Drafting और Structuring the Blog Post Title: "असुरक्षित ऋण: भारतीय बैंकिंग क्षेत्र और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, और RBI की भूमिका" Structure: परिचय असुरक्षित ऋण का मतलब और यह क्यों महत्वपूर्ण है। भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में असुरक्षित ऋणों का वर्तमान परिदृश्य। असुरक्षित ऋणों के बढ़ने के कारण आसान कर्ज नीति। उधारकर्ताओं की क्रेडिट प्रोफाइल का सही मूल्यांकन न होना। आर्थिक मंदी और बाहरी कारक। बैंकिंग क्षेत्र पर प्रभाव वित्तीय स्थिरता को खतरा। बैंकों की लाभप्रदता में गिरावट। अन्य उधारकर्ताओं को कर्ज मिलने में कठिनाई। व्यापक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव आर्थिक विकास में बाधा। निवेश में कमी। रोजगार और व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की भूमिका और समाधान सख्त नियामक नीतियां। उधार देने के मानकों को सुधारना। डूबत ऋण प्रबंधन (NPA) के लिए विशेष उपाय। डिजिटल और तकनीकी साधनों का उपयोग। उदाहरण और केस स्टडी भारतीय बैंकिंग संकट 2015-2020। YES बैंक और IL&FS के मामले। निष्कर्ष पाठकों के लिए सुझाव और RBI की जिम्मेदारी। B...
आधुनिक भारत के लिए महत्वपूर्ण और अनिवार्य होते हुए भी केवल जानकारी हासिल करना अथवा तकनीकी कौशल अर्जित करना ही शिक्षा का उद्देश्य नहीं है. ऐसा संतुलित मानसिक विकास करना ऐसी विवेक पूर्ण आवृत्ति और लोकतांत्रिक भावना पैदा करना है जो हमें जिम्मेदार नागरिक बनाएं।
(डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन)
मानव जीवन में शिक्षा की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
शिक्षा जीवन की परिस्थितियों का सामना करने की योग्यता पैदा करती है। शिक्षा ही जीवन यापन के लिए पैसा कमाने की योग्यता पैदा करती है और श्रेष्ठ जीवन जीना सिखाती है। इसी के माध्यम से हमें विविध विषयों का ज्ञान होता है और अतीत एवं वर्तमान के बारे में तरह-तरह की जानकारियां प्राप्त होती हैं अंधविश्वास मिटते हैं और सुख एवं आराम के साधन मिलते हैं।
दुर्भाग्य से हमारे देश की 70% आबादी गांव और झुग्गी झोपड़ियों में रहती है तथा अत्यन्त अज्ञान की शिकार है इसका मूL कारण यहां पर व्याप्त अशिक्षा और बेकारी है। यहां शिक्षा का अर्थ ही येन केन प्रकारेण 10वीं या 12वीं का सर्टिफिकेट प्राप्त कर लेना मात्र रह गया है। केवल थोड़े से बच्चे अवश्य अपनी लगन और परिश्रम के बल पर अच्छी पढ़ाई करते हैं। परिणामता यहां पर अधिकतर बच्चों ने उच्च शिक्षा के लिए पात्रता ही नहीं होती और ना उन्हें कोई उचित रोजगार ही मिल पाता है ।इसलिए ग्रामीण युवाओं में निराशा दिशा हीनता और भटकाव व्याप्त है ।जिस कारण से युवक नशे और अपराध की चपेट में आ रहे हैं ।यह स्वयं पतन के गर्त में पडे हैं और समाज के लिए सिरदर्द पैदा करते हैं। गांव में बड़ी संख्या में युवक बेरोजगार होने के कारण अविवाहित रह जाते हैं यह असामान्य और असहज स्थिति है जो को कई प्रकार के सामाजिक अपराधियों का कारण बनती है और अब ऐसी स्थिति सरकार के द्वारा जिस प्रकार से बेरोजगारी उत्पन्न की जा रही है यही हाल अब अर्बन युवाओं का भी होता चला जा रहा है ।वह भी बेरोजगार होते चले जा रहे हैं असमान और असहज स्थिति है जो कई प्रकार के सामाजिक अपराधों का कारण बनती है। कुल मिलाकर स्थिति निराशाजनक और अंधकार में है यह स्थिति समाज और देश के लिए अच्छी नहीं है इसे बदलना अत्यंत आवश्यक है।
मनुष्य के दुखों का कारण क्या है स्वामी विवेकानंद के शब्दों में कहें -तो एक बात जो मैं दिन के उजाले की तरह देख रहा हूं वह यह है कि दुख का एकमात्र कारण अज्ञानता है ।शिक्षा से ग्रामीण और अर्बन अंचल की स्थिति में सुधार लाने के लिए एकमात्र उपाय है वहां के युवक-युवतियों को अच्छी शिक्षा ग्रहण कर ज्ञान प्राप्त करें
हमारे पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह शिक्षा के महत्व को स्पष्ट करते हुए बताते हैं कि मैं एक साधारण साधनों वाले परिवार में पैदा हुआ स्कूल जाने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती थी रात में मिट्टी के तेल के लैंप की हल्की रोशनी में पढ़ता था आज मैं जो भी हूं अपनी एजुकेशन के बदौलत हू।
उन्नति करने और आगे बढ़ने के लिए शिक्षा प्राप्त करना बहुत जरूरी है। शिक्षा से आत्मविश्वास पैदा होता और आत्मविश्वास से हमारी आंतरिक शक्ति जाग उठती है ।फिर कुछ भी करना या पाना कठिन नहीं रहता।
- जैसे स्कूलों में शिक्षकों का अभाव परीक्षा में नकल का चलन। प्रेरक मार्गदर्शन का अभाव गरीबी समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार शिक्षकों में व्याप्त उदासीनता व्यक्तिगत स्तर पर इन सब कारकों को ठीक करना संभव नहीं है और ना ही इंनका ठीक होने का इंतजार किया जा सकता है ।परंतु इन सब परिस्थितियों के होते हुए भी अपने प्रयास से अच्छी शिक्षा प्राप्त की जा सकती है ।इसका प्रमाण है कि ग्रामीण अंचल के कुछ युवक और युवती आज की परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करते हैं और ऊंचे पदों पर पहुंचते हैं ।सोचिए जब वे भी सफल हो सकते हैं तो आप क्यों नहीं ।आप भी अन्य विद्यार्थियों से अलग नहीं थे याद रखिए सफल वही होते हैं जो सफल होने का पक्का इरादा कर लेते और एकाग्रता के साथ पढ़ाई करते हैं बड़े से बड़ा लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है बस आप उसे पाने की इच्छा शक्ति होनी चाहिये।
विद्यार्थियों को अच्छी तरह जान और समझ लेना चाहिए कि जीवन यापन के लिए काम चलाओ पैसा कमाने के लिए भी स्कूल स्तर 12वीं तक की शिक्षा अच्छी तरह पूरी करना अनिवार्य है। सर्टिफिकेट ले लेना ही काफी नहीं है अन्यथा जीवन की समस्त समृद्धि और सफलताओं को प्राप्त करने के लिए तो विद्यार्थी को उत्कृष्ट शिक्षा प्राप्त करनी ही चाहिए।
त्याग किए बिना कुछ भी प्राप्त नहीं किया जा सकता शिक्षा प्राप्त करनी है तो आलस्य और आराम का त्याग करना ही पड़ेगा। इसके बिना शिक्षा की प्राप्ति संभव नहीं है यह एक सनातन सत्य है इसका कोई अपवाद नहीं है आलसी सुखी नहीं है हो सकता है निद्रा लूट विद्यार्थी नहीं हो सकता ।याद रखिए यदि विद्यार्थी जीवन आलस्य और लापरवाही भरा है तो भविष्य अंधकार में होना निश्चित है। क्योंकि वर्तमान में हमारे कार्यों से ही हमारे भविष्य का निर्माण होता है शास्त्रों का मत है
कर्म प्रधान विश्व करि राखाजो जस करहिं तस फल चखा
संसार कर्म प्रधान है तो जैसा करता है वैसा ही फल पाता अलग से मानसिक जड़ता का भाव है और निष्क्रियता उसका परिणाम आलस्य की पहचान है। समय पर कार्य ना करना कार्य को टालते जाना छोड़ो फिर हो जाएगा विद्यार्थियों के लिए तो आलस्य सबसे बड़ा शत्रु है ।आलस्य को कर्मठता से ही जीत सकते हैं जो विद्यार्थी आलस्य छोड़कर वर्तमान समय का सदुपयोग नहीं करेगा वह कभी सफल और सुखी नहीं हो सकेगा। भविष्य की चिंता तीव्र इच्छा शक्ति और दृढ़ संकल्प से अपने कार्य में जुट जाने से आलस्य पर विजय पाई जा सकती है।
शिक्षा प्राप्त करने में अच्छी सफलता के लिए दूसरी जरूरी चीज है एकाग्रता अर्थात पढ़ते समय आपका पूरा ध्यान केवल पढ़ने में लगे मन इधर-उधर नहीं भटकना चाहिए और ना ही दूसरे कार्यों या गतिविधियों में अधिक समय लगाना चाहिए। विद्यार्थी की कम शैक्षिक उपलब्धि के बारे में इस सटीक विश्लेषण पर ध्यान दीजिए कोई बालक विद्यार्जन नहीं कर पाता है परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं होता है इसका क्या कारण है वह अपने मन की शक्ति को एक जगह केंद्रित करने में असमर्थ है अन्यत्र विषयों में उसका मन सदा फंसा रहता है। वह मन को पूर्णतया एक विषय में नहीं लगा पाता मन की शक्ति दूसरी ओर वह हो जाती है इसलिए विषय पर अधिकार नहीं कर पाता।
सफल और असफल विद्यार्थी में क्या अंतर है यही कि सफल विद्यार्थी अध्ययन एकाग्रता के साथ करता है ।उसमें अपने को तल्लीन कर लेता है और असफल विद्यार्थी केवल पढ़ाई का बोझ ढोता है उसमें उसके मन की शक्ति नहीं लगती है अतः सफल होने के ल एकाग्रता के बिना ज्ञान नहीं आता।
यद्यपि एकाग्रता एक मानसिक प्रक्रिया है जो मन के संयम से घटित होती है परंतु उसको भंग करने वाले कुछ कारण भी है जैसे अस्वस्थ होने पर या शरीर में पीड़ा होने पर एकाग्र नहीं हो सकते आता स्वस्थ रहना आवश्यक है रात में नींद पूरी ना हो तो अगले दिन शारीरिक एवं मानसिक थकान हमें एकाग्र नहीं होने देगी अतः कम से कम 6 से 7 घंटे के लिए आवश्यक लेनी चाहिये।
सफलता के लिए तीसरा अति महत्वपूर्ण कारक है समय का सदुपयोग टाइम टेबल बनाकर बेहतर प्लानिंग के साथ पढ़ाई की जाए तो परीक्षा में अच्छे अंक लाने में कोई कठिनाई नहीं होती इससे ना तो समय की कमी रहती है और ना कोई काम अधूरा रहता है बीता हुआ समय कभी लौटकर नहीं आता वर्तमान के समय कोई शुभ मुहूर्त नहीं है जिसने तुरंत काम करने की आदत नहीं बनाई उसके निश्चय पूरे होने की क्या आशा जो विद्यार्थी अपने समय को गपशप निरर्थक कार्य मेरा खाली बैठकर गवा देते हैं वे तभी सफल नहीं हो सकते समय बर्बाद करना जीवन बर्बाद करना है अतः सुंदर भविष्य और सफलता चाहिए तो समय के एक-एक क्षण का सदुपयोग कीजिए क्योंकि
“समय गंवाने से ज्यादा बड़ी मूर्खता और कोई नहीं होतीहै ” जीवन बर्बाद करना है -लोकमान तिलक
नदी के स्रोत के समान जीवन बीता जा रहा है जो दिन बीत गया वह लौटकर नहीं आएगा अतः समय का तुरंत सदुपयोग करो बाद में हाय तौबा करने से कुछ लाभ नहीं होगा विद्यार्थी के मन में अपने शिक्षक के प्रति श्रद्धा एवं सीखने की इच्छा होगी तभी वह कुछ सीख पाएगा यदि विद्यार्थी के मन में जानने या सीखने की इच्छा ना हो तो उसे कोई कुछ सिखा नहीं सकता कक्षा में 40 ,50 विद्यार्थियों तो उनमें पांच 7 विद्यार्थियों ऊंची योग्यता प्राप्त करते हैं यह वह विद्यार्थी होते हैं जो जिज्ञासु होते हैं और श्रद्धा वान होते हैं वहीं शिक्षक वही पुस्तकें फिर उपलब्धि में अंतर क्यों गुरु तो सभी को बराबर ज्ञान बांटते हैं अंतर उनके ग्रहण करने में होता है।
देखा गया है जो विद्यार्थी अपने माता-पिता और बड़ों का सम्मान करते हैं विनय शील होते हैं और उनके अनुशासन में काम करते हैं वे अच्छी शिक्षा प्राप्त करने में सफल होते और जीवन में बहुत उन्नति करते हैं क्योंकि
“बड़ों के अधीन हुए बिना शक्ति कभी भी केंद्रीय भूत नहीं हो सकती है और बिक्री हुई शक्तियों को केंद्रीय भूत किए बिना कोई महान कार्य नहीं हो सकता है”
स्वामी विवेकानंद
विद्यार्थी को अपने मित्र चुनने में सावधानी बरतनी चाहिए अच्छे अध्ययन सील अनुशासित और अच्छे स्वभाव वाले विद्यार्थियों को ही अपना मित्र बनाना चाहिए क्योंकि हम जैसे लोगों के साथ रहते हैं धीरे-धीरे वैसे ही बन जाते हैं पूरे विधा की संगत करने या अश्लील साहित्य पढ़ने या बत्ती चित्र देखने से हमारा मन विकारों से भर जाता है और हम अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं कुसंगति से बचना अत्यंत अनिवार्य है।
विद्यार्थी जीवन में सरलता और सादगी का भी बड़ा महत्व है सरल मन में उलझन नहीं होती और सादगी के कारण बनाओ श्रंगार एवं चटक मटक में समय बर्बाद नहीं होता है यह दोनों स्थितियां विद्या अध्ययन के लिए अनुकूल होती हैं अतः अच्छा सुखी जीवन चाहते हो तो अपने मन के दामाद को छोड़कर मैं सब कुछ कर सकता हूं ऐसा दृढ़ संकल्प मन में लेकर अध्ययन शुरू कीजिए हमारे मन में इतनी उर्जा होती है कि वह असंभव को भी संभव बना देती है बस मन में पक्का इरादा कर शुरुआत कीजिए बिस्तर में पड़े पड़े मात्र करने या सपने देखने से कुछ नहीं मिलने वाला है यदि आप विद्यार्थी जीवन में अपने परिश्रम के बल पर शिक्षा में अच्छी योग्यता प्राप्त कर लेंगे तो भावी जीवन में उन्नति की रफ्तार पकड़ने की संभावना बढ़ जाती है इसी लिए कहावत है कि जिस का बचपन सुधर गया उसका जीवन सुधर गया।
मित्रों आपका शिक्षित होना अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि शिक्षा हमें जीविकोपार्जन करने की योग्यता प्रदान करती है परंतु शिक्षा का दूसरा कार्य जीना सिखाना है इससे भी अधिक मूल्यवान है क्योंकि जीने की सही क्लास सीकर ही हमारा जीवन यशस्वी गौरवशाली और आनंद पूर्ण बनता है शिक्षा से विद्यार्थियों में विनम्रता सहनशीलता करुणा प्रेम और ईमानदारी जैसे चारित्रिक गुणों का विकास होना चाहिए हम स्कूलों में बच्चों को मात्र सूचनाएं देते हैं उन्हें चरित्र निर्माण की सीट भी मिले तो वह बड़े होकर अच्छे नागरिक बनेंगे विद्यार्थियों के लिए महज इंटेलिजेंट और प्रोफेशनल होना ही काफी नहीं है उनमें उत्तम चरित्र भी विकसित होना चाहिए शिक्षा यदि चरित्र का निर्माण नहीं करती तो वह निरर्थक है हमारे स्कूलों और कालेजों में आजकल चरित्र निर्माण की शिक्षा अपेक्षित है अतः यह दायित्व माता-पिता और विद्यार्थी को स्वयं उठाना चाहिए मां को शिशु को सदाचार उचित अनुचित का विचार एवं छोटे-छोटे कार्य करना सिखाना चाहिए और पिता के अनुशासन कर्मठता इमानदारी की सीख देनी चाहिए विद्यार्थियों को पूर्वक अपने चरित्र निर्माण का ध्यान देना चाहिए हमारे पूर्वजों निर्माण के लिए का आविष्कार किया था जो आज भी प्रसांगिक है योग के आठ अंग इसके प्रथम सूत्र है यम और नियम चरित्र निर्माण के साधन।
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