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Indus Valley Civilization क्या है ? इसको विस्तार से विश्लेषण करो ।

🧾 सबसे पहले — ब्लॉग की ड्राफ्टिंग (Outline) आपका ब्लॉग “ सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) ” पर होगा, और इसे SEO और शैक्षणिक दोनों दृष्टि से इस तरह ड्राफ्ट किया गया है ।👇 🔹 ब्लॉग का संपूर्ण ढांचा परिचय (Introduction) सिंधु घाटी सभ्यता का उद्भव और समयकाल विकास के चरण (Pre, Early, Mature, Late Harappan) मुख्य स्थल एवं खोजें (Important Sites and Excavations) नगर योजना और वास्तुकला (Town Planning & Architecture) आर्थिक जीवन, कृषि एवं व्यापार (Economy, Agriculture & Trade) कला, उद्योग एवं हस्तकला (Art, Craft & Industry) धर्म, सामाजिक जीवन और संस्कृति (Religion & Social Life) लिपि एवं भाषा (Script & Language) सभ्यता के पतन के कारण (Causes of Decline) सिंधु सभ्यता और अन्य सभ्यताओं की तुलना (Comparative Study) महत्वपूर्ण पुरातात्त्विक खोजें और केस स्टडी (Key Archaeological Cases) भारत में आधुनिक शहरी योजना पर प्रभाव (Legacy & Modern Relevance) निष्कर्ष (Conclusion) FAQ / सामान्य प्रश्न 🏛️ अब ...

हमारा अन्तरिक्ष और आस पास का क्षेत्र OUR SPACE AND AKSHGANGA

मानव सभ्यता के विकास के साथ-साथ सबसे ज्यादा चिंतन एवं शोध अगर किसी एक विषय पर हुआ है तो वह है ब्रह्मांड की उत्पत्ति एवं वे पदार्थ जिनसे यह ब्रह्मांड वर्तमान स्वरूप में हमारे सामने हैं इस प्रश्न का उत्तर भारतीय दार्शनिकों के साथ ही यूनान के दार्शनिकों ने प्राचीन समय से ही लगातार खोजने का प्रयास किया है विश्व की लगभग सभी सभ्यताओं ने अलग-अलग समय पर ब्रह्मांड की उत्पत्ति एवं विकास के सिद्धांत को प्रतिपादित किया।
 भारतीय दार्शिनिकोंऔर सइनेटिस्टों  ने  प्राच्य सिद्धांतों के अनुसार पृथ्वी जल अग्नि वायु एवं आकाश पांच महाभूतों को बहुत पहले इस ब्रह्मांड के निर्माण के लिए आवश्यक तत्व बताया जबकि यूनानी दार्शनिक एवं वैज्ञानिक आकाश को छोड़कर उपयुक्त चार पदार्थों पृथ्वी जल अग्नि एवं वायु को इस ब्रह्मांड के पदार्थों की संरचना का आधार मानते थे आधुनिक विज्ञान के  विकास के साथ ही अरु  या परमाणु एवं इनके निर्माण में प्रयुक्त आंकड़ों की चर्चा लगभग 400 बीसी के आसपास शुरू हुई अत्यधिक विकसित तकनीक के इस युग में वैज्ञानिक परमाणु की संरचना को पूर्ण रूप से समझने में सफल हुए हैं

               
                    ब्रह्मांड की उत्पत्ति के संदर्भ में big-bang-theory या  महा विस्फोट का सिद्धांत सबसे ज्यादा स्वीकार करने योग्य इस सिद्धांत के अनुसार ब्रह्मांड का जन्म लगभग 1३.  7 खराब वर्ष पूर्व अत्यंत गर्म एवम  घनी  अवस्था  के विस्फोट से हुआ एवं ब्रह्मांड तब से लगातार फैल रहा है अर्थात ब्रह्मांड में आकाशगंगा में तेजी से दूर जा रहे हैं संभवतः इस गतिशील एवं लगातार फैलते जा रहे हैं ब्रह्मांड की खोज आधुनिक विज्ञान की सबसे बड़ी खोज है इस सिद्धांत वर्षों से खगोल वैज्ञानिकों द्वारा किए जा रहे निरीक्षण एवं अन्य भौतिक विज्ञानियों के अनुमानित सिद्धांतों का प्रतिफल महा विस्फोट के बाद शुरू में ब्रह्मांड समांगी एवं सर्वाधिक रूप से अधिक घनत्व एवं ऊर्जा से भरपूर तथा अत्यधिक तापमान वाला था धीरे-धीरे ब्रह्मांड फैलता गया तथा ठंडा होता गया और यह प्रक्रिया भाप के धीरे-धीरे ठंडा होकर बर्फ में बदलने की प्रक्रिया के सदृश्य मानी जा सकती है अंतर सिर्फ यह है कि इस प्रक्रिया में पदार्थ के मूल कणों एवं इसके अन्य रूपों के परिवर्तन की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है

      प्रश्न यह है कि हमारे ब्रह्मांड में कौन-कौन से दृश्य  पदार्थ ऊर्जा उनको बनाने वाले मूलभूत कण उपस्थित हैं तथा उनके बीच कौन कौन से फल प्रभावी रूप से कार्य करते हैं महा विस्फोट के बाद ब्रह्मांड के ठंडा होने के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के आकारों के बनने की प्रक्रिया अर्थात आकार ग्रहण प्रक्रिया भौतिक विज्ञान का मूलभूत एवं अनसुलझा रहस्य आज वर्तमान स्वरूप में ब्रह्मांड में हर आकार के आकाशीय पिंड यथा ग्रह उपग्रह आकाशगंगा उपस्थित है यह सारे दृश्य पदार्थों से मिलकर बनने वाले आकार विभिन्न परमाणुओं के मिलने से जन्म लेते हैं ब्रह्मांड के सभी कोणों के द्रव्यमान के लिए हिग्स बोसान तथा कथित गॉड पार्टिकल उत्तरदाई होते हैं

        
             प्रयोगों से यह सिद्ध हुआ है कि दृश्य पदार्थों के अतिरिक्त ब्रह्मांड में कुछ अदृश्य पदार्थ जैसे (डार्क मैटर )भी हैं डार्क मैटर किन कनो  से मिलकर बना है अभी यह गहन शोध का विषय इसके अतिरिक्त ब्रह्मांड के लगातार फैलने  के लिए डार्क एनर्जी को जिम्मेदार माना जाता है अभी तक हमें ब्रह्मांड के लगभग 4% दृश्य पदार्थ का ज्ञान है जो क्वार्क  लेप्टॉन  से मिलकर बना है

          
हमारा अंतरिक्ष(our space)

अंतरिक्ष और बाहा  अंतरिक्ष के बीच अंतर इस बात का है कि अंतरिक्ष पूरे ब्रह्मांड का सूचक है जिसमें पृथ्वी भी सम्मिलित है जब भी वह अंतरिक्ष का अर्थ पृथ्वी को छोड़ शेष सभी स्थान है वस्तुतः अंतरिक्ष वहां से शुरू होता है जहां पृथ्वी का वातावरण खत्म होता अंतरिक्ष सभी दिशाओं में व्याप्त है अंतरिक्ष के आयामों को हमारे स्थलों के लिए निर्धारित पैमाने से मापना संभव नहीं है इसलिए प्रकाश वर्ष और खगोलीय इकाई जैसे नए परमाणु को अपनाया गया है

       प्रकाश वर्ष में दूरी है जिससे प्रकाश सुनने में 299792.5 किलोमीटर प्रति सेकंड या 186282 नील प्रति सेकंड की गति के आधार पर सूर्य और पृथ्वी के बीच की औसत दूरी को तय करता है आजकल यह सौरमंडल की दूरियों को निश्चित करने के लिए स्थाई मुख्य इकाई  ही बन गई है

          खगोलीय इकाई एस्ट्रोनॉमिकली यूनिट स्थलीय दूरी मापने के पैमाने के अनुसार लगभग 9.3 करोड़ मील  15 करोड़ किलोमीटर है

बाहरी संसार के प्रभावों को हम दो प्रमुख माध्यमों प्रकाश और ध्वनि से ग्रहण करते हैं प्रकाश वह  है जिसे हम देख सकते हैं और ध्वनि वह है जिसे हम सुन सकते हैं 18 वीं सदी के अंत तक इस बात को स्वयं सिद्ध सत्य माना जाता था उन्नीसवीं शताब्दी के शुरू होते ही यह विश्वास खंडित होने लगा

खगोल शास्त्र और भौतिक शास्त्र के विद्वानों ने यह पता लगाए कि ब्रह्मांड में ऐसा प्रकाश भी है जिसे देखा नहीं जा सकता और ऐसी ध्वनि है जो सुनी नहीं जा सकती ।सन 18००  ईस्वी में इस बात की जानकारी पहली बार जब ब्रिटिश खगोल शास्त्री विलियम हर्षल 1738 - 1822 अवरक्त बिकिरण  का पता लगाया।

खगोलिकीय 


आधुनिक खगोलिकीय की शुरुआत इतावली  खगोल व्यक्त  गैलीलियो  से हुई सन 1609 में गैलीलियो ने डेनमार्क के हेन्स लिप्पर्शे की बनायीं दूरबीन के बारे में सुना उसने इस दूरबीन में और अधिक सुधार करें इसके आवर्धन को 30 तक पहुंचाया दूरबीन रिफ्लेक्टर टेलीस्कोप या अपवर्तन दूरबीन थी गैलीलियो ने अनेक खोज की उसने बताया कि चांद की सतह उबर -खाबड़ है  प्लायोडीज़ या बृतिका  40 से अधिक नक्षत्रों का समूह है उसने बृहस्पति के चार चंद्रमाओ  का और सूर्य के धब्बों का पता लगाया।


           सन 1668 में न्यूटन ने रिफ्लेक्टर या परावर्तक दूरबीन का आविष्कार किया परावर्तक दूरबीन में प्रकाशित एक बड़े अभी दर्शक लेंस द्वारा एकत्रित किया जाता था इसके लिए परावर्तन दूरबीन में एक बड़ा बकरदारपण  दर्पण लगा होता था दोनों प्रकार के दूरबीन अभी काम में लाई जाती हैं।

           खगोल की के इतिहास में प्रकाश दूरबीन का आविष्कार ए के युग प्रवर्तक घटना है आम लोगों और खगोल शास्त्रियों को इसने इतना अधिक आकर्षित किया कि सभी उन्नत देश बड़ी से बड़ी दूरबीन बनाने की होड़ में लग गए।


रेडियो खगोल की

रेडियो खगोलकीय  का जन्म अप्रत्याशित रूप से हुआ सन् 1931 में एक अमेरिकी रेडियो इंजीनियर काल ज़ेंस्की  ने बेल टेलीफोन प्रयोगशाला में काम करते हुए अंतरिक्ष से निरंतर आ रहे एक विकिरण को देखा यह आश्चर्यजनक बात है कि इस समय के खगोल शास्त्रियों ने इस अविष्कार पर कोई ध्यान नहीं दिया लेकिन एक अमेरिकी रेडियो ऑपरेटर ग्रोटो रिवर का ध्यान इस ओर गया और उसने अंतरिक्ष में होने वाली घटनाओं का अध्ययन अपने आप करने की सो ची उसने लगभग 10 सालों तक अकेले अंतरिक्ष का अध्यन किया और विकिरणों  का विश्लेषण किया सन् 1937 में उसने संसार की सबसे पहली रेडियो दूरबीन इलिनायस अपने घर के पिछवाड़े पर लगाए इस दूरबीन में 31  फुट 5 इंच की वलयाकार  आकाश का पहला परिदृश्य प्रस्तुत किया इस प्रकार रेडियो खगोल की का जन्म खगोल की की एक नई शाखा के रूप में हुआ।

रेडियो दूरबीन कई मामलों में प्रकाश दूरबीन जैसी है इसमें धातु का एक परावर्तक लगा होता है इस परावर्तक के साथ एक एंटीना भी होता है धातु का परावर्तक रेडियो ऊर्जा को एकत्र करता है और उसे एक एंटीना पर अभी केंद्रित करता है इसे फिर अपेक्षित आवृत्ति पर बदला जा सकता है एंटीनास को विकिरण  को एक अत्यधिक संवेदनशील रेडियो रिसीवर ग्रहण करता  है और उसे रिकॉर्ड करता है इसका विश्लेषण कंप्यूटर के द्वारा किया जाता है।

छठे दशक में उपग्रह टेक्नोलॉजी के कारण खगोल संबंधी खोज बहुत आगे बढ़ी इसके पहले नक्षत्रों का अध्ययन पृथ्वी से होता था अब उपग्रहों के कारण नक्षत्रों की घटनाओं का अध्ययन वायुमंडल से ऊपर उठकर किया जाना संभव हो गया इस प्रकार नक्षत्रों का अध्ययन दो तरह से होने लगा पृथ्वी की सतह से और दूसरा वायुमंडल के ऊपर से इससे खगोलिकीय के  क्षेत्र में नए-नए विशेष क्षेत्रों एक्स-रे अल्ट्रावॉयलेट गामा इंफ्रारेड आदि का द्वार खुल गया।

रडार खगोल की

सन 1940 में तब रडार खगोल की का जन्म हुआ जब हंगरी के भौतिक वैज्ञानिक zalton  ने चांद पर माइक्रो  तरंगो की किरणों को छोड़ा और उनकी गूंज का उसने पता लगाया यह अब रेडियो खगोल की का एक अंग बन गया क्योंकि माइक्रो तरंगों को विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम का एक अंग माना जा सकता है।

मंदाकिनी आकाशगंगा क्या होती है?

मंदाकिनी या आकाशगंगा तारों के विशाल पुंज है जो गुरुत्वाकर्षण की शक्ति से एक दूसरे से बंधे हुए हैं यह पुंज  इतने विशाल  है कि इन्हें भी प्रायद्वीप ब्रह्मांड कहा जाता आकाश में मंदाकिनी फैली हुई दिखाई देती है लेकिन यह कई समूह आपस में गूंथ कर पुंज बनाते हैं

ब्रह्मांड में विस्फोट के बाद पदार्थों का विस्तार हुआ आकाश में गैस से भरे खरबों  प्रायद्वीप बन गई है  ये गैस के प्रायद्वीप अपनी ही गति  विशेष से घूमने लगे बहुत मंदाकिनी मंद गति से घूमने वाले का आकार लगभग गोल  रहा शेष वलयकार  का रूप में भिन्न-भिन्न लंबाई यों के बने इनकी लंबाई उनके घूमने की गति पर आधारित थी बहुत से गैस प्रायोजकों के घूमने की गति इतनी अधिक थी कि उनका आकार चपटी तश्तरी की तरह हो गया इंटर स्तरीय के किनारे से सर्किल भुजाएं निकली स्त्रियों का केंद्र मंदाकिनी केंद्र के चारों ओर वर्तुल आकार में निरंतर घूमने वाले अंक अध्ययन छात्रों द्वारा सड़कों का निर्माण बहुत अधिक सूची धूल से भरी अपवर्तन में फंसी गैसों की धाराओं से हुआ जो सर पर रूप में इस तरह मंदाकिनी विभिन्न आकार और रूप में निर्मित होने लगे स्थानीय मंदाकिनी के कई बिंदुओं में शुरू होने लगी अपने ही बाहर के दबाव में घने गैस के गोले के रूप में संकुचित होने लगे इस प्रकार के संकुचन के फल स्वरुप गैसीय घोड़ों का तापमान धीरे-धीरे बढ़ने लगा और उनके गर्म सदा से गर्म तरंग और तब दृश्य मान प्रकाश के छोटे वेवलेंथ निकलने लगे।

       जब इन संकुचित होने वाले अध्य नक्षत्रों का केंद्रीय वायुमंडल नांग लगभग 10 करोड़ डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुंच गया तब संकुचन की प्रक्रिया रुक गई और अपने आप की प्रक्रिया शुरू हुई और नक्षत्रों के रूप में करोड़ों घोड़ों का जन्म हुआ जब तारे निकले तब पहले ही ठंडी और अंधेरी अध्य मंदाकिनी चमकीले तारों के रूप में आज की मंदाकिनी में बदल गई।


सबसे अधिक दो निकटतम मंदाकिनीय हैं बृहद मैग्लेनिक बादल और लघु मैग्लेनिक बादल लगभग 5 से 10 अरब तारे हैं लघु बादल में केवल एक से द्वारा तारों की आबादी है इस समूह में 2 सबसे बड़ी मंदाकिनी आकाशगंगा और एंड्रोमेडा मंदाकिनी है यह दोनों सर पर ने हाल में 52 मंदाकिनी का पता ऑस्ट्रेलिया की साइडिंग स्प्रिंग वेधशाला ने लगाया यह करोना में स्थित है और इसमें बहुत अधिक धुंधले तारों का शील कुंज है।


  दुग्ध मेखला 
(मिल्की वे)

हमारी पृथ्वी की अपनी एक मंदाकिनी आकाशगंगा है जिसे दूध मेकला कहते हैं इस मंदाकिनी की विशिष्टता यह है कि इसे होकर एक संपूर्ण व्रत में प्रकाश की धारा प्रवाह महान दिखाई देती है यह दुग्ध मेखला 24 मंदाकिनी ओके 1 गज का सदस्य जो स्थानीय दल कहलाता है पृथ्वी से देखने पर यह धारा आकाश में बहती प्रकाश की एक नदी की तरह दिखाई देती है वास्तव में यह करोड़ों टिमटिमाते तारों से मिलकर बनी है पृथ्वी की दूरी से देखने पर लगता है कि तेरे पास पास तरह पश्चात वैज्ञानिकों ने इस प्रकार धारा को दूध में खिला की संज्ञा दी है।


         यह दुग्ध मेखला एक सर्किल मंदाकिनी है इस मंदाकिनी के एक छोर से दूसरे छोर की दूरी 100000 प्रकाश वर्ष है इसके गोलाकार नाभिक के व्यास की लंबाई 16000 प्रकाश वर्ष मंदाकिनी की सरपंच भुजाएं दूर-दूर तक फैली है और इन्हीं भुजाओं में से एक में हमारा सौरमंडल स्थित है मंदाकिनी में एक तरफ से अधिक तारे हैं जो इसके केंद्र में 23 करोड़ वर्षों की आवश्यक कालावधि में घूमते रहते हैं।


             हमारी मंदाकिनी का केंद्र चूर से लगभग 32000 प्रकाश वर्ष दूर है या गैस की घूमती हुई पट्टी जैसी दिखाई देती है इस घूमती हुई पट्टी में अनेक बड़ी क्रियाएं होती रहती है मंदाकिनी के केंद्र के निकट ऐसी घटनाओं का एक दृश्य देखा जा सकता है यहां नए तारे लगातार पैदा होते रहते हैं यह जगह पूर्ण विकसित तारों से पहले ही भरी हुई है यहां पर तारों का घनत्व प्रति घन पाठ से 10 लाख तारे हैं।


नक्षत्र या तारे

मंदाकिनी का 98 प्रतिशत भाग तारों से बना है शेष 2% में अंतर न क्षत्रिय खगोलीय गैस और बहुत ही अधिक घने रूप में छाई दूल्हे तारों के बीच का सामान्य ज्ञान घनत्व प्रति घन सेंटीमीटर हाइड्रोजन अणु का लगभग दसवां हिस्सा है।

तारे गुरु का निर्माण करते हैं खगोल में ऐसे तारे अपवाद है जो अलग थलग अकेले पड़े हैं ऐसे तारों की संख्या 25% से अधिक नहीं है योग में तारे लगभग 33% है शेष सभी तारे बहुसंख्यक हैं।

हमारे नेत्रों से जो तारे एक दिखलाई पड़ते हैं वह दूरबीन से देखने पर युग में तारे नजर आते हैं ये युग में नक्षत्र को तो आकर्षण के एक ही उभयनिष्ठ के केंद्र के चारों ओर घूमते हैं यह एक दूसरे की परिभ्रमण कक्षा में 1 साल से लेकर हजारों साल की लंबी अवधि तक पाए जाते हैं जब नक्षत्र में हाइड्रोजन कम हो जाता है तो इसका बाहरी क्षेत्र फूलने लगता है और वह लाल हो जाता है यह तारों की आयु की पहली निशानी है ऐसे तारों को रक्तदान ओ कहते हैं हमारा तारा सूर्य आगामी 5 वर्षों में ऐसा ही रक्तदान ओ बन जाएगा ऐसी संभावना है।

प्रकाश की चमक की मात्रा में कम ज्यादा होने वाले तारों की चिर कांति तारा कहते हैं ऐसे तारों में अधिक से अधिक चमक की कमी पेशी कुछ घंटों की अवधि से लेकर 1000 दिनों या इससे अधिक की अवधि होती है नए और अभिनव तारे भी हैं जिनकी कांति एकाएक 10 से 20 गुना या इससे अधिक बढ़ जाती और फिर धीरे-धीरे कम होकर समान हो जाती है एकाएक चमक के बढ़ने का रहस्य आंशिक या पूर्ण विस्फोट में देखा गया है नए तारों में ऐसा लगता है कि केवल बाहरी भाग में विस्फोट होता है जबकि अभिनव तारों में पूरे तारे में विस्फोट होता है।


       ब्लैक होल


किसी नक्षत्र का अंत होता है तो उसका भार सूर्य के भार से 3 गुना अधिक हो जाता है निपात होने के साथ वह सगन होता जाता है यह इतना सघन हो जाता है कि अन्य क्षेत्र हो जाता है और इसे देखा नहीं जा सकता सम्मान सफेद चिट्टा के अनुसार अगर पदार्थ की बाड़ी बहुत सदन हो जाए तो यह अंतरिक्ष में गहरी अनंत खाई के समान हो जाता है जिसे ब्लैक होल कहते हैं

गुरुत्व तरंगे

उत्तर आएंगे तब उत्पन्न होती है जब अंतरिक्ष में पूरी तरह से खलबली मचती है इस प्रकार की भीम का हलचल है अंतरिक्ष में सभी दिशाओं में ग्रोथ ऊर्जा को छिन्न-भिन्न कर देती है यह तरंगे केवल अंतरिक्ष में ही यात्रा नहीं करती जिस प्रकार से धोनी प्रकार से भिन्न प्रकार से संकेत देती है उसी प्रकार अंतरिक्ष में कंपन इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम के संकेतों से पूरी तरह से अलग होता है सुपरनोवा विस्फोट के केंद्र में भी यह तिरंगे पीछे छोड़ देती है




    ई अपशिष्ट क्या होता है सबसे पहले हम यह जाने हैं.......


अपशिष्ट याई कचड़ा सूचना प्रौद्योगिकी से संबंधित कबाड़ उपकरणों और अन्य सामग्रियों को कहा जाता है तकनीक में निरंतर हो रहे बदलावों के चलते कंप्यूटर मॉनिटर कीबोर्ड माउस लैपटॉप तथा इसी प्रकार के अन्य उपकरण जो चलन से बाहर हो गए कचरे के अंतर्गत आते हैं यह कचड़े में लगभग 1000 प्रकार की वस्तुएं आती हैं जिनमें कुछ अत्यधिक खतरनाक होती है सामान्य तौर पर चढ़े में लोहा और प्लास्टिक रबड़ कंक्रीट प्रिंटेड सर्किट बोर्ड औरंगाबाद लोहा तथा इसमें बाकी अन्य वस्तुएं होती हैं।।

शीशा पारा आर सैनिक कैडमियम सेलिनियम एक्सावायलट प्रोमिया तथा फिल्म रिटारडेड की सीमा से अधिक मात्रा में कचड़े को खतरनाक बनाती है सर्किट बोर्ड में प्रॉमिनेंट रेड फ्लेम रिटायरमेंट होता है जिन्हें जलाने पर हानिकारक डाई आरक्षी और इमरान उत्पन्न होते हैं।

भारत के महाराष्ट्र कर्नाटक दिल्ली तमिलनाडु गुजरात मध्य प्रदेश पश्चिम बंगाल आंध्र प्रदेश पंजाब और उत्तर प्रदेश प्रमुख ई-कचरा संपन्न करने वाला राज्य सबसे अधिक ई-कचरा पैदा करने वाले शहरों में बेंगलुरु दिल्ली कोलकाता हैदराबाद पुणे चेन्नई अहमदाबाद सूरत और नागपुर के नाम शामिल हैं।

ई कचरा मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है टेलीविजन और कंप्यूटर के मॉनिटर के कांच के पैनलों में शीशा होता है जिससे उल्टी दस्त अनिद्रा चिड़चिड़ापन थकान और बेहोशी जैसी स्वास्थ्य समस्याएं हो जाती हैं सेमीकंडक्टर चित्रों तथा कैथोड रे ट्यूब में कैद नियम होता है जिससे फेफड़ों और गुरुओं को गंभीर हानि पहुंच सकती है सर्किट बोर्ड ओं मोबाइल फोंस बैटरी है तथा टीवी कंप्यूटर की फ्लैट स्क्रीन में पारा होता है जो मस्तिष्क और गुर्दों को नुकसान पहुंचाता है कैथोड रे ट्यूब और स्क्रीन पेनल ऊपर बेरिलियम होता है जो मस्तिष्क को नुकसान पहुंचाता है।

ई-कचरा के उपयुक्त हानिकारक प्रभाव को देखते हुए उनके उच्च निपटान की महती आवश्यकता है भारत में अभी केवल चेन्नई और बेंगलुरु में ही छोटे आकार के ई कचरा निपटान संयंत्र अब समय आ गया है जब देश में बड़े पैमाने पर कचरा निपटान संयंत्रों की स्थापना की जानी चाहिए।

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