सिविल सेवा परीक्षा में भारतीय कला एवं संस्कृति एक महत्त्वपूर्ण विषय है। इसमें भारतीय कला एवं संस्कृति से सम्बन्धित प्रारंभिक परीक्षा तथा मुख्य परीक्षा में यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण Topic में रखा गया है। इसमें अगर महत्वपूर्ण Topic की बात की जाये भारतीय वास्तुकला, मूर्तिकला और मृद्भाण्ड, भारतीय चित्रकलायें, भारतीय हस्तशिल्प, भारतीय संगीत से सम्बन्धित संगीत में आधुनिक विकास, जैसे महत्वपूर्ण विन्दुओं को UPSC Exam में पूछे जाते हैं। भारतीय कला एवं संस्कृति में भारतीय वास्तुकला को भारत में होने वाले विकास के रूप में देखा जाता है। भारत में होने वाले विकास के काल की यदि चर्चा कि जाये तो हड़प्पा घाटी सभ्यता से आजाद भारत की कहानी बताता है। भारतीय वास्तुकला में राजवंशों के उदय से लेकर उनके पतन, विदेशी शासकों का आक्रमण, विभिन्न संस्कृतियों और शैलियों का संगम आदि भारतीय वास्तुकला को बताते हैं। भारतीय वास्तुकला में शासकों द्वारा बनवाये गये भवनों की आकृतियाँ [डिजाइन] आकार व विस्तार के...
जिस जमाने में महिलाओं के लिए स्कूल तक की पढ़ाई करना बेहद मुश्किल हुआ करता था ऐसी निकली जिन्होंने न केवल स्कूल की पढ़ाई पूरी की बल्कि देश विदेश जाकर के डॉक्टर की डिग्री भी हासिल की और भारत की पहली डॉक्टर महिला बनी.
हमारे देश में ऐसी कई महिलाएं हैं जिन्होंने कुछ ऐसा महान कर दिखाया है जिसका नाम आज भी इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों से लिखा जाता है क्योंकि उन्होंने हमारे देश को अपने कारनामे से गर्व महसूस कराया है महिलाओं को कुछ कर दिखाने की इच्छा जताई है आज हम ऐसी महिला के बारे में बात करेंगे जिसने अपनी हिम्मत और हौसले से भारत की पहली महिला डॉक्टर बन कर दिखाया अब आप सोच रहे होंगे वह महान महिला आखिर कौन थी तो आपको बता दें उस महिला का नाम आनंदी गोपाल जोशी है जिन्हें आनंदीबाई जोशी के नाम से भी जाना जाता है.
आनंदीबाई जोशी का जन्म 31 मार्च 18 सो 65 को महाराष्ट्र के पुणे शहर में हुआ था नंदी बाई का विवाह सिर्फ 9 साल की उम्र में करवा दिया गया था इसके बाद जब वह 14 साल की हुई तो उन्होंने एक बच्चे को जन्म दिया 10 दिन बाद ही उसकी मौत हो गई इस घटना के घटने के बाद से ही आनंदीबाई सदमे में चली गई और उस मुश्किल भरी घड़ी में उन्होंने सोचा कि वह डॉक्टर बनेगी क्योंकि जब उनके बच्चे की तबीयत खराब हुई थी तो उसे देखने वाला कोई डॉक्टर वहां मौजूद नहीं था यानी उनके आस पास ऐसा कोई डॉक्टर नहीं था जो उसका इलाज कर सके यही बात आनंदीबाई को असहनीय साबित हुई और उन्होंने ठान लिया कि वह डॉक्टर बनकर रहेंगे.
पति बने प्रेरणा स्रोत
आनंदीबाई के पति गोपाल राव ने भी उन्हें डॉक्टर की पढ़ाई करने के लिए काफी प्रोत्साहित किया 1880 में जब आनंदीबाई के डॉक्टर की पढ़ाई करने की बात चल रही थी तो आनंदीबाई की तबीयत थोड़ी खराब थी आनंदीबाई का स्वास्थ्य कमजोर हो रहा था उन्हें कमजोरी सिर दर्द कभी बुखार और कभी-कभी सांस लेने में भी दिक्कत होती रहती थी.
कमजोर स्वास्थ्य के बावजूद आनंदी बाई के पति गोपालराव ने उन्हें अमेरिका भेजने का फैसला दिया क्योंकि वह चाहते थे कि आनंदीबाई उच्च शिक्षा प्राप्त करके दूसरी महिलाओं के लिए एक उदाहरण बन सके.
आनंदीबाई 18 सो 86 में डॉक्टर बनकर वापस आई जिसमें उनके पति गोपाल राव ने उनका बहुत साथ दिया था.
हालांकि दुख की बात यह है जब वह भारत में उठी तो उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा और सिर्फ आई साल की उम्र में टीवी जैसी खतरनाक बीमारी की वजह से उनकी मृत्यु हो गई यह सच है कि आनंदीबाई ने जिस उद्देश्य डाक्टरी की डिग्री हासिल की थी उसमें वह पूरी तरह से सफल नहीं हो पाई लेकिन उन्होंने समाज में वह स्थान प्राप्त कर लिया जो आज भी एक मिसाल है आनंदी गोपाल ने समाज की रूढ़िवादी बेड़ियों को तोड़कर स्त्री सशक्तिकरण की एक नई इबारत लिखी जिसे देश दुनिया में पहचान मिली और इस वजह से आनंदी गोपाल जोशी को भारत की पहली डॉक्टर महिला होने के रूप में जाना जाता है.
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