Drafting और Structuring the Blog Post Title: "असुरक्षित ऋण: भारतीय बैंकिंग क्षेत्र और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, और RBI की भूमिका" Structure: परिचय असुरक्षित ऋण का मतलब और यह क्यों महत्वपूर्ण है। भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में असुरक्षित ऋणों का वर्तमान परिदृश्य। असुरक्षित ऋणों के बढ़ने के कारण आसान कर्ज नीति। उधारकर्ताओं की क्रेडिट प्रोफाइल का सही मूल्यांकन न होना। आर्थिक मंदी और बाहरी कारक। बैंकिंग क्षेत्र पर प्रभाव वित्तीय स्थिरता को खतरा। बैंकों की लाभप्रदता में गिरावट। अन्य उधारकर्ताओं को कर्ज मिलने में कठिनाई। व्यापक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव आर्थिक विकास में बाधा। निवेश में कमी। रोजगार और व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की भूमिका और समाधान सख्त नियामक नीतियां। उधार देने के मानकों को सुधारना। डूबत ऋण प्रबंधन (NPA) के लिए विशेष उपाय। डिजिटल और तकनीकी साधनों का उपयोग। उदाहरण और केस स्टडी भारतीय बैंकिंग संकट 2015-2020। YES बैंक और IL&FS के मामले। निष्कर्ष पाठकों के लिए सुझाव और RBI की जिम्मेदारी। B...
पपीता भारत का एक पाचक पौष्टिक और पसंदीदा फल है जिसके खेती देश के अलग-अलग हिस्सों में की जाती है इसकी व्यवसायिक बागवानी भारत श्रीलंका दक्षिण अफ्रीका व अमेरिका महाद्वीप के देशों में की जाती है इसके फलों का दूध विभिन्न प्रकार के रोगों के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है पपीता में विटामिन ए की मात्रा सारे फलों में आम के बाद दूसरे स्थान पर है पपीते के पुष्पों को लिंग के आधार पर मुख्य नरमादा वह लिंगी प्रकार में बांटा गया है पपीते की उन्नत खेती करने के लिए अच्छे व स्वस्थ बीच का चुनाव बहुत जरूरी है.
भूमि व जलवायु
पपीते के सफल बागवानी के लिए गहरी और उपजाऊ समान पीएच मान वालीबाल v2mat मिट्टी अत्यधिक उपयुक्त मानी गई है इसकी बागवानी के लिए भूमि में जल निकास का होना बहुत जरूरी है जलभराव इस फसल के लिए काफी हानिकारक साबित होता है.
पपीता एक उष्णकटिबंधीय फल है पर इसकी खेती बिहार की संतोष में जलवायु में कामयाब से की जा रही है वायुमंडल का तापमान 10 सेंटीग्रेड से कम होने पर पपीते की प्रति फलों का लगना व फलों के गुणवत्ता प्रभावित होती है पपीते की अच्छी पैदावार के लिए 22 इंटीग्रेट से 26 सेंटीग्रेड तापमान उपयुक्त पाया गया है औसत वार्षिक वर्षा बारह सौ से लगा कर के 15 मिलीमीटर सही होती है पपीते का पूरा गर्म मौसम होने से फलों की मिठास बढ़ जाती है.
पपीते की कुछ प्रमुख किस्मों की जानकारी निम्नलिखित है
पूसा डेलीसियस
यह एक डाइनो डाइसोडियम प्रजाति है इसमें मादा और उभयलिंगी पौधे निकलते हैं उभय लिंगी जिनमें नर और मादा दोनों के लक्षण होते हैं पौधे भी फल देते हैं यह 80 सेंटीमीटर की ऊंचाई से फल देता है. इस फल का फल अत्यंत स्वादिष्ट और सुगंधित होता है फल का आकार माध्यम से लेकर के साधारण बड़ा होता है इसका वजन 1 से 2 किलोग्राम तक होता है. पपीते के पकने पर फल के गूदे का रंग हरा होता है वह गूदा ठोस होता है गुर्दे की मोटाई 4 सेंटीमीटर और कुल घुलनशील फोर्स की मात्र 10 से 13 वृक्ष होती है फलों की पैदावार 45 किलोग्राम प्रति पेड़ होती है.
पूजा मेजेस्टी
इस प्रजाति में पूछा डेलीसियस की तरह माधव वेलेंगी पौधे निकलते हैं यह 50 सेंटीमीटर की ऊंचाई से फल देता है और एक फल का वजन 1 किलो से लगा कर के ढाई किलोग्राम तक होता है यह किस्म पैदावार में उत्तम है वह फल में पदेन की मात्रा ज्यादा पाई जाती है.
अभिन्न कच्चे पपीते से निकाले गए दूध को सुखाकर बनाया जाता है इसके फल ज्यादा टिकाऊ होते हैं वह इसमें विशाल रोगों का प्रकोप कम होता है पकने पर दूध ठोस व पीले रंग का होता है एक पेड़ से तकरीबन 40 किलोग्राम फल मिलते हैं इसके गूदे की मोटाई 3:30 सेंटीमीटर होती है यह प्रजाति सूत्र क्रमी और होती है.
पूसा पूसा द्वार
इसमें किस नर व मादा पौधे निकलते हैं और इनमें फलन जमीन से 40 सेंटीमीटर की ट्राई से होता है एक पल का औसत वजन आधा किलो से लगाकर के डेढ़ किलोग्राम तक होता है इसकी पैदावार 40, 50 किलोग्राम प्रति पौधा होती है फल के पकने पर गूदे का रंग पीला होता है गधे की मोटाई साडे 3 सेंटीमीटर होती है पौधा होना होने के चलते इससे आंधी या तूफान से कम मुस्कान पहुंचता है.
पूजा जॉइंट
इस किस्म के पौधे बड़े होते हैं इसमें फल जमीन से 80 सेंटीमीटर की ऊंचाई से होता है इसके फल बड़े होते हैं और एक फल का भजन डेढ़ किलो से लगाकर के साढे 300 किलो तक होता है इसके गूदे का रंग पीला व मोटाई 5 सेंटीमीटर होती है प्रदीप a97 ऊपर जाति से 35 किलोग्राम है यह किस में बैठा और सब्जी बनाने के लिए काफी सही है.
पूजा नन्हा
पपीते की सबसे बड़ी प्रजाति है जो गामा किरणों द्वारा विकसित की गई है यह 30 सेंटीमीटर की ऊंचाई से फैलना शुरु करता है इसमें प्रति प्यार 25 किलोग्राम फल मिलता है इसके गूदे का रंग पीला व मोटाई 3 सेंटीमीटर होती है यह प्रजाति सघन बागवानी व गृह वाटिका के लिए काफी सही पाई गई है.
कुर्ग हनी
यह किस भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान बेंगलूर के केंद्रीय बागवानी प्रयोग केंद्र चैताली द्वारा चयनित किसमें है इसका चयन हनी नामक प्रजाति से किया गया है इस पौधे के मध्यम आकार क्या होता है इसके फल लंबे अंडाकार आकार व मोटे गूदे दार होते हैं फल का वजन डेढ़ किलो से लगा कर के 2 किलो तक होता है गुर्दे का रंग पीला होता है इसमें कुल घुलनशील ठोस 13 पॉइंट पांच होती है प्रीति पौधे औसत 75 किलोग्राम तक होती है.
सूर्या
शादी के फल मध्यम आकार के होते हैं जिनका औसत वजन 600 से लगाकर के 800 ग्राम तक होता है और बीच की कैविटी का मूर्ति है फल का गूदा गहरा लाल रंग का होता है फल की भंडारण क्षमता भी अच्छी होती है प्रति पौधे औसत उपज 50 से 65 किलोग्राम तक होती है तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय कोयंबटूर की प्रजाति है यह प्रजाति साल 1972 में चयनित की गई थी इसके पौधे छोटे होते हैं फल मध्यम आकार के होते हैं इनका गूदा पीले रंग का होता है प्रतिरोध है औरतों पर 40 किलोग्राम तक होती है.
पौधे तैयार करने का समय
दीपिका बीज नर्सरी में रोकने की निर्धारित तिथि 2 महीने पहले बोलना चाहिए इस प्रकार पौधे मुख्य क्षेत्र में रोपाई के समय तकरीबन 15 20 सेंटीमीटर की ऊंचाई क्यों जाते हैं बिहार में जहां पानी जमा होने की समस्या और बारिश के दिनों में विषाणु रोग अधिक तेजी से फैलते वहां अगस्त के अंत में या सितंबर के शुरू में नर्सरी में बीज बोना चाहिए.
खाद और उर्वरक
खा देने की जरूरत होती है प्रत्येक फल वाले पेड़ों को 200 से ढाई सौ ग्राम नाइट्रोजन 200 से ढाई सौ ग्राम फास्फोरस वर्णन 100 से 500 ग्राम पोटाश देने की देने से अच्छी उपज प्राप्त होती है साधारणतया उपरोक्त खाद तत्वों के लिए यूरिया साडे 400 से 500 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट 1215 सौ ग्राम पोटा 4:30 से 8:30 सौ ग्राम लेकर उन्हें मिला लेना चाहिए और चार भागों में बांट का प्रत्येक महीने शुरू में जुलाई से अक्टूबर तक में पेड़ों में नीचे पौधों में 3 सेंटीमीटर गोलाई में देकर मिट्टी में अच्छी तरह मिला देना चाहिए खाद देने के बाद हल्की सिंचाई करने नहीं चाहिए इसके अलावा सूचना तत्व और जिंक सल्फेट का छिड़काव एके चौबे और आठवें महीने में करना चाहिए.
सिंचाई
बगीचे में जल प्रबंधन बहुत ही आवश्यक है जब तक पौधा पालन में नहीं आता तब तक हल्की सिंचाई करनी चाहिए जिससे पौधे जीवित रह सकें अधिक पानी देने से पौधे काफी लंबे हो जाते हैं विषाणु रोग का प्रकोप भी ज्यादा होता है ऐसा देखा गया है कि पानी की कमी से फल इन्हें झड़ने लगते हैं पपीते में टपका सिंचाई प्रणाली के तहत आठ से 10 लीटर पानी प्रतिदिन देने से पौधे की बढ़वार वाज अच्छी मिलती है मिट्टी में नमी बनाए रखने के लिए पौधे के तने के चारों और सूखे खरपतवार वाली पॉलिथीन की पलटवार दी जानी चाहिए.
फूल और फल लगना
पौधे लगाने के लगभग 6 महीने बाद मार्च अप्रैल महीने में पौधों में फूल आने लगते हैं पपीते में मुख्य रूप से तीन प्रकार के नर मादा हुआ वह लिंगी पाए जाते हैं नरवा वेलेंगी पौधे वातावरण के अनुसार लिंग परिवर्तन कर सकते हैं पर मादा पौधे स्थाई होते हैं नर व मादा पौधों की पहचान फूल के आधार पर कर सकते जो ही नर पौधे दिखाई पड़े तुरंत काटकर खेत से निकाल देने जाएंगे पर परागण के लिए खेत में दसवीं 10 विनर पौधे अवश्य छोड़ देनी चाहिए
औसतन प्रति पेड़ 50 से 1000 किलोग्राम तक की उपज हासिल होती है फल का औसत भार आधा किलो से लगाकर के 3 किलोग्राम तक होता है पौधे के एक अच्छे बाद में 300 से साडे 300 कुंडलपुर एक्टिविटी आफ ऑल प्रतिवर्ष प्राप्त होते हैं प्रति हेक्टेयर उपज बाग में फल लगने वाले पौधों की संख्या व जाति पर भी निर्भर करती है
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