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अमेरिकी संविधान के विपरीत भारतीय संविधान में एकीकृत न्याय व्यवस्था की स्थापना की गई है जिसमें शीर्ष स्थान पर उच्चतम न्यायालय व उसके अधीन उच्च न्यायालय हैं. एक उच्च न्यायालय के अधीन न्यायालयों की अधिनस्थ श्रेणियां हैं जो जिला न्यायालय एवं अन्य अधीनस्थ न्यायालय न्यायालय की एकल व्यवस्था भारत सरकार अधिनियम 1935 से ग्रहण की गई है और यह केंद्रीय व राज्य विधियों को लागू करती है. दूसरी और अमेरिका में न्यायालय की द्वैध व्यवस्था है एक केंद्र के लिए तथा दूसरा राज्यों के लिए. संजय कानून को संघ न्याय क्षेत्र एवं राज्य कानून कोराजन या क्षेत्र द्वारा लागू किया जाता है यद्यपि भारत भी अमेरिका की तरह संघीय देश है लेकिन भारत में एकीकृत न्यायपालिका और मूल विधि व न्याय की एक प्रणाली है.
भारत के उच्चतम न्यायालय का उद्घाटन 28 जनवरी 1950 को किया गया था. यह भारत सरकार अधिनियम 1935 के तहत लागू संघीय न्यायालय का उत्तराधिकारी था. हालांकि उच्चतम न्यायालय का न्याय क्षेत्र पूर्ववर्ती न्यायालय से ज्यादा व्यापक है उच्चतम न्यायालय ने ब्रिटेन के पृवी काउंसिल का स्थान ग्रहण किया था जो अब तक अपील का सर्वोच्च न्यायालय था.
भारतीय संविधान के भाग 5 में अनुच्छेद 124 से 147 तक उच्चतम न्यायालय के गठन स्वतंत्रता न्याय क्षेत्र शक्तियां प्रक्रिया आदि का उल्लेख है संसद भी उनके विनियमन के लिए अधिकृत है.
उच्चतम न्यायालय का गठन
इस समय उच्चतम न्यायालय में 31 न्यायाधीश हैं फरवरी 2009 में केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय के कुल न्यायाधीशों की संख्या 26 से बढ़ाकर 31 कर दी थी जिसमें मुख्य न्यायाधीश भी शामिल है. यह वृद्धि उच्चतम न्यायालय संशोधन अधिनियम 2008 के अंतर्गत की गई थी मूलता उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या आठ निश्चित थी 1956 में संसद में अन्य न्यायाधीशों की संख्या 10 निश्चित की 1960 में 13, 1970 में 17 और 1986 में 25 कर दी थी.
न्यायाधीश की नियुक्ति
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है. राष्ट्रपति आने न्यायाधीशों एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सलाह के बाद करता है इसी तरह अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति भी होती है मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त अन्य न्यायाधीशों को नियुक्ति में मुख्य न्यायाधीश का परामर्श आवश्यक है.
परामर्श पर विवाद
बंद में परामर्श शब्द की उच्चतम न्यायालय द्वारा विभिन्न व्याख्या दी गई हैं न्यायाधीश मामले 1982 में न्यायालय ने कहा कि परामर्श का मतलब सहमति नहीं वरन विचारों का आदान-प्रदान है लेकिन द्वितीय न्यायाधीश मामले 1993 में न्यायालय ने अपने पूर्व के फैसले को परिवर्तित किया और कहा कि परामर्श का मतलब सहमति प्रकट करना है. इस तरह इस व्यवस्था दी गई कि न्यायाधीशों की नियुक्ति के मामले में उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा दी गई सलाह राष्ट्रपति को मानना होगा लेकिन मुख्य न्यायाधीश जैसल आपने दो वरिष्ठ सहयोगियों से विचार-विमर्श करने के बाद देगा.
मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति
1950 से 1973 तक व्यवहार में यह था कि उच्चतम न्यायालय में वरिष्ठ कम न्यायाधीश को बताओ और मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया तथा इस व्यवस्था का 1973 में तब आंगन हुआ जब ए एन राय को 3 वरिष्ठ न्यायाधीशों के ऊपर भारत का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त कर दिया गया. दोबारा 1977 में एम यू बैग को वरिष्ठता व्यक्ति के ऊपर बतौर मुख्य न्यायाधीश बना दिया गया सरकार के इस निर्णय की स्वतंत्रता को उच्चतम न्यायालय ने तीसरे न्यायाधीश मामले 1993 में कम किया इसमें उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी कि उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश को भारत के मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया जाना चाहिए.
न्यायाधीशों की योग्यताएं
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश बनने के लिए किसी व्यक्ति को निम्नलिखित योग्यताएं होनी चाहिए
भारतीय नागरिक होना चाहिए
उसे किसी उच्च न्यायालय का कम से कम पांच साल के लिए न्यायाधीश होना चाहिए उसे उच्चतम न्यायालय विभिन्न न्यायालयों में मिलाकर 10 वर्ष तक वकील होना चाहिए राष्ट्रपति उसे सम्मानित न्याय वादी होना चाहिए.
शपथ की प्रक्रिया
उच्चतम न्यायालय के लिए नियुक्त न्यायाधीश को अपना कार्यकाल संभालने से पूर्व राष्ट्रपति या इस कार्य के लिए उसके द्वारा नियुक्त व्यक्ति के सामने निम्नलिखित शपथ लेनी होगी कि मैं
भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा
भारत की प्रभुता एवं अखंडता को रखूंगा
पूरी योग्यता ज्ञान और विवेक से अपने पद के कर्तव्यों का भय या पक्षपात पूर्ण के पालन करूंगा.
संविधान और विधियों की मर्यादा बनाए रखूंगा.
न्यायाधीशों का कार्यकाल
संविधान में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों का कार्यकाल तय नहीं किया गया हालांकि इस संबंध में निम्नलिखित तीन उपबंध बनाए गए हैं
65 वर्ष की आयु तक पद पर बना रह सकता है उसके मामले में किसी प्रश्न के उठने पर संसद द्वारा स्थापित संस्था इसका निर्धारण करेगी.
वह राष्ट्रपति को लिखे त्यागपत्र दे सकता है
संसद की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा उसे पद से हटाया जा सकता है
न्यायाधीशों को उनके पद से हटाने की प्रक्रिया
राष्ट्रपति के आदेश द्वारा उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को उसके पद से हटाया जा सकता है राष्ट्रपति ऐसा तभी कर सकता है जब इस प्रकार हटाए जाने हेतु संसद द्वारा उसी सत्र में ऐसा संबोधन किया गया हो इस आदेश को संसद के दोनों सदनों के विशेष बहुमत का समर्थन प्राप्त होना चाहिए उसे हटाने का आधार उसका दुर्व्यवहार या उसका सिद्ध कदाचार होना चाहिए.
वेतन एवं भत्ते
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों का वेतन भत्ते विशेषाधिकार अवकाश एवं पेंशन का निर्धारण समय-समय पर संसद द्वारा किया जाता है वित्तीय आपातकाल के दौरान इनको कम किया जा सकता है 2009 में मुख्य न्यायाधीश का वेतन प्रतिमाह ₹33000 से बढ़कर ₹100000 प्रतिमा और अन्य न्यायाधीशों का वेतन ₹30000 प्रतिमाह से बढ़ाकर ₹90000 प्रतिमाह कर दिया गया इसके अलावा उन्हें अन्य भत्ते भी दिए जाते हैं उन्हें निशुल्क आवास और अन्य सुविधाएं जैसे चिकित्सा का टेलीफोन आदि मिलती है.
सेवानिवृत्ति मुख्य न्यायाधीश एवं अन्य न्यायाधीशों को पेंशन उनके अंतिम माह के वेतन का 50% निर्धारित है.
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