सिविल सेवा परीक्षा में भारतीय कला एवं संस्कृति एक महत्त्वपूर्ण विषय है। इसमें भारतीय कला एवं संस्कृति से सम्बन्धित प्रारंभिक परीक्षा तथा मुख्य परीक्षा में यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण Topic में रखा गया है। इसमें अगर महत्वपूर्ण Topic की बात की जाये भारतीय वास्तुकला, मूर्तिकला और मृद्भाण्ड, भारतीय चित्रकलायें, भारतीय हस्तशिल्प, भारतीय संगीत से सम्बन्धित संगीत में आधुनिक विकास, जैसे महत्वपूर्ण विन्दुओं को UPSC Exam में पूछे जाते हैं। भारतीय कला एवं संस्कृति में भारतीय वास्तुकला को भारत में होने वाले विकास के रूप में देखा जाता है। भारत में होने वाले विकास के काल की यदि चर्चा कि जाये तो हड़प्पा घाटी सभ्यता से आजाद भारत की कहानी बताता है। भारतीय वास्तुकला में राजवंशों के उदय से लेकर उनके पतन, विदेशी शासकों का आक्रमण, विभिन्न संस्कृतियों और शैलियों का संगम आदि भारतीय वास्तुकला को बताते हैं। भारतीय वास्तुकला में शासकों द्वारा बनवाये गये भवनों की आकृतियाँ [डिजाइन] आकार व विस्तार के...
भारत के कई राज्य आसमान में धुआं छा जाने से जाने की समस्या से परेशान है इसके लिए धान की पराली जलाने वाले किसानों को उत्तरदाई माना जा रहा है यह समस्या सर्दियों में और भी गंभीर होती है क्योंकि यह खरीफ की फसल धान की कटाई के बाद खेत से बचे फसल अवशेष जिसे पराली कहते हैं को बड़ी मात्रा में जलाने के चलते होती है.
भारत में तकरीबन 388 मिलियन टर्न फसल अवशेष का उत्पादन हर साल होता है कुछ फसल अवशेष का तकरीबन 27 फ़ीसदी गेहूं का अवशेष और 51 फ़ीसदी धान का अवशेष और की दूसरी फसलों के अवशेष होते हैं.
गेहूं और दूसरी फसलों के अवशेष या भूसा पशुओं को खिलाने काम में लाया जाता है लेकिन धान के फसल अवशेष या भूसे में ऑफ लेजी कम और सिलिका की मात्रा ज्यादा होने की वजह से इसके पुआल को पशुओं के चारे के रूप में प्रयोग नहीं किया जाता है.
धान की पराली जलाने से विभिन्न जहरीली गैसें जैसे कार्बन मोनो आक्साइड कार्बन डाइऑक्साइड बेंजीन नाइट्रस ऑक्साइड और एयरोसोल निकलकर वायुमंडल की साफ हवा में मिलकर उसे प्रदूषित करती है नतीजा यह पूरा वातावरण दूषित हो जाता है यह जहरीली गैसें वातावरण में फैल कर जीवो में विभिन्न घातक बीमारियों जैसे त्वचा की बीमारी आंखों की बीमारियां सांस व फेफड़ों की बीमारी कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियां फैलाते हैं इसलिए किसान पराली जलाने से बचें किसान इससे ना केवल पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचा सकते हैं अभी तो पैसे भी कमा सकते हैं.
जलाए जाने की वजह
धान की पराली में कार्बन और नाइट्रोजन की मात्रा ज्यादा होने की वजह से अगर इसे सीधे खेत में जो दिया जाए तो मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के साथ-साथ पौधे भी सकता भी बढ़ती है इसका सीधा असर भी जमुनिया और उत्पादन पर बढ़ता है इस प्रक्रिया में समय भी लगता है.
धान की पुआल में सिलिका वाली ग्रीन की मात्रा ज्यादा होने के चलते इसे सड़ने में अधिक समय लगता है इसलिए किसान इसे पूरे खेत में फैला कर उसके ऊपर पर्याप्त मात्रा में यूरिया छिड़क का पानी भर देते हैं इससे पुआल जल्दी सर्च हो जाता है लेकिन इसमें यूरिया की मात्रा ज्यादा होने के चलते कार्बन नाइट्रोजन के अनुपात में कमी आ जाती है.
अगर कार्बन और नाइट्रोजन का यह अनुपात 25 अनुपात A1 से कम हो जाए तो मिट्टी के सोच में जीव मौजूद नाइट्रोजन का उपयोग नहीं कर पाते हैं जिस वजह से नाइट्रोजन परिवर्तित होकर अमोनिया बन जाती है इस तरह नाइट्रोजन का उचित उपयोग नहीं हो पाता है.
इसके अलावा पुआल को खेत में जो देने से मिट्टी के पोषक तत्व जैसे नाइट्रोजन गति हीनया स्थिर हो जाते हैं जिससे यह पौधों को उपलब्ध नहीं हो पाती है इसलिए किसान धान की फसल काटने के बाद गेहूं बोने की तैयारी में लगे होते हैं उनके पास समय की कमी होने के चलते जल्दबाजी में पुआल खेत में फैला कर उसमें आग लगा देते हैं.
पुआल जलाने के हानिकारक प्रभाव
मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की कमी होना.
मिट्टी की संरचना में गिरावट
मिट्टी की जैविक गतिविधियों में भी गतिविधियों में कमी होना
पर्यावरण प्रदूषण का बढ़ना इसकी वजह से जीव जंतुओं की सेहत पर बुरा असर होना
धान के पुआल से कंपोस्ट बनाना एक सुरक्षित विकल्प
सूक्ष्म जीवाणुओं की मदद से कार्बनिक पदार्थों को ऑक्सी कृत्य में बदलाव की प्रक्रिया को कंपोस्ट बनाना कहते हैं इससे बनने वाला उत्पाद कंपोस्ट कहलाता है कंपोस्ट को मिट्टी में मिलाने से पौधे और मिट्टी दोनों को फायदा होता है यह पौधों की बढ़वार व विकास के लिए पोषक तत्व प्रदान करता है साथ ही मिट्टी की गुरु रख सकती में बढ़ोतरी करता.
कंपोस्ट बनाने के लिए धान की कटाई के बाद बच्ची वालों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लेते हैं पुआल से कंपोस्ट बनाने के लिए गड्ढा विधि या ढेर विधि का प्रयोग में लाया जाता है.
गड्ढे की लंबाई आमतौर पर 6 से 10 मीटर और चौड़ाई व गहराई 1 मीटर रखते हैं पुआल ज्यादा मात्रा में होने पर गड्ढों की तादाद बढ़ाई जा सकती है इसके बाद पुआल के छोटे-छोटे कटे टुकड़ों को रात में पानी में डुबोकर नमन करते हैं और फिर गड्ढे में भरकर अब इसके ऊपर गोबर की एक परत लगाते हैं इस तरह कुल 3 प्रति बनाई जाती हैं.
वालकेश्वर ने की प्रक्रिया को तेज करने के लिए इसमें 50 ग्राम प्रति 100 किलोग्राम भूसा की दर से ट्राइकोडरमा का वर्क मिलाया जा सकता है और कंपोस्ट का कार्बन नाइट्रोजन के अनुपात को कम करने के लिए इसमें 0.2 5 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति 100 किलोग्राम वालों की दर से मिलाते हैं.
खाद को ज्यादा प्रभावशाली बनाने के लिए इसमें पाइराइट 10 फ़ीसदी की दर से और रॉक फास्फेट 1 फ़ीसदी की दर से मिश्रण का प्रयोग किया जाता है इसमें समय-समय पर पानी का छिड़काव करते रहना चाहिए ताकि इसमें पर्याप्त मात्रा में नमी बनी रहे इसमें हवा के आने जाने के लिए 15 दिन के अंतराल पर इसे पलट देना चाहिए जिससे ऊपरी और निचली सतह अच्छी तरह से आपस में मिल जाती है कंपोस्ट बनाने की पूरी प्रक्रिया में 4 महीने का समय लगता है इसके बाद इसे खेत में डाल देना चाहिए.
कंपोस्ट को जमीन में डालने के फायदे
फसल अवशेषों का इस्तेमाल कर उससे बेहतर क्वालिटी की खाद बनाकर खेतों में डाली जा सकती है इस प्रकार फसल अवशेषों का प्रबंधन आसानी से किया जा सकता है और फसल को पर्यावरण प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है.
वालों से बनी खाद मिट्टी की भौतिक रासायनिक व जैविक अवस्था सुधार की है और पौधों के जरूरी पोषक तत्वों को मीनल मीन लाइजेशन को बढ़ाती है जिससे पोषक तत्व मिट्टी में ज्यादा समय तक बने रहे साथ ही यह खाद मिट्टी में मौजूद फायदेमंद सूक्ष्मजीवों के बीच संतुलन बनाए रखने का भी महत्वपूर्ण काम करती है इसलिए यह खाद फसल की बढ़वार और विकास को बढ़ाकर फसल के उत्पादन को बढ़ाती है साथ ही पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाती है.
कंपोस्ट खाद की पहचान करने की प्रक्रिया
कंपोस्ट खाद का रंग काला या गहरा बुरा होता है और इसमें 30 से 50 फ़ीसदी तक नमी की मात्रा होनी चाहिए इसकी गंध मिट्टी जैसी आनी चाहिए और इसमें दूसरी किसी तरह की गंध जैसे तेज खट्टी अमोनिया साड़ी भी बदबू नहीं आनी चाहिए तैयार कंपोस्ट खाद का पीएच मान 5:00 से 8:00 के बीच होना चाहिए इसमें 34 से लगा कर के 45 फ़ीसदी तक का जो पदार्थ की मात्रा होनी चाहिए इसमें 30 से 35 तक कार्बन नाइट्रोजन का अनुपात माना गया है.
बिजली उत्पादन में पुआल का इस्तेमाल
धान के पुआल का इस्तेमाल बिजली उत्पादन के लिए भी किया जाता है इससे बिजली उत्पादन संयंत्र की आपूर्ति बिजली बनाने के लिए की जा सकती है बायोमास आधारित बिजली संयंत्रों को बढ़ावा देने के लिए सरकार विभिन्न प्रोत्साहन योजना चला रही है पंजाब में बायोमास आधारित बिजली संयंत्र द्वारा 62.5 मेगावाट बिजली उत्पादन के लिए तकरीबन 0 पॉइंट 4 8 मिलियन टन धान के पुआल का इस्तेमाल किया जा रहा है इससे विभिन्न राज्य उद्योग उर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन रहे हैं.
बायोगैस का उत्पादन प्रक्रिया
धान के पुआल से प्रचुर मात्रा में बायोगैस का उत्पादन भी किया जा सकता है धान के पुआल को ऑक्सीजन की गैरमौजूदगी में सूक्ष्मजीवों के साथ भी गठित करने से बायो गैस बनती है या बायोगैस वाहनों में सीएनजी के स्थान पर इस्तेमाल में लाई जा सकती है सरकार की ओर से बायो गैस उत्पादन में विभिन्न सब्सिडी योजनाएं चल रही है.
मशरूम की खेती
ई करने के लिए धान के पुआल को भेजी जा के इस्तेमाल में लाया जा सकता है बटन मशरूम के उत्पादन के लिए पुआल में से अतिरिक्त पानी की निकासी आनी पानी को निकालना पुआल को काटना और बंदरों को तैयार करने जैसी कुछ क्रियाएं बेहद जरूरी हैं आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि धान के पुआल को कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल करते हुए इन कामों के लिए अनुमानित लागत ₹475 प्रति क्विंटल जबकि यह ₹725 प्रति कुंटल है जब गेहूं के भूसे को आधार सामग्री के रूप में उपयोग किया जाता है इसलिए मशरूम उत्पादन के लिए धान के पुआल का इस्तेमाल कर मशरूम उत्पादकों को शुद्ध बचत के रूप में ढाई सौ रुपए प्रति कुंटल की राशि बचाने में मदद मिल सकती है.
उसे कंपोस्ट बनाते समय सावधानियों का विशेष रूप से ध्यान रखें
धान के पुआल में कार्बन नाइट्रोजन का अनुपात 90 अनुपात a1 से अधिक होने के कारण हानिकारक होता है इसे कम करने के लिए 50 अनुपात A1 खाद बनाते समय उसमें गोबर 851 कुक्कुट बीज या यूरिया 1 फ़ीसदी मिलाते हैं तकरीबन 65 फ़ीसदी नमी की मात्रा धान के पुआल में खाद बनाते समय रखनी चाहिए तकरीबन 15 दिन में लेकर 20 दिन तक बाद खाद की पलटाई जरूर करनी चाहिए कंपोस्ट का तापमान 35 डिग्री सेंटीग्रेड तक होने पर उसे ज्यादा पौष्टिक बनाने के लिए उसमें एजोटोबेक्टर या स्प्रे लंब का कल्चर मिलाते हैं इसमें खाद में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ जाती है खाद में फास्फोरस की मात्रा बढ़ाने के लिए उसमें फास्फोरस भी ले आना चाहिए
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