरिष्ठ टीवी पत्रकारों ने अपने आत्मसम्मान के साथ समझौता नहीं किया और उन्होंने टीवी मीडिया को अलविदा करके सोशल मीडिया की ओर अपना रुख कर लिया है और सोशल मीडिया मीडिया के डिजिटल युग में अपना भी उपस्थिति को दर्ज करा दिया है यह उपस्थिति कुछ ही कुछ महीनों में अच्छी ही हो है इस देश में दिखाई दे रहा है जिससे कि यह पता चलता है कि किस प्रकार से हमारे देश को जो कि टीवी मीडिया ऐसी रिपोर्ट करने में मुझे लगता है कि किसी भी प्रकार की रुचि नहीं रखती है.
मैं कुछ बिहार चुनाव से संबंधित कुछ सोशल मीडिया के चैनलों को देख रहा था तभी जिक्र आया मुसहर जाति का मुसर जाति हम उत्तर प्रदेश वाले बहुत कम ही बार सुने होंगे क्योंकि यह जाति जहां तक मुझे पता है बिहार से संबंध रखती है इस जाति के अधिकतर लोग बिहार में ही पाए जाते हैं मैंने सबसे पहले इस जाति का नाम तब सुना था जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जीतन राम मांझी को बिहार का मुख्यमंत्री बनाया था नीतीश कुमार ने ही दलितों से यह जाति अलग करके महादलित की श्रेणी में शामिल किया था दूसरी बार हमने इस जाति का जिक्र नवाजुद्दीन सिद्दीकी की फिल्म मांझी द माउंटेन मैन में सुना था तब से थोड़ा बहुत इंटरनेट पर रिसर्च करने पर इस जाति की जानकारी मुझे हुई मुसहर जाति इसको क्यों कहा जाता है इसका सबसे प्रमुख कारण है यह लोग खाने के लिए दूसरों के यहां खेतों में मजदूरी करते थे लेकिन अपने जीवन को पालने के लिए यह लोग मजबूरी वश चूहे को भोजन के रूप में ग्रहण करते थे इनकी स्थिति इतनी दयनीय है कि लेकिन हमारे देश का मीडिया और सरकारों ने इनको सिर्फ अपना वोट बैंक के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं समझा है.
अब हम बात करते हैं सोशल मीडिया की उस रिपोर्ट की जो कि मुझे ऐसे लोग जो कि समझते हैं कि इस देश की अर्थव्यवस्था में आजादी के बाद से अब तक काफी कुछ बदल चुका है लोगों की जेबों तक पैसा पहुंच रहा है लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ जैसा कि सरकार बताती है पहुंच रहा है लेकिन जब मैंने सोशल मीडिया की रिपोर्ट को देखा तो पता चला आज का भारत अभी भी जाति के नाम पर से पीछे चल रहा है आज के युग में बिहार जैसे राज्य में जहां लोग कहते हैं कि सबसे ज्यादा आईएएस आईपीएस संघ लोक सेवा आयोग के अधिकारियों का चयन होता है जो कि इस देश के विकास की नींव को मजबूती प्रदान करते हैं उस बिहार की स्थिति है कि लोग अपने काम से नहीं अपनी जाति से अपना परिचय कराते हैं.
टीवी पर बड़ी-बड़ी बातें सुनते हैं कि हिंदुस्तान से जाति प्रथा की कब से विदाई हो चुकी है यहां जाति नहीं से भारतवासी कह जाते हैं मैं सब बातें टीवी पर सोने नहीं में बड़ी अच्छी लगती है ऐसा लगता है कि यह सचमुच महात्मा गांधी के सपनों का भारत है लेकिन यथार्थ तो जमीन पर ही देखने को मिलता है जब यह पता चलता है कि जिस भारत की कल्पना गांधीजी करते थे वह सिर्फ और सिर्फ मात्र उनकी कल्पना थी जो इस देश में जमीनी रूप में अपना अभी हाल फिलाल मुश्किल हो पा रहा है.
इसका सबसे प्रमुख कारण भारतीय राजनीतिक पार्टियां खुद ही जाति और धर्म के नाम पर वोट मांगते हैं वह विकास तरक्की और आहार की बात ही नहीं करते हैं यदि कोई पार्टी इन बातों की जिक्र करे तो भारत से जातिवाद की विदाई होने में क्षण मात्र का ही समय लगेगा.
अब हम बात सोशल मीडिया रिपोर्ट के बारे में करेंगे जहां महिला पत्रकार रिपोर्टर ने मुसाफिर बस्ती में जाकर रिपोर्टिंग की और बताया कि किस प्रकार से उनकी बस्ती गांव के एक दूसरे छोर कुछ दूरी पर जहां गंदगी से बज बजाते नाले के किनारे बसे हुए झोपड़पट्टी जो कि मकान है एक एक कमरे के मकान जिसमें एक कमरे में परिवार के 10 से 12 सदस्य 10 बाई 15 के एक छोटे से कमरे में गुजारा करते हैं बगल से नाला बह रहा है जिसमें की गंदगी बजबज आ रही है पीने के लिए पानी की बात करें तो हैंडपंप उसी नाले के किनारे उसी गंदी जगह में लगा हुआ है जिससे वहां सिर्फ पीने का गंदे पानी से ही वे लोग अपना काम चला रहे हैं. और हमारे देश की मीडिया इसको डिजिटल इंडिया का नाम दे रहे हैं क्या वाकई में यह डिजिटल इंडिया है जरा सोचिए यदि आप से कोई कह दे कि आज तुम्हारे शरीर से बदबू आ रही है तो आपको कैसा लगेगा लेकिन इस जाति के लोगों से लोग हर वक्त यही कहते हैं कि तुम लोग बस आते हो इस पीड़ा को हमारे देश को समझना चाहिए कि जिस महागुरु बनने की कल्पना हमारे देश की बात की जा रही है यह तब तक संभव नहीं है जब तक कि हमारे जमीन मजबूत नहीं होगी हमारे जमीन पर मजबूर होगी जब हमारे देश में जातिवाद को खत्म कर सिर रोजगार और तरक्की को जमीनी रूप दिया जाएगा उस दिन भारत पूरी दुनिया का नेतृत्व करने के दावेदारों में सबसे आगे खड़ा दिखाई देगा.
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