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Indus Valley Civilization क्या है ? इसको विस्तार से विश्लेषण करो ।

🧾 सबसे पहले — ब्लॉग की ड्राफ्टिंग (Outline) आपका ब्लॉग “ सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) ” पर होगा, और इसे SEO और शैक्षणिक दोनों दृष्टि से इस तरह ड्राफ्ट किया गया है ।👇 🔹 ब्लॉग का संपूर्ण ढांचा परिचय (Introduction) सिंधु घाटी सभ्यता का उद्भव और समयकाल विकास के चरण (Pre, Early, Mature, Late Harappan) मुख्य स्थल एवं खोजें (Important Sites and Excavations) नगर योजना और वास्तुकला (Town Planning & Architecture) आर्थिक जीवन, कृषि एवं व्यापार (Economy, Agriculture & Trade) कला, उद्योग एवं हस्तकला (Art, Craft & Industry) धर्म, सामाजिक जीवन और संस्कृति (Religion & Social Life) लिपि एवं भाषा (Script & Language) सभ्यता के पतन के कारण (Causes of Decline) सिंधु सभ्यता और अन्य सभ्यताओं की तुलना (Comparative Study) महत्वपूर्ण पुरातात्त्विक खोजें और केस स्टडी (Key Archaeological Cases) भारत में आधुनिक शहरी योजना पर प्रभाव (Legacy & Modern Relevance) निष्कर्ष (Conclusion) FAQ / सामान्य प्रश्न 🏛️ अब ...

भारतीय वित्तीय एवं पूंजी बाजार( indian financial and capital market)

वित्तीय बाजार का अर्थ एवं कार्य: वित्तीय बाजार ऋण दाता व ऋणी के मध्य अंतरण प्रक्रिया है ,जिसके माध्यम से वित्तीय कोषों  के हस्तांतरण में सुगमता आती है ।इसमें निवेश वित्तीय संस्थाओं और अन्य मध्यस्थों को शामिल किया जाता है जिन्हें विभिन्न संपत्तियों व साखपत्रों के व्यवसायिक विक्रय हेतु औपचारिक नियमों और संचार माध्यमों से जोड़ दिया जाता है अर्थात वे व्यक्ति जिनके पास अधिक धन है वे अपना धन उन व्यक्तियों को उनकी आवश्यकता की पूर्ति हेतु उधार देते हैं जिन्हें इसकी आवश्यकता है।      व्यवसाय के क्षेत्र में भी मुद्रा आधिक्य   निवेशको एवं ऋण दाताओं से व्यवसायियों की तरफ माल व सेवाओं के उत्पादन अथवा विक्रय के लिए प्रवाहित होता है । प्रकार हम दो विभिन्न समूहों को पाते हैं जिनमें एक समूह वह है जो धन का निवेश करता है अथवा ऋण प्रदान करता है ।दूसरा समूह वह है जो ऋण प्राप्त करता है और धन का उपयोग करता है।        वित्तीय बाजार में क्रेता और विक्रेता के मध्य पारस्परिक वार्तालाप के फल स्वरुप के क्रय विक्रय की जाने वाली वित्तीय संपत्ति के मूल्य निर्धारण से संबंधित...

Legislative Assembly( विधायिका) संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बिंदु

(1) संसदीय व्यवस्था के अंतर्गत सरकार संसद के प्रति उत्तरदाई होती है और संसद द्वारा सरकार को हटाया भी जा सकता है। उदाहरण के तौर पर देखें तो भारत में संसदीय व्यवस्था वाली सरकार है और संविधान के अनुच्छेद 75(3) के अनुसार मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदाई है । (2) संविधान का अनुच्छेद 164(4) उपबंध करता है कि कोई मंत्री जो निरंतर छह माह की किसी अवधि तक राज्य के विधान मंडल का सदस्य नहीं है उस अवधि की समाप्ति पर मंत्री नहीं रहेगा । कोई व्यक्ति बिना विधायिका की सदस्यता ग्रहण किए 6 माह तक मंत्री रह सकता है।         जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 8(3) उपबंध करती है कि कोई भी व्यक्ति जो दांडिक  अपराध के अंतर्गत दोषी पाया गया है तथा उसे 2 वर्ष या उससे अधिक के लिए कारावास भेजा गया है कारावास से मुक्त होने के बाद 6 वर्ष तक चुनाव नहीं लड़ने के लिए निरर्हत रहेगा। (3) संविधान के अनुच्छेद 85 में संसद के सत्र,सत्रावसान एवं विघटन संबंधी उपबंध है। इस अनुच्छेद के अनुसार राष्ट्रपति समय-समय पर संसद के प्रत्येक सदन को ऐसे समय एवं स्थान पर जो वह ठीक समझे अधिवेशन क...

बैंकिंग क्षेत्र में सुधार reform and innovation in banking sector

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत में बैंकिंग उद्योग का एक नया दौर प्रारंभ हुआ, इस दौर में बैंकों की कार्यप्रणाली एवं उत्तरदायित्व में सुधार के प्रयास प्रारंभ हुए जिसके लिए अनेक समितियों का गठन हुआ और विभिन्न नियमों का निर्माण भी इन कार्यों के अतिरिक्त बैंकों ने स्वयं भी अपनी कार्यप्रणाली में सुधार हेतु अनेक कदम उठाए।           भारतीय रिजर्व बैंक भी इस संदर्भ में बैंकों को लगातार दिशा निर्देश जारी करता रहा है इन प्रयासों के साथ साथ बैंकों की कार्यप्रणाली में तकनीकी का भी समावेश हुआ जिसने इसे सरल व सुद्रण बनाया है। बैंकिंग नियमन संबंधित महत्वपूर्ण अधिनियम( important acts related to Banking Regulation) : बैंकिंग नियमन अधिनियम 1949 इस अधिनियम का प्रमुख उद्देश्य बैंकों को मजबूत बनाने एवं उन पर समुचित नियंत्रण रखने से संबंधित था ।16 मार्च 1949 से यह पूरे देश में लागू हुआ और वर्ष 1965 तक इसमें कई बार संशोधन की आवश्यकता पड़ी।                 इस अधिनियम की महत्वपूर्ण विशेषता यह रही कि इसने भारतीय रिजर्व बैंक के व्यापारिक बैंकों प...